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- 60.42 Percent Parents Said Children Have Become More Irritable Than Before Due To Lockdown.
भोपाल16 मिनट पहले
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- सेल्फ स्टडी नहीं कर रहे बच्चे, ऑनलाइन क्लासेस की थकान, आलस और चिड़चिड़ापन बढ़ा
- 80 प्रतिशत से अधिक बच्चे ऑनलाइन क्लास के लिए कर रहे मोबाइल फोन का इस्तेमाल
कोरोना काल में बचपन विषय पर हुए भास्कर के सर्वे में ज्यादातर अभिभावकों ने कहा कि बच्चे सेल्फ स्टडी नहीं कर रहे हैं। यदि करते भी हैं तो 30 मिनट या एक घंटे। अभिभावकों का कहना है कि ऑनलाइन क्लासेस और खेलकूद बंद हैं और बच्चों का दिनभर में स्क्रीन टाइम 4 से 5 घंटे हो चुका है।
लंबे समय तक ऑनलाइन रहना और फिजिकल एक्सरसाइज नहीं होने के कारण बच्चे आलसी हो गए हैं। उनमें चिड़चिड़ापन, आंखों में जलन, दिनचर्या में अनियमितता की समस्या खड़ी हो गई है। माता-पिता की शिकायत है कि बच्चों को मोबाइल फोन के कम इस्तेमाल के लिए कहो तो वे रूठ जाते हैं या जिद करने लगते हैं।
- भास्कर एक्सपर्ट की सलाह
बच्चों को बैठाकर पढ़ाने के बजाय उनके साथ खेलते हुए उन्हें सिखाएं

डॉ. शीला भम्बल, पूर्व एचओडी शिशु रोग विभाग, जीएमसी भोपाल
वैश्विक महामारी का यह ऐसा दौर है, जो 100 साल बाद हमारे सामने आया है। जिस तरह यह बच्चों के लिए नया है, वैसे ही यह युवा और बुजुर्गों के लिए भी नया अनुभव है। इन हालातों में हम कुछ समझदारी भरे कदम उठाकर बच्चों की मदद कर सकते हैं।
खेलकूद: हम उम्र बच्चों के साथ वक्त बिताना उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है। इसकी कमी का बच्चों पर नकारात्मक असर होता है। जिन बच्चों को खेलने का वक्त नहीं मिलता वे घर में घुटन महसूस करते हैं। छोटे बच्चों के अभिभावक घर में ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चे खुलकर कम से कम एक घंटा रोज खेल सकें।
उन्हें बैठाकर पढ़ाने की कोशिश बिल्कुल भी न करें, बल्कि उनके साथ खेलते हुए उन्हें सिखाएं। वहीं बड़े बच्चों के अभिभावक ध्यान दें कि अनावश्यक उनके साल खराब होने या भविष्य के कॅरियर के बारे में चिंता न करें। उन्हें स्पूनफीडिंग की जरूरत नहीं हैं, बल्कि उन्हें 6 से 7 घंटे की पर्याप्त नींद लेनें दे।
मोटिवेशन: बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में एंडोर्फिन हार्मोन का सर्वाधिक योगदान होता है। बच्चों के खुश रहने पर शरीर में इस हार्मोन का स्तर बेहतर और संतुलित रहता है। इसलिए अभिभावकों को बच्चों के सामने कभी भी अपनी निराशा, चिंता, डर और गुस्सा प्रकट नहीं करना चाहिए। बच्चों के साथ हमेशा हमदर्दी से पेश आएं, उन्हें प्रोत्साहित करें।
खानपान: बच्चों को फैटी होने या आलसी होने से बचाने के लिए जरूरी है कि अंकुरित अनाज व दालें, नींबू पानी, छाछ, दही और केला व पपीता जैसे फल उनकी रोजाना डाइट में शामिल करें।
आंखों की देखभाल: ऑनलाइन क्लास के बीच मिलने वाले गैप में बच्चों को खुली और ताजा हवा में जाकर अपनी आंखों को छपकाना चाहिए। इसके बाद ठंडे पानी से चेहरे और आंखों को धोने से आराम मिलेगा।
मोबाइल फोन पर निगरानी: 80 फीसदी बच्चे मोबाइल फोन से ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं। मोबाइल फोन में और भी तमाम प्रकार के आकर्षण मौजूद हैं, इसलिए काफी सावधानी से ध्यान रखें कि बच्चे उसका ऑनलाइन क्लास में ही इस्तेमाल करते हुए कभी भटक न जाएं।
शिक्षक-बच्चों के बीच टू वे इंटरेक्शन होना जरूरी

डॉ. पंकज शुक्ला, शिशु रोग विशेषज्ञ एवं एडिशनल डायरेक्टर हेल्थ
मुझे लगता है कि जल्द ही बड़े बच्चों के स्कूल खोले जा सकते हैं, लेकिन हमें मौजूदा वास्तविकताओं के आधार पर तैयारी रखना चाहिए। ऑनलाइन क्लास को और प्रभावी बनाने के लिए तीन कदम उठाए जा सकते हैं।
- ऑनलाइन क्लास में शिक्षक एवं बच्चों के बीच केवल वनवे इंटरेक्शन होता है। इसे टू वे होना चाहिए। बच्चों को प्रश्न पूछने का मौका देने के साथ ग्रुप डिस्कशन भी कराया जाना चाहिए।
- छोटे बच्चों को केवल सामाजिक व्यवहार की जानकारी और मोटिवेशनल स्टोरी सुनाने तक ही सीमित रखा जाए। संभव हो तो ऑफलाइन मोड में अभिभावक को इसका कंटेट भेजा जाए। जिसे वे बच्चों के मूड एवं खाली समय के अनुसार खुद अभ्यास करा सकें।
- अलग-अलग शिक्षक के अलग-अलग विषय पर लेक्चर्स के वीडियो भेजे जाएं, जिसे वे ऑफलाइन अपनी सुविधा के अनुसार देख सकें।
यदि स्कूलों में फिजिकल क्लासेस शुरू की जाएं तो ये उपाय जरूर अपनाना चाहिए
- स्कूल में एंट्री के बाद क्लासरूम में स्क्रीनिंग की जाए। सैनिटाइजर और मास्क की व्यवस्था स्कूल में ही की जाए। गेट पर स्क्रीनिंग नहीं की जाए, क्योंकि लाइन लगाकर एंट्री से सोशल डिस्टेन्सिंग संभव नहीं हो पाएगी।
- स्कूल टाइम को आधा कर दिया जाए और स्कूल को दो पालियों में बांट दिया जाए। उदाहरण के तौर पर एक क्लास में 40 बच्चे हैं तो 20 को सुबह की पाली में और बाकी 20 को दोपहर की पाली में बुलाया जाए।
- ध्यान रहे बच्चे लंच किसी के साथ भी शेयर न करें, क्योंकि लंच में सोशल डिस्टेंसिंग रखना मुश्किल है। पीने का पानी भी खुद ही घर से लाएं।
- स्कूल शुरू करने से पहले सभी स्टाफ का कोविड-19 रैपिड टेस्ट अनिवार्य रूप से कराया जाए। स्टाफ की प्रतिदिन हेल्थ स्क्रीनिंग की जाए।
- कक्षाओं में बच्चों को एक सीट खाली छोड़कर बैठाने की व्यवस्था की जाना चाहिए।
- हर सप्ताह कोविड-19 के बारे में अपडेट जानकारी देते हुए बच्चों की काउंसलिंग की जाए।
अभिभावक बच्चों के साथ बच्चों की तरह ही खेलें

डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव एचओडी शिशु रोग विभाग, जीएमसी, भोपाल
हर बच्चा बड़ा होकर स्कूल के दोस्तों से सबसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करता है, इसलिए यह जीवन का सबसे कीमती वक्त और अवसर है। बचपन में स्कूल से थोड़ा ब्रेक, थोड़ी छुट्टियां अच्छी लगती हैं, लेकिन मौजूदा लंबा अंतराल उबाऊ बन गया है। विशेष रूप से कामकाजी मांएं जब घर में बच्चे को छोड़कर जाती हैं तो दिनभर मानसिक दबाव में काम करती है। दूसरा जिन घरों में अभिभावक वर्क फ्रॉम होम वाली स्थिति में हैं, वहां भी स्थितियां ठीक नहीं हैं। अभिभावक हर समय बच्चों की निगरानी कर रहे हैं। मुझे लगता है कि पूरे समय घर में एक जैसे लोगों के बीच उबाऊ महौल से बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं। उनमें व्यवहार संबंधी परेशानियां आ रही हैं। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे बच्चों के साथ कैसे बेहतर तालमेल बैठाएं।
- अभिभावकों को बच्चों के साथ बच्चों की तरह ही खेलना चाहिए। खासकर छोटे बच्चों के साथ, उनके साथ डांसिंग, सिंगिंग कर खुद के अंदर के बच्चे को जगाना होगा। यह आपके बच्चों की मेंटल हेल्थ को ठीक रखेगा और बच्चों के साथ आपके रिश्ते को नया आयाम देगा।
- ऑनलाइन क्लास को लेकर बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि स्कूलों में जहां बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल पर पाबंदी थी, अब वही मोबाइल उनके हाथों में आ गए हैं। ऑनलाइन कक्षाओं की पहल मजबूरी में की गई है, लेकिन इसमें पसर्नल टच का अभाव होता है। अतः शुरुआत का कौतूहल अब बोरियत में बदल गया है।
- मौजूदा समय जल्दी ही बदलेगा। इसलिए बच्चों को डांट-फटकार के बजाए प्यार से समझाएं, खुद को पॉजिटिव रखें। सुबह-सुबह जब भीड़ कम होती है, बच्चों को कुछ देर बाहर निकलकर खुली हवा में जाने दें। ऐसे खेल जिनमें डिस्टेंसिंग रहती है, बच्चों को खेलने दें। ऑनलाइन क्लास में हर एक घंटे में गैप होना चाहिए। बच्चों को खाना और पानी खुद अपने हाथ से लेने को प्रेरित करें, जिससे घर उनकी फिजिकल एक्टिविटी बनी रहे। तला हुआ आहार बच्चों को कम से कम दें।