त्वरित टिप्पणी: सरकारी नौकरी में अन्य राज्य के लोगों की राह रोककर बचेगी शिवराज सरकार? | bhopal – News in Hindi

त्वरित टिप्पणी: सरकारी नौकरी में अन्य राज्य के लोगों की राह रोककर बचेगी शिवराज सरकार? | bhopal – News in Hindi


पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह. (फाइल फोटो)

बेरोजगारी (Unemployment) मध्य प्रदेश में एक बड़ा मुद्दा रहा है. व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की परीक्षाओं में घोटाला सामने आने के बाद राज्य में सरकारी नौकरियों पर एक तरह से ब्रेक लगा हुआ है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) द्वारा सरकारी नौकरियों में अन्य राज्यों के उम्मीदवारों की भर्ती पर रोक लगाए जाने के पीछे बड़ा कारण 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव को माना जा रहा है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी चौहान के इस निर्णय का विरोध खुलकर नहीं कर पा रही है. शिवराज सिंह चौहान के पिछले कार्यकाल में भी अन्य राज्यों के उम्मीदवारों को मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी देने पर रोक लगाए जाने की कोशिश हुई थी, लेकिन इसे राज्यों के बीच टकराव बढ़ने की संभावना के चलते टाल दिया गया था. मध्य प्रदेश में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) द्वारा आयोजित परीक्षाओं का घोटाला सामने आने के बाद राज्य में सरकारी नौकरियों पर एक तरह से ब्रेक लगा हुआ है

इस कथित घोटाले के कारण शिवराज सिंह चौहान की राजनीति छवि को भी जबरदस्त धक्का लगा था. आम चुनाव में भाजपा के हाथ से सरकार भी निकल गई थी. शिवराज सिंह चौहान 13 साल तक लगातार राज्य के मुख्यमंत्री रहे. उनकी लोकप्रियता में कमी को हार की बड़ी वजह के तौर पर देखा गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके 22 विधायकों के कांग्रेस से इस्तीफा दिए जाने के कारण राज्य में भाजपा फिर से सत्ता में लौटी है.

 उप चुनाव से पहले चेहरे की लोकप्रियता बढ़ेगी?

शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य के मुख्य्मंत्री बनाए गए हैं. 27 विधानसभा सीटों के उप चुनाव उनके लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती है. राज्य में युवाओं के लिए सरकारी नौकरी में अवसर बढ़ाकर वे अपनी लोकप्रियता स्थापित करने में लगे हुए हैं. मुख्य विपक्षी दल बेरोजगारी के मुद्दे पर लगातार चौहान को निशाना बनाती रही है. शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों का प्रतियोगी परीक्षा में रास्ता रोकने के लिए आयु सीमा में छूट का लाभ नहीं दिया था. इस बार चौहान ने अन्य राज्यों के उम्मीदवारों की इंट्री पूरी तरह से रोक दी है. चौहान इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश भी करेंगे.ओबीस आरक्षण कितना भारी पड़ेगा फैसला ?

राज्य की सरकारी नौकरियों में अन्य राज्यों के उम्मीदवारों की इंट्री रोकने की एक महत्वपूर्ण वजह अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण भी है. कमलनाथ सरकार ने सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण चौदह से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया था, जिससे कुल आरक्षण का प्रतिशत 63 प्रतिशत हो गया है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं किया जा सकता. कमलनाथ सरकार के इस फैसले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. कोर्ट ने निर्णय के क्रियान्वयन पर रोक लगा रखी है. इस रोक के कारण ही राज्य लोकसेवा आयोग ने अपनी परीक्षाओं को टाल रखा है. कमलनाथ सरकार के फैसले के कारण आरक्षण पचास प्रतिशत की अघिकतम सीमा को पार कर रहा है. शिवराज सिंह चौहान खुद पिछड़ा वर्ग से हैं. ऐसे में यदि वे ओबीसी आरक्षण घटाते हैं तो उप चुनाव में नुकसान होना तय है. इस कारण कोर्ट में ही मामले को लटकाए रखने की कवायद चल रही है.

ये भी पढ़ें: सीनियर लीडर रघुवंश प्रसाद सिंह की तबीयत बिगड़ी, वेंटिलेटर सपोर्ट पर, दिल्ली AIIMS में भर्ती 

सिंधिया से है लोकप्रियता का मुकाबला

ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आ जाने के बाद पार्टी के आतंरिक समीकरण भी बदलते दिखाई दे रहे हैं. सिंधिया एक नए शक्ति केन्द्र के तौर पर उभर रहे हैं. युवाओं में उनका आकर्षण भी देखने को मिलता है. पार्टी के भीतर चौहान के सामने किसी नेता की कोई चुनौती नहीं थी. कांग्रेस की सरकार गिराने में सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण चौहान पर अब उनका(सिंधिया) और पार्टी का दबाव भी दिखाई दे रहा है. सरकार की वित्तीय स्थिति कमजोर होने के कारण वे रियायती योजनाओं के जरिए लोकप्रियता हासिल करने वाले फैसले नहीं ले पा रहे हैं. नौकरियों में अन्य राज्य के बेरोजगारों का रास्ता बंद करने के निर्णय में कोई वित्तीय भार भी अतिरिक्त नहीं है. देर-सबेरे इस फैसले को भी कोर्ट में चुनौती मिलनी है, लेकिन चौहान के खाते में लोकप्रियता दर्ज हो जाएगी. मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा कहते हैं कि इस तरह का फैसला लेना आसान काम नहीं है. मुख्यमंत्री चौहान ने राज्य के लोगों के हित में ही फैसला लिया है. फैसले से एतराज कांग्रेस को भी नहीं है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कटाक्ष भरे लहजे में कहा कि शिवराज सिंह चौहान घोषणावीर हैं. यह भी कहीं महज घोषणा न रह जाए.

शिवराज सिंह चौहान की सरकार के इस फैसले के बाद अन्य हिन्दीभाषी राज्यों की सरकारों पर भी इस तरह का फैसला लेने के लिए दबाव बनेगा. राजस्थान में विधानसभा के आम चुनाव में बेरोजगारों ने इस तरह की ही मांग सभी राजनीतिक दलों के सामने रखी थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने राज्य के बेरोजगारों के हित के लिए नियमों में ऐसे प्रावधान पहले से ही कर रखे हैं, जिनके कारण बड़ी संख्या में अन्य राज्य के लोग सरकारी नौकरियों में स्थान नहीं मिल पाता है. छत्तीसगढ़ ने अपने राज्य के युवाओं के स्थानीय भाषा का बंधन लगा रखा है. मूल निवासी होने के नियम कड़े कर भी रोक लगाई गई है.





Source link