बेटे प्रदीप सिंह को कोचिंग करवाने के लिए उनके पिता ने अपना घर तक बेच दिया था
पेट्रोल पंप पर काम करने वाले पिता को बेटे को कोचिंग कराने के लिए घर बेचना पड़ गया. बेटे का भविष्य संवारने के लिए उन्होंने अपना घर बेच दिया. प्रदीप सिंह कहते हैं कि परीक्षा के दौरान उनकी मां की तबीयत खराब रहने लगी, लेकिन पिता ने इस बात की भनक उन्हें नहीं लगने दी
बेटे प्रदीप सिंह ने भी रोजाना 16 से 18 घंटे पढ़ाई की, कभी दोस्तों की बारात में नहीं जा सके और ना कभी किसी के जन्मदिन पार्टी में शामिल हो सके. वो इंदौर की चाट-चौपाटी कही जाने वाली मशहूर 56 दुकान और सर्राफा तक भी नहीं गए. बस उन्हें बैडमिंटन खेलने का शौक है, इसलिए जब भी समय मिलता था वो बैडमिंटन जरूर खेलते थे.
IAS बनना मेरा सपना था
इंदौर की देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के आईआईपीएस से बी.कॉम ऑनर्स की पढ़ाई के दौरान प्रदीप रात में जाग कर आठ-आठ घंटे यूपीएससी की तैयारी करते थे. पिछली बार 93वीं रैंक होने के कारण आईएएस बनने से चूक गए प्रदीप कहते हैं कि वो दिन आज के मुकाबले ज्यादा आनंददायक थे. क्योंकि 22 साल की उम्र में उन्हें पहली ही बार में इंडियन रेवेन्यू सर्विस (IRS) मिल गई थी. आईआरएस काफी अच्छी सर्विस है लेकिन आईएएस बनना मेरा ड्रीम था. इसलिए मैने इसके लिए फिर तैयारी की और आज उसमें भी सिलेक्ट हो गया. प्रदीप सिंह उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि पिता को नौकरी पर हमेशा जरूरत से ज्यादा मेहनत करते देखता था. आखिर आज मेरा आईएएस बनने का सपना पूरा हुआ.घर बेचकर भरी थी कोचिंग की फीस
प्रदीप सिंह बताते हैं कि पहली बार वो जब आईएएस की परीक्षा में सफल हुए थे तब परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. इंदौर में स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रदीप ने सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू कर दी थी. वो तैयारी के लिए दिल्ली जाना चाहते थे, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इस राह में बाधा बन गई थी. तब ऐसी स्थिति में पिता को बेटे को कोचिंग कराने के लिए घर बेचना पड़ गया. बेटे का भविष्य संवारने के लिए उन्होंने अपना घर बेच दिया. प्रदीप कहते हैं कि परीक्षा के दौरान उनकी मां की तबीयत खराब रहने लगी, लेकिन पिता ने इस बात की भनक उन्हें नहीं लगने दी.

UPSC की परीक्षा में टॉप करने के बाद अपनी मां से आशीर्वाद लेते हुए प्रदीप सिंह
दादा की अंतिम इच्छा पूरी की
यूपीएससी टॉप करने वाले प्रदीप सिंह के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी क्योंकि पिता मनोज सिंह पेट्रोल पंप पर काम करते थे. मां गृहणी हैं. जबकि प्रदीप के भाई एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. प्रदीप बताते हैं कि उनके दादाजी ने अंतिम इच्छा जाहिर की थी कि उनका पोता सिविल सर्विसेज में जाकर देश की सेवा करे. उनकी मां भी यही चाहती हैं कि उनका बेटा देश सेवा कर परिवार का नाम ऊंचा करे. प्रदीप ने अपनी मेहनत और लगने से अपने दादाजी और मां की यह इच्छा पूरी की है.