MP: मामा शिवराज के एक फैसले से भांजियों की पढ़ाई पर लटकी तलवार… | – News in Hindi

MP: मामा शिवराज के एक फैसले से भांजियों की पढ़ाई पर लटकी तलवार… | – News in Hindi


मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) सरकार प्रदेश के लगभग 13 हजार सरकारी स्कूल बंद करने की तैयारी में है. सरकार अब उन प्राइमरी और मिडिल स्कूलों को बंद करने वाली है जहां 20 से कम स्टूडेंट्स हैं. यहां के बच्चों को दूसरे स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा.

Source: News18Hindi
Last updated on: August 23, 2020, 2:55 PM IST

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किसी ने मुझसे कहा कि आप किस दुनिया की बात कर रही हैं, आज के दौर में कौन बेटा और बेटी में भेदभाव करता है, अब तो माता-पिता के लिए दोनों ही बराबर हैं. केंद्र से लेकर तमाम राज्यों की सरकारें बेटियों के लिए दर्जनों योजनाएं चला रही हैं. जिसमें उनके जन्म से लेकर शादी तक की ज़िम्मेदारी लेना शामिल है. हालांकि, ये सब कहने और सुनने दोनों में ही अच्छा जरूर लगता है लेकिन जब हम जमीनी हकीकत की बात करें तो सच एकदम अलग होता है. 21वीं सदी में ही बेटियां कोख में मार दी जाती हैं. इसी सदी में उनका मानसिक, शारीरिक शोषण होता है, वो अपने ही घरों में बेटों के मुकाबले नहीं होती हैं. आज भी बेटी के पैदा होने पर चेहरा उदास होता है. फैमिली तब ही कम्पलीट मानी जाती है जब बेटी के साथ एक बेटा हो. खैर इन सब बातों के पीछे का मकसद ये है कि हम समाज का वो चेहरा स्वीकार करें जो वाकई है. बेटा और बेटी के फर्क को नकारा नहीं जा सकता है.

दरअसल बात कुछ पुरानी है, लेकिन लंबे वक्त से जहन में अटकी हुई थी. यूं ही बातों बातों में एक रोज दीदी ने बताया कि उनके स्कूल में लड़कियों की संख्या ज़्यादा है. दीदी सरकारी स्कूल में टीचर हैं. मैं इस बात पर खुश हुई कि चलो ये तो अच्छी बात है कि लड़कियां ज़्यादा पढ़ रही हैं, ग्रामीण इलाके के बावजूद उनके माता-पिता इतने जागरूक हैं कि बेटियों को पढ़ा रहे हैं. स्कूल में नाम लिखवाने के पीछे सरकार की तरफ से मिलने वाली बहुत सी योजनाएं भी हैं. मुझे लगा कि शायद ये एक स्कूल की बात हो. फिर सोचा कि आसपास के और सरकारी स्कूलों के बारे में भी पता किया जाए तो शायद नतीजे कुछ और निकलें. अलग-अलग इलाके के सरकारी स्कूलों की जानकारी लेने के बाद एक बात साफ हुई कि ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में अगर औसत निकालें तो लड़कियों की संख्या ज्यादा ही है. दूरदराज के इलाके छोड़ दें तो शहर के आसपास के गांवों में ये फर्क ज्यादा दिखा.

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के ही कुछ सरकारी स्कूलों के आंकड़े अगर हम देखें तो मैं जो बात कर रही हूं वो काफी हद तक सही साबित होती है. जिले से महज़ कुछ किलोमीटर दूर गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल दालौन में कुल 20 बच्चे हैं, जिनमें 3 लड़के और 17 लड़कियां हैं. वहीं गवर्नमेंट मिडिल स्कूल गठेवरा में कुल 186 स्टूडेंट्स हैं, जिसमें 106 लड़की और 80 लड़के हैं. ऐसे ही आंकड़े मिडिल स्कूल घूरा के भी हैं, जहां 79 लड़के और 108 लड़कियां हैं. ये महज कुछ उदाहरण हैं. ऐसा नहीं है कि जिले के लिंग अनुपात में बहुत ज़्यादा फर्क है. छतरपुर के ग्रामीण इलाकों में लिंग अनुपात की बात करें तो 1000 लड़कों की तुलना में यहां करीब 900 लड़कियां हैं.

अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है कि सरकारी स्कूलों में छात्राओं की संख्या ज़्यादा है. तो इसके पीछे की वजह वही है जो सदियों से चली आ रही है और वो है बेटा-बेटी में भेदभाव. कुछ स्कूलों के शिक्षकों से बात करने पर ये बात सामने आई कि माता-पिता बेटों को अच्छे प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाते हैं, लेकिन लड़कियों को नहीं. बात वही कि बेटी तो पराया धन है, शादी हो जानी है, उसके बाद अपने घर चली जाएगी. यानि कि बेटी को उसके करियर के लिए नहीं पढ़ाया जा रहा है, बल्कि ये महज़ एक खानापूर्ती है. कुछ माता-पिता ये कहते हैं कि इतना पैसा नहीं कि प्राइवेट स्कूल में बेटा-बेटी दोनों को पढ़ाया जाए तो फ़ैसला बेटे के हक़ में किया. जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं वो भी अपनी घर की बेटियों को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं. गांव में छात्राओं की संख्या होने की दूसरी बड़ी वजह सुरक्षा है. गांव से बाहर भेजने पर माता पिता बेटियों की सुरक्षा को लेकर परेशान रहते हैं.

अब आते हैं मध्य प्रदेश सरकार के उस फैसले पर जिससे सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं के भविष्य पर असर पड़ सकता है. शिवराज सरकार प्रदेश के लगभग 13 हजार सरकारी स्कूल बंद करने की तैयारी में है. इसके लिए सर्वे किया जा रहा है. सरकार अब उन प्राइमरी और मिडिल स्कूलों को बंद करने वाली है जहां 20 से कम स्टूडेंट्स हैं. यहां के बच्चों को दूसरे स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा. सरकार के इस फैसले से सबसे ज़्यादा नुकसान बेटियों का होना है जिनके लिए ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ नारा दिया गया है. अब सवाल उठता है कि अपने ही गांव में पढ़ने वाली छात्राएं क्या आसपास के इलाकों में पढ़ने के लिए जा पाएंगी? क्या उनके माता-पिता उन्हें पढ़ने के लिए भेजेंगे? क्या मुमकिन नहीं कि लड़कियों को इसलिए आगे कहीं और पढ़ने के लिए ना भेजा जाए क्योंकि जमाना ख़राब है? समस्याएं पहले भी लड़कियों के सामने रही हैं और आगे भी मुश्किल उनके ही सामने आनी हैं. स्कूल की एक मेधावी छात्रा को माता-पिता आगे इसलिए नहीं पढ़ा सकते, क्योंकि आठवीं या दसवीं के बाद गांव में स्कूल ही नहीं, लिहाजा वो लड़की जो एक अच्छी टीचर, इंजीनियर, डॉक्टर या अधिकारी बन सकती थी खेत और घर के काम में खट जाती है.

हम छोटे थे तो पापा कहते थे कि तुम लोग जब बड़े हो जाओगे तो बेटा-बेटी का भेद खत्म हो जाएगा. लेकिन आज बरसों बाद भी देखते हैं तो लगता है कि हम बहुत आगे नहीं बढ़े हैं. हां चीजें बदली हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में अब भी बेटियों का संघर्ष जारी है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद को बेटियों का मामा कहते हैं, तो उन्हें बीच का रास्ता निकालना होगा, ताकि उनकी कोई भांजी इसलिए ना पढ़ाई छोड़ दे कि उसका स्कूल बंद कर दिया गया. संभव है कि स्कूल बंद होने पर बेटियों की बची-खुची गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी. वो किसी तरह आठवीं, दसवीं या बारहवीं कर पातीं हैं. हर मां-बाप बेटी को शहर में पढ़ाते नहीं, हर मां-बाप बेटी को गांव से दूर भेजते नहीं. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)


ब्लॉगर के बारे में

निदा रहमानपत्रकार, लेखक

एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.

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First published: August 23, 2020, 2:55 PM IST





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