Congress should not consider party’s crisis as constitution crisis | पार्टी के संकट को संविधान का संकट न समझे कांग्रेस

Congress should not consider party’s crisis as constitution crisis | पार्टी के संकट को संविधान का संकट न समझे कांग्रेस


इंदौर3 मिनट पहले

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कैलाश विजयवर्गीय, राष्ट्रीय महासचिव, भाजपा

जब से कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने अध्यक्ष पद को लेकर चिट्ठी लिखी है, तब से कांग्रेस के एक धड़े की धड़कनें बहुत तेज हो गई हैं। आंख पर पट्टी लपेटकर बैठे इस धड़े के लोगों में इंदिरा गांधी के परिवार के प्रति अपनी वफादारी दिखाने की होड़ लग गई है। गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और विवेक तन्खा जैसे लोगों ने पत्र लिखकर कांग्रेस में अंदरूनी लोकतंत्र की जो बात उठाई है, उसे खारिज करने के लिए अचानक कुछ लोगों को गांधीजी और बाबा साहेब आंबेडकर याद आने लगे हैं। सच के इस प्रहार से इंदिरा परिवार को बचाने के लिए ये लोग लोकतंत्र और संविधान के संकट की घिसी -पिटी कैसेट बजाने लगे हैं।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री इन लोगों में सबसे आगे हैं। अपनी सरकार बचाने में नाकाम रहे कमलनाथ जी ने पहले दिग्विजय जी पर ये ठीकरा फोड़ा और अब संविधान पर फोड़ना चाहते हैं। गांधी परिवार के प्रति भक्ति भी दिखानी है और मुख्यमंत्री के रूप में अपने अहंकार और अक्षमता को जस्टिफाई भी करना है। इसलिए बिना किसी संदर्भ के अचानक उन्हें संविधान की याद आ गई। गांधीजी भी याद आ गए और ऐसे याद आए कि आपातकाल में संविधान और लोकतंत्र का गला घोंटने वाले उनके हाथ अपनी आंखों से आंसू पोंछने लगे।

मुख्यमंत्री के रूप में जो व्यक्ति जनता तो छोड़िए, अपनी ही पार्टी के विधायक और मंत्रियों को मिलने का समय नहीं देता था, उसे अचानक लगने लगा कि भारतीय संविधान की नींव हिल गई है। जिस व्यक्ति ने अपने प्रभाव क्षेत्र में 20 साल से कांग्रेस को अपने एक एजेंट के हवाले (20 साल से छिंदवाड़ा के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर एक ही व्यक्ति बैठा है) कर रखा है, उसे लोकतांत्रिक मूल्यों की चिंता होने लगी। 77 में जिस व्यक्ति ने कॉकस का हिस्सा बनकर भारत के लोकतंत्र और संविधान को घुटने पर टिका दिया था, उसे संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा की फिक्र होने लगी।
(इस लेख में दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं।)

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