राहुल के करीबी नेता हो रहे हैं साइडलाइन?
बता दें कि पिछले कुछ महीनों में राहुल गांधी के करीबी लगभग आधा दर्जन बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है. अब तो ये भी कहा जा रहा है कि कई और युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट की राह पर जाने को मजबूर हो सकते हैं. सिंधिया, झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आईपीएस अधिकारी डॉ. अजय कुमार और हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने तो पहले ही पार्टी छोड़ दी है.
राहुल गांधी की सचिन पायलट से अच्छी बनती थी.
मिलिंद देवड़ा, प्रिया दत्त, संजय निरुपम और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं का पार्टी के सीनियर लीडर्स के साथ लगातार खटपट की खबरें आती रहती हैं. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राज बब्बर भी कई महीने से पार्टी की गतिविधियों से दूर रह रहे हैं.
राहुल समर्थक नेताओं की पार्टी में स्थिति
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के समय में भी पार्टी में अंदरुनी गुटबाजी जोर पकड़ी थी. तब राहुल गांधी विदेश चले गए थे. उसके बाद हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ दी थी. तंवर राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे. तंवर ने पार्टी छोड़ते वक्त कहा था कि कांग्रेस में उन युवा नेताओं को हटाने की साजिश चल रही है, जिन्हें राहुल गांधी ने तैयार किया. तंवर को कुछ दिन पहले ही पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा कर कुमारी सैलजा को अध्यक्ष बना दिया गया था. सैलजा सोनिया गांधी की करीबी मानी जाती हैं.
कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने भी पार्टी में राहुल गांधी के करीबियों के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया था. उन्होंने यहां तक कह दिया कि राहुल के करीबियों के खिलाफ साजिश कांग्रेस को बर्बाद कर देगी. मुंबई कांग्रेस की गुटबाजी के कारण मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने भी इस्तीफा दे दिया था. पिछले साल जून में देवड़ा ने राहुल गांधी से मुलाकात के बाद इस्तीफा देने की मंशा जाहिर की थी. उस समय कहा गया था कि इस कदम को राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद एकजुटता और सामूहिक जिम्मेदारी के तौर पर देखा जा रहा है. देवड़ा को 2019 लोकसभा चुनाव से एक महीने पहले ही मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था.

संजय निरुपम ने भी पार्टी में राहुल गांधी के करीबियों के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया था.
पार्टी से क्यों दूर हो रहे हैं युवा नेता
पिछले साल ही गुटबाजी की वजह से झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने भी इस्तीफा दे दिया था. अजय कुमार ने अपना इस्तीफा राहुल गांधी को सौंपा था. झारखंड में लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद कांग्रेस दो गुटों में बंट गई थी. एक का नेतृत्व अजय कुमार कर रहे थे तो दूसरे का नेतृत्व सुबोधकांत सहाय कर रहे थे. सुबोधकांत सहाय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खेमे के माने जाते हैं.
क्या कहते हैं कांग्रेस को करीब से समझने वाले
कांग्रेस को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार और ‘24 अकबर रोड’ के लेखक रशीद किदवई कहते हैं, ‘देखिए राजनीति में धर्म की तरह आस्था वाली बात नहीं रह गई. अब जो लॉयलिटी है वह कंडिशनल हो गई है. गांधी परिवार का कांग्रेस में अभी तक मान-सम्मान इसलिए था या है कि वह कांग्रेस पार्टी को जिता सकते हैं. 77 में इंदिरा गांधी हारने के बाद 80 में वापस आ गईं. 1998 में सोनिया गांधी आईं और 2004 और 2009 में पार्टी को जिता कर लाईं. राहुल गांधी के आने के बाद कांग्रेस में यह समस्या आ गई थी कि वह लोगों में अपनी बात मनवा नहीं पा रहे थे. हालांकि, बाहर लोगों को पता नहीं था कि अंदरुनी तौर पर उन्हें सबका मुंह देखना पड़ रहा था. राज्यों के मुख्यमंत्रियों, वरिष्ठ नेताओं की क्या राय है उनके मर्जी से भी चलना पड़ता था.’

कभी अशोक तंवर हरियाणा की राजनीति में कुमारी सैलजा और हुड्डा पर भारी पड़ते थे.
राजीव गांधी को करीबियों की वजह से ही नुकसान हुआ?
किदवई कहते हैं, ‘दूसरी बात यह भी है कि कांग्रेस संगठन की यह परंपरा नहीं रही है कि कोई आए और अपनी बात मनवाए. कांग्रेस में जो पुराना ढर्रा चला आ रहा है चाहे वह फैसले लेने का हो या काम करने का तरीका. पार्टी नेता या कोई भी अध्यक्ष हो उसी ढर्रे पर चलना पड़ता है. अगर कुछ बदलाव किए जाते हैं तो वह पार्टी की शक्ति से होता है, कमजोरी से नहीं होता है. अभी कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. पार्टी के हर फैसले को बड़े नेताओं और किसी राज्य के सीएम से मिलकर लिया जाता है. मैं आपको बताना चाहता हूं कि राजीव गांधी को राजनीतिक नुकसान हुआ वह उनके अपनों से हुआ. अरुण सिंह, अरुण नेहरु और अमिताभ बच्चन जैसे लोगों से हुआ. व्यापार और दोस्ती साथ नहीं चलती है.’
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हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया कहते हैं कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से जुड़ी गुटबाजी के तर्कों के बावजूद हमें यह ध्यान रखना होगा कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच कांग्रेस के पदाधिकारी से भी बड़ा संबंध मां-बेटे का है. वो राज्यों के किसी नेता के हित से ज्यादा बड़ा है. फिर भी मैं कहता हूं कि जब आपके सामने बीजेपी जैसी मजबूत पार्टी हो तो यह वक्त नए नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने और उन्हें आगे बढ़ाने का है.