49 years back India won it first test series in England | इतिहास में आज: 49 साल पहले जब अंग्रेजी धरती पर बदली थी भारतीय क्रिकेट टीम की किस्मत

49 years back India won it first test series in England | इतिहास में आज: 49 साल पहले जब अंग्रेजी धरती पर बदली थी भारतीय क्रिकेट टीम की किस्मत


नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट में वैसे तो स्वर्णिम पल बहुत सारे हैं. चाहे 1951-52 में अपनी पहली टेस्ट जीत हो, 1968 में न्यूजीलैंड की धरती पर पहली विदेशी जीत हो, 1983 वर्ल्ड कप जीत कतार लंबी होती चली जाएगी, लेकिन टीम इंडिया की उपलब्धियां खत्म नहीं होंगी. लेकिन एक जीत ऐसी भी है, जिसे भारतीय क्रिकेट की किस्मत हमेशा के लिए बदलने वाली कहा जा सकता है. भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड को उसी की धरती पर पहली बार टेस्ट मैच और सीरीज में हराने का कारनामा 49 साल पहले 1971 में आज ही के दिन यानी 24 अगस्त को कर दिखाया था. यह जीत टीम इंडिया को अपना पहला टेस्ट मैच खेलने के 41 साल बाद और इंग्लिश धरती पर 6 टेस्ट सीरीज में 22 टेस्ट बिना जीत के खेलने के बाद हासिल हुई थी.

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तीन टेस्ट मैच की सीरीज में हो चुके थे दो ड्रॉ
अजीत वाडेकर की कप्तानी में इंग्लैंड गई भारतीय क्रिकेट टीम ने तीन टेस्ट मैच की सीरीज में अनोखा जज्बा दिखाया था. सीरीज के पहले दो टेस्ट मैच लॉर्ड्स और ओल्ड ट्रैफर्ड में खेले गए थे और आश्चर्यजनक तरीके से दोनों ड्रॉ रहे थे. इस कारण सभी की निगाहें द ओवल में खेले जाने वाले तीसरे टेस्ट मैच पर टिकी थी. अंग्रेजी अखबारों ने एकतरफ अपनी टीम को भारत जैसी टीम से नहीं जीत पाने के लिए जलील कर रखा था तो वहीं सारे अखबार ये भी उम्मीद जता रहे थे कि पिछले 26 टेस्ट मैच में एक बार भी नहीं हारी रे इलिंगवर्थ की कप्तानी वाली अंग्रेज टीम आखिरी टेस्ट मैच में भारतीय टीम को रौंदकर रख देगी. 

दूसरी तरफ भारतीय खेमे में अजब सी कशमकश छाई थी. हर कोई जानता था कि मैदान पर बैठा एक-एक दर्शक उनकी हार देखने की उम्मीद में आएगा. ऐसे में कप्तान वाडेकर ने टीम मीटिंग में एक ही बात कही और वो था हर एक खिलाड़ी से अपना 100 फीसदी जोर लगाने के लिए कहना. वाडेकर के इन शब्दों ने हर खिलाड़ी के मन में एक नया जोश जगा दिया था. वैसे भी हम भारतीयों में हर साल 15 अगस्त के आसपास खासतौर पर अंग्रेजों के खिलाफ एक विशेष जोश जाग ही जाता है तो कुछ वैसा ही इसे भी मान लीजिए. ऊपर से कुछ ही दिन पहले वेस्टइंडीज सरीखी खतरनाक टीम को उसी की धरती पर पहली बार सीरीज हराने का कारनामा करने का जोश भी था.

19 अगस्त को चालू हुआ तीसरा टेस्ट मैच
सीरीज का तीसरा और आखिरी टेस्ट मैच 19 अगस्त, 1971 को चालू हुआ. इंग्लैंड के कप्तान इलिंगवर्थ ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी ली. इंग्लैंड ने जैमसन के 82 रन, विकेटकीपर एलन नॉट के 90 रन और रिचर्ड हटन के 81 रन की मदद से 355 रन बनाए. भारत के काम चलाऊ तेज गेंदबाज एकनाथ सोलकर ने 28 रन देकर सबसे ज्यादा 3 विकेट लिए. जवाब में सुनील गावस्कर महज 6 रन बनाकर आउट हो गए. इस झटके से टीम इंडिया नहीं उबर सकी और पूरी टीम अजीत वाडेकर के 48, दिलीप सरदेसाई के 54 और फारुख इंजीनियर के 59 रन के बावजूद 284 रन ही बना सकी. रे इलिगवर्थ ने 70 रन देकर 5 विकेट लिए.

दूसरी पारी में छा गए चंद्रशेखर
भारत पहली पारी में 71 रन से पिछड़ चुका था. ऐसे में दूसरी पारी में इंग्लैंड के खिलाफ चमत्कार की जरूरत थी. यहां जलवा दिखाया अपनी पोलियोग्रस्त बाजू के कारण अजीब से एक्शन वाले लेग स्पिनर बीएस चंद्रशेखर ने. अमूमन सामान्य लेग स्पिनरों की तरफ गेंद को फ्लाइट कराने के बजाय चंद्रशेखर तेज गेंदबाज की तरह जोर से दम लगाकर गेंदबाजी करते थे. इस कारण उनकी गेंदों को असामान्य गति और उछाल मिलता था. इसी का लाभ उस दिन चंद्रशेखर को मिला और उन्होंने महज 38 रन देकर 6 विकेट लेते हुए इंग्लैंड को 101 रन पर समेट दिया. भारत को लक्ष्य मिला 173 रन जीत के लिए बनाने का. यह लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत के पास डेढ़ दिन का समय था, लेकिन पिच का व्यवहार असामान्य हो चला था.

गावस्कर चले शून्य पर फिर भी जीती टीम
टीम के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब भारत की सबसे बड़ी उम्मीद सुनील गावस्कर दूसरी पारी में भी जॉन स्नो की गेंद पर आते ही शिकार हो गए. उन्होंने 0 का स्कोर बनाया और टीम का स्कोर हुआ 2 रन पर 1 विकेट. इसके बाद अशोक मांकड भी 37 रन के टीम स्कोर पर चलते बने. यहां से अजीत वाडेकर और दिलीप सरदेसाई ने मोर्चा संभाला. वाडेकर ने 45 रन बनाकर स्कोर को 76 रन पर पहुंचाया था कि वे भी आउट हो गए. सरदेसाई को साथ मिला गुंडप्पा विश्वनाथ का. आखिर में 40 रन बनाकर सरदेसाई का भी धैर्य टूट गया. उस समय स्कोर पहुंचा था 124 रन. 10 रन बाद सोलकर भी लौट गए. 

स्टाइलिश फारुख बने जीत के सूत्रधार
यहां से विश्वनाथ को साथ मिला फारुख इंजीनियर का. आखिर में 170 रन पर विश्वनाथ 33 रन बनाकर आउट हुए, लेकिन इंजीनियर (नॉटआउट 28) ने 4 विकेट से जीत दिला दी. इस दौरान भारतीय टीम ने इतना धैर्य भरा खेल दिखाया कि 97 रन बनाने के लिए 3 घंटे का समय लगा दिया. इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिए भारतीय दर्शकों ने टेस्ट मैच के आखिरी दिन का टिकट खरीदा हुआ था. विजयी रन बनते ही पूरा मैदान भारतीय चेहरों से ही दिखाई दे रहा था, जिनके चेहरे पर अंग्रेजों को उन्हीं की धरती पर हराने की चमक ऐसी थी, माना आजादी दोबारा हासिल कर ली गई हो.

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