The effort of a retired teacher brought color to save primitive culture, made a museum of primitive caste traditional musical instruments at home | आदिम संस्कृति को बचाने रिटायर्ड शिक्षक की कोशिश रंग लाई, घर में ही बनाया आदिम जाति के पारंपरिक वाद्य यंत्रो का संग्रहालय

The effort of a retired teacher brought color to save primitive culture, made a museum of primitive caste traditional musical instruments at home | आदिम संस्कृति को बचाने रिटायर्ड शिक्षक की कोशिश रंग लाई, घर में ही बनाया आदिम जाति के पारंपरिक वाद्य यंत्रो का संग्रहालय


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बालाघाट(सोहन वैद्य)30 मिनट पहले

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रिटायर्ड शिक्षक ज्ञानेश्वर घोड़ेश्वर

  • सहेजकर रखे गए वाद्य यंत्रों को देखने के लिए मप्र के मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के बड़े-बड़े आला अधिकारी इन वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त कर चुके हैं

आदिम संस्कृति को बचाए रखने के लिए रिटायर्ड शिक्षक ज्ञानेश्वर घोड़ेश्वर ने अपने घर को ही संग्रहालय बना रखा हैं। विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र समय-समय पर आदिम जाति की परंपरा में चार चांद लगाते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि आधुनिकीकरण के मौजूदा इस दौर में भी रिटायर्ड शिक्षक ने विलुप्त होते इन वाद्य यंत्रो को सहेजकर रखा हैं। बालाघाट जिले में नौ प्रकार की आदिम जाति के लोग निवास करते हैं। त्यौहारों में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों के साथ ये लोग त्यौहार मनाते हैं।

सहेजकर रखे गए वाद्य यंत्रों को देखने के लिए मप्र के मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के बड़े-बड़े आला अधिकारी इन वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। रिटायर्ड शिक्षक एक कलाकार ही नहीं बल्कि इन्होने अपना आधा जीवन आदिवासियों के बीच में ही गुजारा हैं। आदिवासी परंपराओं को करीब से देखा भी हैं। वे कहते हैं कि आदिवासी परंपराएं आज भी हैं। बैहर, मलाजखण्ड और छत्तीसगढ़  में कोर, कोरको, भील जाति पाई जाती हैं इसके अलावा नौ आदिवासी जनजाति बालाघाट जिले में निवास कर रहीं है। 

रिटायर्ड शिक्षक ज्ञानेश्वर घोड़ेश्वर ने अपने घर में बना रखा है संग्रहालय।

तीज-त्यौहारों में बजायें जाते है यंत्र
बालाघाट जिले के आदिम जाति के लोगो द्वारा विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग तीज-त्यौहार एवं शादियों में किया जाता है जिसमें बैगा जाति द्वारा चिकारा, मादर और नगाड़ा, चिमटी। प्रधान जाति द्वारा बाना यंत्र बजाया जाता है। गोंड जाति द्वारा मांदर नगाड़ा, टिमटिम, ढोलक, गाजर, मंजिरा इसी प्रकार नगारची द्वारा ढोल, शहनाई। ओझा जनजाति द्वारा ढहक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।

संग्रहालय में कई तरह के विलुप्त हो चुके वाद्य यंत्र रखे हुए हैं।

शिकार के लिए करते थे मोर शंख का उपयोग
आदिम जाति द्वारा एक ऐसा यंत्र जो कि मोर के आकार का होता हे। इसलिए इसे मोर शंख के नाम से जाना जाता है, जो कि आदिवासी द्वारा शिकार के लिए उपयोग किया जाता हैं, क्योंकि इसके स्वर से जंगली-जानवर सम्मोहित से हो जाते और आदिवासियों द्वारा फिर तीर से जानवरों का शिकार किया जाता है।

विभिन्न वाद्य यंत्रों से सजा है म्यूजियम
आदिम जाति द्वारा बजाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों को इकट्ठा करके घर में संग्रहालय बनाया गया है। कई आदिवासी द्वारा बजाए जाने वाले वाद्य यंत्र आज विलुप्त हो चुके है। देखने के बाद हैरानी तो होती है कि ऐसे छोटे-छोटे वाद्य यंत्र जो कि देखने में तो छोटे लगते है लेकिन इन वाद्य यंत्रों की आवाज आज भी हमारे आदिवासियों परंपराओं को जीवित रखीं हुई है। समय बदल गया है और नये-नये प्रकार के वाद्य यंत्र आ गये है लेकिन आज भी जंगलो की लकडिय़ों से आदिवासियों द्वारा बनाये गये इन वाद्य यंत्रों की बात अलग है।

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