Buses are closed, so the father reached Dhar after cycling 105 kilometers to get his son’s exam, said – I am a laborer but will not let my son see this day | बसें बंद हैं, इसलिए बेटे काे परीक्षा दिलाने 105 किलोमीटर साइकिल चलाकर धार पहुंचा पिता, बोले- मैं मजदूर हूं, लेकिन बेटे काे ये दिन नहीं देखने दूंगा

Buses are closed, so the father reached Dhar after cycling 105 kilometers to get his son’s exam, said – I am a laborer but will not let my son see this day | बसें बंद हैं, इसलिए बेटे काे परीक्षा दिलाने 105 किलोमीटर साइकिल चलाकर धार पहुंचा पिता, बोले- मैं मजदूर हूं, लेकिन बेटे काे ये दिन नहीं देखने दूंगा


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धारएक मिनट पहले

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मंगलवार सुबह 4 बजे मांडू की सड़क पर शोभाराम और बेटा आशीष।

  • मनावर तहसील के बयड़ीपुरा के शाेभाराम के बेटे आशीष को 10वीं में तीन विषय की परीक्षा देना है
  • मजदूर पिता का कहना- बेटे को अफसर बनाना सपना है, गांव में ट्यूशन न होने से वह असफल रह गया था

सुनील तिवारी यह मामला मध्यप्रदेश के धार जिले का है। जहां 105 किमी साइकल चलाकर मजदूर पिता अपने बच्चे को परीक्षा दिलाने धार स्थित परीक्षा केंद्र पहुंचा। प्रदेश में रुक जाना नहीं अभियान के तहत 10वीं और 12वीं परीक्षा में असफल हुए छात्रों को एक और मौका दिया जा रहा है। इसी सिलसिले में मंगलवार को गणित का पेपर था।
दरअसल, जिले के मनावर तहसील के शोभाराम के बेटे आशीष को 10वीं की तीन विषय की परीक्षा देना है। परीक्षा केंद्र उसके घर से 105 किमी धार में है। बसें बंद होने की वजह से शोभाराम अपने बेटे को लेकर सोमवार रात 12 बजे साइकिल से ही निकल पड़े। धार में ठहरने की व्यवस्था न होने से तीन दिन का खाने का सामान भी अपने साथ रख लिया। वे रात में 4 बजे मांडू और मंगलवार सुबह पेपर शुरू होने से मात्र 15 मिनट पहले 7:45 बजे परीक्षा केंद्र पहुंचे। अब बुधवार को सामाजिक विज्ञान और गुरुवार को अंग्रेजी का पेपर है। तब तक दोनों पिता और पुत्र परीक्षा पूरी होने तक यहीं रुकेंगे।

मैं मजदूर हूं लेकिन बेटे काे ये दिन नहीं देखने दूंगा, इसलिए पैसे उधार लेकर चल पड़ा

शोभाराम ने कहा- मैं मजदूरी करता हूं, लेकिन बेटे को अफसर बनाने का सपना देखा है और इसे हर कीमत पर पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं। ताकि बेटा और उसका परिवार अच्छा जीवन जी सके। बेटा पढ़ाई में दिल-दिमाग लगाता है और हाेनहार है, लेकिन हमारी बदकिस्मती है कि कोरोना के कारण गांव में बच्चे की पढ़ाई नहीं हो पाई।

जब परीक्षा थी, तब ट्यूशन नहीं लगवा पाया, क्योंकि गांव में शिक्षक नहीं हैं, इसलिए बेटा तीन विषय में रुक गया। मैं पढ़ा-लिखा नहींं हूं, इसलिए कुछ नहीं कर पाया। रुक जाना नहीं याेजना रुके हुए बच्चाें काे ही आगे बढ़ाने वाला कदम है और बेटा इस माैके काे गंवाना नहीं चाहता था, इसलिए परीक्षा देने की जिद पकड़ गया।

धार 105 किमी दूर है और जाने का काेई साधन भी नहीं है, यह साेचकर कई बार बेटे की जिद भुलाने का मन किया, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया और चल दिया दूर सफर पर बेटे के साथ। तब रात के करीब 12 बज रहे थे। रास्ते में काेई दिक्कत न हो, इसलिए 500 रुपए उधार लिए। तीन दिन का राशन भी ले लिया, ताकि धार में रुकना पड़े तो हम बाप-बेटे पेट भर सकें।

रास्ते में 5 घाट भी पड़े। थके तो लगा थाेड़ा आराम कर लें, लेकिन कहीं देर न हाे जाए, इस डर से आराम भुला दिया। सुबह 4 बजे मांडू पहुंचा। सुबह करीब 7:45 बजे हम धार पहुंचे। जहां बेटे काे परीक्षा देनी थी, वहां हम परीक्षा शुरू हाेने से सिर्फ 15 मिनट पहले ही पहुंचे। बेटे के स्कूल में प्रवेश करते देख सारी थकान दूर हाे गई।

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