नई दिल्ली: आज भारतीय खेलों की सबसे बड़ी हस्ती मेजर ध्यान सिंह उर्फ दद्दा उर्फ हॉकी के जादूगर और भी न जाने के कितने नामों से पुकारे गए ध्यानचंद की 115वीं जयंती है. उनकी याद में इस दिन को देश के ‘खेल दिवस’ के तौर पर मनाते हैं यानी खेलों का सबसे बड़ा दिन. अपनी चमत्कारी हॉकी से यूरोप से लेकर अमेरिका तक सारी दुनिया में भारत का डंका पीटने वाले ध्यानचंद को लोग इस खेल के देवता की तरह मानते हैं, इसका अंदाजा वियना के स्पोर्ट्स क्लब में लगी उनकी उस मूर्ति से लगा सकते हैं, जिसमें किसी देवता की ही तरह ध्यानचंद के 4 हाथ और उनमें थामी गईं चार हॉकी स्टिक दिखाई गई हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हॉकी की दुनिया के इस सबसे बड़े जादूगर ने क्रिकेट के बल्ले से भी ठीक वैसा ही हुनर दिखाया था.
My tributes to the nation’s Hockey Wizard Olympian, MajorDhyanChand on his birth anniversary, celebrated as the NationalSportsDay. He was one of the greatest hockey players the world has seen & remains an inspiration. pic.twitter.com/7EYI2ARS7L
— Santosh Yadav ‘Shashi'(Stay home. Stay Safe) (@Santoshshashii) August 29, 2020
हॉकी से संन्यास लेने के बाद की है ये बात
29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में सेनाधिकारी समेश्वर सिंह के घर जन्मे ध्यानचंद ने देश के लिए हॉकी में जबरदस्त कारनामे दिखाने के बाद 1948 में इंटरनेशनल हॉकी से संन्यास ले लिया था. 1956 में सेना से मेजर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद ध्यानचंद हॉकी कोच के तौर पर राजस्थान के माउंट आबू चले गए. वहां हॉकी के मैदान के करीब ही क्रिकेट की भी एक टीम अभ्यास करती थी.
बात 1961 के मई महीने की है, एक दिन अचानक ध्यानचंद उठकर क्रिकेट के मैदान में चले गए और शौकिया अंदाज में बैट हाथ में उठाकर देखने लगे. किसी खिलाड़ी ने ताना मार दिया कि यह हॉकी स्टिक नहीं है. ध्यानचंद को यह बात चुभ गई और वे पिच पर बल्ला लेकर बिना पैड-ग्लव्स के ही पहुंच गए. उन्होंने गेंदबाजों को गेंद फेंकने के लिए कहा. इस नजारे के गवाह रहे लोगों का कहना है कि गेंदबाज गेंद फेंकते जा रहे थे और दद्दा ध्यानचंद बड़ी आसानी से गेंदों को हर दिशा में बाउंड्री के बाहर चौके-छक्के के लिए भेज रहे थे.
नहीं कर पाया एक भी गेंदबाज ध्यानचंद को बीट
बल्लेबाजी के दौरान ध्यानचंद ने इतना नियंत्रण कर लिया था कि एक भी गेंदबाज उन्हें बीट करते हुए अपनी गेंद विकेटकीपर के दस्तानों तक नहीं पहुंचा सका. बाद में जब उनसे यह पूछा गया कि आपने विकेट के पीछे गेंद ही नहीं जाने दी तो ध्यानचंद बोले, ‘जब 2 इंच के छोटे से ब्लेड वाली हॉकी स्टिक से हम गेंद को पीछे नहीं जाने देते तब यह तो क्रिकेट का 4 इंच चौड़ा बैट है. इससे गेंद कैसे पीछे जा सकती थी.’
Tributes to wizard of hockey Major Dhyan Chand ji on his jayanti.
A phenomenal legend, who won three Olympic gold medals & mesmerised millions through his magical technique. His talent, achievements & devotion towards the motherland continues to inspire the generations to come. pic.twitter.com/PLt1GgHCjs
— Amit Shah (@AmitShah) August 29, 2020
क्रिकेट के शहंशाह डॉन ब्रैडमैन को भी कर लिया था मुरीद
ध्यानचंद का क्रिकेट के मैदान पर जलवा दिखाने का इकलौता नजारा यही नहीं था बल्कि एक बार वे क्रिकेट के शहंशाह कहे जाने वाले महान सर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना मुरीद बना गए थे. दरअसल 1935 में एडिलेड में एक हॉकी मुकाबले के दौरान ब्रैडमैन ऑस्ट्रेलियाई टीम का हौसला बढ़ाने मैदान पर पहुंचे थे. वहां मैच के दौरान ध्यानचंद का प्रदर्शन देखकर वे ऐसे फैन हुए कि बाद में उनसे मिलने पहुंच गए. इस मुलाकात के दौरान ब्रैडमैन ने कहा कि ध्यानचंद ऐसे गोल करते हैं, जिस तरह क्रिकेट में बल्ले से रन निकलते हैं.
केएल सहगल को भारी पड़ गया था शर्त लगाना
एक बार मुंबई में पृथ्वीराज कपूर (राजकपूर के पिता, ऋषि कपूर के दादा और करीना कपूर व रणबीर कपूर के परदादा) भारतीय फिल्म इतिहास के महान गायक केएल सहगल को अपने साथ हॉकी मैच दिखाने ले गए. अपने जमाने के दिग्गज अभिनेता पृथ्वीराज कपूर को मेजर ध्यानचंद का खेल बेहद पसंद था. मैच के दौरान आधे समय तक ध्यानचंद और उनके छोटे भाई कैप्टन रूप सिंह एक भी गोल नहीं कर पाए. इस पर सहगल ने ताना मार दिया कि हमने तुम्हारा बहुत नाम सुना था, लेकिन तुम तो गोल ही नहीं कर पा रहे.
इस पर रूप सिंह ने उनसे शर्त लगा ली कि वे दोनों भाई जितने गोल करेंगे, सहगल उतने ही गाने गाकर सुनाएंगे. हॉफ टाइम के बाद ध्यानचंद और रूप सिंह ने मिलकर 12 गोल ठोक दिए. अगले दिन सहगल ने उन्हें अपनी कार भेजकर म्यूजिक स्टूडियो बुलाया, लेकिन गाना नहीं सुनाया. इस पर ध्यानचंद निराश हो गए. लेकिन सहगल अगले दिन ही उनकी प्रैक्टिस पर पहुंच गए और ध्यानचंद व रूप सिंह ही नहीं पूरी टीम को 12 के बजाय 14 गाने गाकर सुनाए. साथ ही टीम के हर खिलाड़ी को अपनी तरफ से 1-1 घड़ी भी तोहफे में दी.
Today is NationalSportsDay and I pay my tribute to the ‘The Wizard of Indian Hockey’ Major Dhyan Chand on his Birth Anniversary. The great sportsman displayed unparalleled dedication and skills in Hockey to bring accolades and honour to India MajorDhyanChand pic.twitter.com/ByCzcUgS4Y
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) August 29, 2020
16 साल की उम्र तक हॉकी नहीं खेली, 30 की उम्र तक जिताए 3 ओलंपिक गोल्ड
ध्यानचंद के पिता सेना के लिए हॉकी खेलते थे, लेकिन आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि 16 साल की उम्र तक ध्यानचंद ने हॉकी नहीं खेली थी बल्कि अखाड़े में पहलवानी करते थे। इसके बावजूद उन्होंने 30 साल की उम्र तक देश को तीन ओलंपिक गोल्ड जिता दिए थे. 16 साल की उम्र में पिता ने उन्हें सेना में भर्ती करा दिया. वहां उन्हें हॉकी खेलने को कहा गया तो रात-दिन बिना समय देखे इतनी मेहनत की कि लोग उन्हें चांद कहने लगे. यहीं से उनका नाम ध्यान सिंह से ध्यानचंद हो गया. चार साल सेना के लिए ही खेलने वाले ध्यानचंद को 1926 में भारतीय टीम में खेलने का मौका मिला. इसके बाद 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा गोल दागते हुए देश को हॉकी का पहला ओलंपिक गोल्ड जिताया.
अमेरिका और जर्मनी को पढ़ाया था हॉकी का पाठ
इसके बाद 1932 के ओलंपिक फाइनल में ध्यानचंद ने 8 और रूप सिंह ने 10 गोल दागते हुए अमेरिका की टीम को 24-1 से हरा दिया, जो अगले 86 साल यानी 2018 तक एक मैच में सबसे ज्यादा गोल का रिकॉर्ड था. यह रिकॉर्ड भारतीय हॉकी टीम ने ही एशियाई खेलों में हांगकांग को 26-0 से हराकर तोड़ा है. इसके बाद ध्यानचंद ने 30 साल की उम्र में अपने आखिरी ओलंपिक यानी 1936 के बर्लिन ओलंपिक के फाइनल मैच में 14 अगस्त को जर्मनी की टीम का गुरुर 8-1 से हराकर तोड़ा तो इस जीत में ध्यानचंद के 3 गोल थे.
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने उन्हें डिनर पर बुलाया और जर्मनी की सेना में मेजर का पद देने का प्रस्ताव रखा. बदले में ध्यानचंद को जर्मनी के लिए हॉकी खेलनी थी. ध्यानचंद ने अपनी जान हिंदुस्तान में बसने की बात कहते हुए इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.