सिंधिया के जाने से कमलनाथ-दिग्विजय हैं शक्ति केन्द्र
कांग्रेस की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया एक ताकतवर नेता माने जाते थे. दूसरा गुट कमलनाथ (Kamalnath) और दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) का था. इस गुट में अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया जैसे नेता भी शामिल थे. विधानसभा के आम चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया था. सिंधिया चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनाए गए थे. स्वभाविक तौर पर वोटर ने सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा मान लिया. भारतीय जनता पार्टी ने भी सिंधिया विरोधी आक्रमक प्रचार की रणनीति अपनाई. कांग्रेस की 15 साल बाद सरकार में वापसी की बड़ी वजह सिंधिया के चेहरे को माना गया. लेकिन, राहुल गांधी ने राज्य का मुख्यमंत्री कमलनाथ को बनाया. सिंधिया को धैर्य रखने की सलाह राहुल गांधी से मिली. सिंधिया का धैर्य 15 माह ही टूट गया. पार्टी ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी नहीं बनाया. मार्च में सिंधिया ने अपने 19 समर्थक विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी. सिंधिया के पार्टी छोड़े जाने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरे हैं. सरकार जरूर हाथ से निकल गई. अब ये दोनों नेता विधायकों को इस्तीफा देने से नहीं रोक पा रहे हैं.
PM मोदी को पत्र लिखकर कहा- अवसरवादी नेताओं को न दें सरकार में जगह
कमलनाथ, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के अलावा विधायक दल के नेता भी हैं. विधायकों को संभालने की उनकी जिम्मेदारी दोहरी है. प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि कमलनाथ को आत्म चिंतन की जरूरत है. इससे पहले कभी कांग्रेस में ऐसे हालात नहीं बने. अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस में विधायक घुटन महसूस कर रहे हैं. आतंरिक लोकतंत्र समाप्त हो गया है. विधायक लगातार विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा क्यों दे रहे हैं? इस सवाल का जवाब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विधायक दल की बैठक में यह कह कर दिया कि जिसे जाना है, वह जाएगा. रोकने से भी नहीं रुकेगा. कमलनाथ के इस जवाब से अनिश्चितता और बढ़ गई. जाहिर है कि कमलनाथ का इरादा दल-बदल के इच्छुक विधायकों की मान मनौव्वल करने का नहीं है.

एमपी में कमलनाथ भी विधायकों को इस्तीफा देने से नहीं रोक पा रहे हैं. (फाइल फोटो)
कमलनाथ ने एक पत्र जरूर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा है. इस पत्र में भारतीय लोकतंत्र की दुहाई देने के अलावा उनसे आग्रह किया है कि वे दल-बदल करने वाले नेताओं को अपनी सरकार और पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी न दें. इसके बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कमलनाथ को पत्र लिखकर सलाह दी है कि उन्हें पार्टी के योग्य नेताओं को जिम्मेदारी बांट देनी चाहिए. प्रदेश कांग्रेस में समस्या भी पद और प्रतिष्ठा की ही है. ज्यरोतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़कर जाने के बाद कमलनाथ कांग्रेस की राजनीति में अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगे हैं. दिग्विजय सिंह भी धीरे-धीरे अपनी गतिविधियों को सीमित करते दिखाई दे रहे हैं. वे भी विधायकों को साधने का जतन नहीं कर रहे हैं. सरकार गिरने का ठीकरा भी दिग्विजय सिंह के सिर पर ही फोड़ा गया था.विधायकों के इस्तीफों से बढ़ गई कांग्रेस नेताओं की बेचैनी
नेपानगर की विधायक सुमित्रा देवी और मांधाता विधायक नारायण पटेल के इस्तीफे के बाद प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई कि प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं. शुक्रवार को यादव इन चर्चाओं का जवाब देने के लिए मीडिया के सामने आए. उन्होंने इस तरह की चर्चाओं को निराधार बताते हुए कहा कि मैंने साढ़े चार साल पार्टी को खून-पसीने से सींचा है. यादव के पार्टी छोड़ने की चर्चा तेज होने की वजह सुमित्रा कास्डेकर और नारायण पटेल का विधानसभा से इस्तीफा रही. इन दोनों को टिकट अरुण यादव ने ही दिलाई थी. दोनों की पहचान भी अरुण यादव गुट के विधायक के तौर थी. कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के अलावा ऐसा कोई नेता फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है जो असंतुष्ट विधायकों का नेतृत्व कर उन्हें रोक सके. जो नेता सक्रिय दिखाई दे रहे हैं विधायक उनका नेतृत्व स्वीकार नहीं करते.
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जेपी धनोपिया कहते हैं कि कमलनाथजी हर विधायक से व्यक्ति स्तर पर बात करते रहते हैं. इसके बाद भी यदि विधायक इस्तीफा दे रहे हैं तो निश्चित तौर उन्हें कोई लालच दिया जा रहा होगा. कांग्रेस मार्च के बाद से ही 35 करोड़ में विधायक खरीदने का आरोप भाजपा पर लगा रही है. लेकिन, कोई प्रमाण अब तक पेश नहीं कर सकी है. विधायकों की लगातार घटती संख्या का असर कांग्रेस नेताओं के बयानों में भी महसूस किया जा सकता है. पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि जो बिके हुए लोग हैं उन्हें बातों से समझाना चाहिए, नहीं माने तो लातों का प्रयोग करना चाहिए.
इस्तीफों में भाजपा की रणनीति कांग्रेस को सत्ता से दूर करना
विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थी. भाजपा को 109 सीटें मिली थीं. दोनों ही दलों के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था. सबसे बड़े राजनीतिक दल के तौर पर कांग्रेस ने निर्दलियों के अलावा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की मदद से सरकार बनाई थी. पंद्रह माह में ही सरकार गिर गई. अब तक 25 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं. भाजपा और कांग्रेस के एक-एक विधायक का निधन होने से दो सीटें खाली हुईं हैं. विधानसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर 89 रह गई है. जबकि भाजपा 107 पर है. भाजपा ने झाबुआ के उप चुनाव में अपनी एक सीट गंवा दी थी. अब यदि कांग्रेस को सत्ता में वापसी करना है तो उसे सभी 27 सीटों को उप चुनाव में जीतना होगा. राज्य विधानसभा में कुल 230 विधायक हैं. साधारण बहुमत का आंकड़ा 116 का है. भारतीय जनता पार्टी को अपनी सरकार बनाए रखने के लिए सिर्फ 9 सीटें जीतना है. जो उसके लिए असंभव दिखाई नहीं पड़ता. भाजपा की रणनीति कुछ और विधायकों के इस्तीफे करा कर उप चुनाव में कांग्रेस की चुनौती बढ़ाने की है. बताया जाता है कि उज्जैन और रतलाम के कुछ और विधायक अगले सप्ताह में विधानसभा की सदस्यता से छोड़ सकते हैं. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)
First published: July 25, 2020, 1:04 PM IST