बिल न भरने पर क्या मरीज़ को बंधक बना सकता है अस्पताल? | Know if hospital can detain patient or delay discharge on issue of non payment | bhopal – News in Hindi

बिल न भरने पर क्या मरीज़ को बंधक बना सकता है अस्पताल? | Know if hospital can detain patient or delay discharge on issue of non payment | bhopal – News in Hindi


एक तरफ Health सेक्टर Covid-19 इमरजेंसी के चलते खबरों में है तो दूसरी तरफ, कुछ अस्पताल मरीज़ों के साथ ज़्यादतियों को लेकर. मध्य प्रदेश से पिछले दिनों खबर थी कि अस्पताल ने मरीज़ को बिस्तर से बांधकर (Patient Detained) रखा क्योंकि Bill Payment नहीं कर सका. हालांकि बाद में, अस्पताल पर कार्रवाई हुई लेकिन जानने की बात यह है कि क्या किसी अस्पताल को वाकई अधिकार है कि वो भुगतान न होने पर किसी मरीज़ को बंधक (Hostage) बना ले!

ये भी पढ़ें :- क्या हैं आपके स्वास्थ्य अधिकार?

क्या था MP में मरीज़ को बंधक बनाने का मामला?
मप्र के शाजापुर ज़िले के अस्पताल में 60 वर्षीय लक्ष्मीनारायण दांगी को पेटदर्द की शिकायत के चलते भर्ती किया गया था. खबरों के मुताबिक दांगी की बेटी शीला अस्पताल का बिल नहीं चुका सकी तो अस्पताल ने दांगी को रस्सियों से बिस्तर पर बांध दिया. दावा किया कि मरोड़ से परेशानी में दांगी को चोट न लग जाए इसलिए बांधा.

मप्र में एक अस्पताल ने मरीज़ को बिस्तर से बांधकर रखा. फाइल फोटो.

वहीं, सोशल मीडिया पर जब दांगी के बंधे होने के फोटो और वीडियो वायरल हुए, तो उसके बाद सूबे के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जांच के आदेश दिए. शाजापुर कलेक्टर ने एसडीएम से जांच करवाई और आखिर में उस प्राइवेट अस्पताल का न सिर्फ लाइसेंस रद्द किया गया बल्कि मैनेजर पर मरीज़ को बंधक बनाने का केस भी दर्ज किया गया.

अब बात ये है कि इससे पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं और अस्पताल बिल भुगतान न होने पर मरीज़ों को परेशान करते रहे हैं लेकिन इस तरह मामलों का अंत नहीं होता क्योंकि साफ कानून नहीं हैं. फिर भी कैसे और कितने कानूनी विकल्प हैं, ये जानना ज़रूरी हो जाता है.

पेशेंट राइट्स चार्टर में मिले हैं अधिकार

साल 2018 में पहली बार देश में मरीज़ों के अधिकारों के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक विस्तृत चार्टर जारी किया था, जिसमें साफ तौर पर 17 अधिकार शुमार थे. इस बारे में न्यूज़18 ने हाल ही आपको विस्तार से बताया था कि मरीज़ों के स्वास्थ्य संबंधी अधिकार क्या हैं.

इसी चार्टर के मुताबिक एक नियम साफ तौर पर कहता है कि बिल भुगतान न होने, बिल भुगतान की प्रक्रिया में देर होने या भुगतान पर विवाद होने जैसे कारणों से अस्पताल मरीज़ या शव के डिस्चार्ज में देर नहीं कर सकता. लेकिन, पेंच यह है कि यह चार्टर ड्राफ्ट केंद्र सरकार ने तैयार किया था और स्वास्थ्य चूंकि राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र का मामला है इसलिए नियम कायदे राज्य बना सकते हैं.

क्या किसी राज्य ने बनाया ऐसा नियम?
हां. महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन रूल्स में संशोधन करते हुए यह नियम जोड़ा कि भुगतान न करने की स्थिति में मरीज़ या शवों को डिस्चार्ज करने में अस्पताल मनमानी या देर नहीं कर सकते. लेकिन यहां भी समस्या है कि ये नियम अब तक कागजों पर ही है, कानूनी प्रावधानों के साथ लागू नहीं हो सका है.

health related rights, patient rights, guidelines for hospitals, madhya pradesh hospital, MP hospital controversy, what is patient charter, स्वास्थ्य संबंधी अधिकार, मरीज़ों के अधिकार, अस्पतालों की गाइडलाइन, मध्य प्रदेश अस्पताल

अस्पतालों के लिए गाइडलाइन्स के लिए कानूनी प्रावधानों की ज़रूरत बनी हुई है. प्रतीकात्मक तस्वीर.

अब कोर्ट का इस मामले में क्या रुख है?
क्या यही आखिरी विकल्प बचता है? कई बार ऐसा हुआ है. अस्ल में कोर्ट भी केस को लेकर फैसले देते रहे हैं और कहते रहे हैं कि कायदे कानून बनाना सरकार का काम है. हालांकि कुछ मामलों में कोर्ट के फैसले एक दिशा बताने का काम तो करते ही हैं. ऐसे में दो केसों के बारे में जानना काम की बात है.

पहला, 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मरीज़ के हक में फैसला देते हुए कहा था ‘जबकि मरीज़ को फिट बताया जा चुका तो भुगतान न होने पर भी किस आधार पर अस्पताल उसे बंधक बना सकता है? ऐसा करने से अस्पताल मरीज़ की निजी स्वतंत्रता का हनन करता है. सभी को जागरूक होना चाहिए कि अस्पताल के ऐसे एक्शन गैर कानूनी हैं.’

इसी तरह, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी भुगतान को लेकर बंधक बना लिये गए मरीज़ को तत्काल छोड़े जाने के निर्देश देते हुए कहा था ‘भले ही भुगतान न हुआ हो, लेकिन पैसे निकलवाने के लिए अस्पताल किसी मरीज़ को बंधक बना ले, हम ऐसे व्यवहार की निंदा करते हैं.’

तो, मरीज़ों के हित में थोड़े बहुत कानूनों के साथ ही कोर्ट का सहारा भी है और मप्र के केस को मद्देनज़र रखें तो स्थानीय प्रशासन भी दखल देकर मरीज़ों की मदद कर सकता है. इसके बावजूद, मरीज़ों के अधिकारों और उनकी रक्षा के लिए स्पष्ट और सशक्त कानूनों की ज़रूरत बनी हुई है.

ये भी पढ़ें :-

कई राज्यों में ठीक मरीज़ों की संख्या संक्रमितों से ज़्यादा, 2 महीने में कहां से कहां पहुंच गया रिकवरी रेट!

कोरोना वायरस को रोकने में लॉकडाउन की रणनीति को अब मददगार क्यों नहीं मान रहे विशेषज्ञ?





Source link