एमपी में उपचुनाव से पहले शिवराज सरकार ने सरकारी नौकरियों को लेकर बड़ा ऐलान किया है.
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में कुल 32 लाख 75 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड बेरोजगार (unemployed) हैं, जिनमें से करीब 3 लाख युवा दूसरे राज्यों के हैं, जिन्होंने यहां के बेरोजगार कार्यालय में अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया है.
मध्यप्रदेश में रोजगार कार्यालय में बाहरी राज्यों के उम्मीदवार भी पंजीयन करा रहे हैं. साल 2014 से रोजगार पंजीयन में रोजगार के लिए रजिस्टर कराने की व्यवस्था ऑनलाइन कर दी गई है, जिसकी बाद से बाहरी उम्मीदवार अपने आपको मध्यप्रदेश के किसी भी जिले का मूल निवासी बताकर पंजीयन करा रहे हैं. इसमें मार्कशीट मूलनिवासी जैसे दूसरे डॉक्यूमेंट अपलोड करने की शर्त भी नहीं रखी गई है. जबकि दूसरे राज्यों में कक्षा दसवीं की मार्कशीट अनिवार्य की गई है.
3 सालों से साल में सिर्फ एक-एक वैकेंसी
मध्यप्रदेश में बेरोजगार युवाओं का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता चला जा रहा है. प्रदेश में हर साल चार लाख नए बेरोजगार रोजगार पंजीयन कार्यालय में अपना पंजीयन करा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ लगातार 3 सालों में सिर्फ एक एक ही भर्ती निकली है. साल 2018 में शिक्षक पात्रता परीक्षा भर्ती का विज्ञापन आया था, जिसमें परीक्षा होने के बाद उम्मीदवार 2020 आने तक अपनी नियुक्ति का ही इंतजार कर रहे हैं. 2018 में जेल जेल प्रहरी के साथ ही सब इंजीनियर कंबाइंड ग्रुप 2 की भर्ती निकली थी. 2019 में मात्र एक एमपीपीएससी की भर्ती का विज्ञापन निकला था. साल 2020 आधा बीत जाने पर शिवराज सरकार में एकमात्र जेल प्रहरी की भर्ती निकली है. मात्र 282 पदोंं के लिए जेल प्रहरी के लिए भर्ती होनी है.ये भी पढ़ें: स्वच्छता रैंकिंग में लगातार चौथी बार देश में नंबर-1 बना इंदौर, BJP सांसद ने कहा- जश्न में शाम को जलाएं दीप, बजाएं शंख
बाहरी राज्यों के युवा ओपन कोटे से होते है शामिल
मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों में निकली भर्तियों में बाहरी राज्यों के युवा बड़ी संख्या में परीक्षा में शामिल होते हैं. मध्यप्रदेश में फॉर्म डालते समय एमपी का ही मूल निवासी होना या फिर दसवीं कक्षा की मार्कशीट एमपी बोर्ड से ही होना अनिवार्य नहीं की गई है. एमपी में बाहरी राज्यों के अनारक्षित वर्ग के युवाओं को ओपन कोटे से सरकारी विभागों में भर्तियों की प्राथमिकता दी गयी हैं. अनारक्षित कैटेगरी होने से आरक्षित कैटेगरी के युवा भी इसमें शामिल होते है. जबकि दूसरे राज्यों में बाहरी युवाओ को केवल 5 से 7 फीसदी ही प्राथमिकता दी जाती है. महाराष्ट्र में नोकरी में मराठी भाषा तो गुजरात में गुजराती भाषा अनिवार्य है. एमपी में दिग्विजय सिंह की सरकार में कक्षा 10वी की मार्कशीट अनिवार्य की गई थी, लेकिन विरोध के चलते फैसला वापस लेना पड़ा था.