Scrappage Policy: देश में लग रहा पुरानी गाड़ियों का अंबार, कारगर नीति के लिए CSE ने दिए ये सुझाव | business – News in Hindi

Scrappage Policy: देश में लग रहा पुरानी गाड़ियों का अंबार, कारगर नीति के लिए CSE ने दिए ये सुझाव | business – News in Hindi


नई दिल्ली. देश में पुरानी गाड़ियों का अंबार और उनसे निकलने वाला प्रदूषित धुंआ आम जनता के साथ-साथ सरकारों के लिए भी बड़ी चुनौती पैदा कर रहा है. एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 तक देश में 2.18 करोड़ से अधिक ऐसी पुरानी गाड़ियों का अंबार लगने वाला है, जिनका जीवन खत्म हो चुका है. CSE के विशेषज्ञों की मानें तो ऐसे अलार्मिंग स्थिति में देश में एक प्रभावकारी स्क्रैपेज नीति (Scrappage Policy) तैयार कर लागू करने की जरूरत है. ताकि पुराने गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषित धुंओं (Air Pollution) को कम किया जा सके और पर्यावरण को होने वाला नुकसान भी कम हो.

भारी भरकम ड्यूटी वाले पुराने वाहनों को BS-6 वाहनों से बदलने पर वित्तीय प्रोत्साहन देने की व्यवस्था होनी चाहिए. स्क्रेपेज नीति को इकॉनोमिक रिकवरी और वित्तीय प्रोत्साहन से लिंक किया जाना चाहिए. पुराने पर्सनल कार और दुपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों से बदलने पर इंसेटिव देने का प्रावधान होना चाहिए.

CSE ने क्या दिए सुझाव?

>> हेवी ड्यूटी वाले पुराने डीजल वाहनों को BS-6 वाले वाहनों से बदलने को प्राथमिकता देनी चाहिए>> वित्तीय प्रोत्साहन का फायदा पर्सनल वाहनों मसलन कारों और दुपहिया वाहनों के लिए देना चाहिए

>> वोलेंटरी इंसेंटिव (Voluntary incentives) को इलेक्ट्रिक वाहनों से लिंक किया जाना चाहिए, ताकि साल 2030 तक 30 से 40 फीसदी इलेक्ट्रिक वाहन का लक्ष्य को हासिल किया जा सके.

>> CPCB दिशानिर्देशों को नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (National Clean Air porgram) से लिंक कर सभी राज्यों में अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए.

>> EPR को शामिल करने के लिए AIS-129 में सुधार किया जाना चाहिए.

>> राज्य स्तरीय स्क्रैपेज पॉलिसी की जरूरत है जो राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने से केंद्रित हो. मैटेरियल रिकवरी,डिस्पोजल और डिसमेंटलिंग (किसी भी चीज को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना) के लिए स्पष्ट स्क्रेपेज इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जाना चाहिए.

>> इलेक्ट्रिक व्हीकल और अनफिट व्हीकल के चयन का क्राइटेरिया राष्ट्रीय नीति में होना चाहिए

>> स्क्रैपेज के लिए एक कॉमन इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाना चाहिए. जिसमें प्रदूषण नियंत्रण और खतरा संभावित क्षेत्र के बारे में व्यवस्था हो.

>> इसके अलावा पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हतोत्साहित किया जाय. जैसे कि एमीशन इंस्पेकशन (Vehicles Emission inspection) को बढ़ाया जाय,लो एमीशन जोन की व्यवस्था हो या फिर कर लगाये जाने जैसी व्यवस्था की जा सकती है.

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देश में पुराने वाहनों की ये है स्थिति
देश में कितने वाहन ऐसे है जिनकी कार्य क्षमता जीवन समाप्त हो चुकी है, इसका ठीक-ठीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. लेकिन अगर देश के सभी RTO अपने डेटाबेस को अपडेट कर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road, Transport & Highways) के वाहन प्लेटफॉर्म से लिंक कर देते है तो एक ऑथेंटिक डेटा तैयार किया जा सकता है. अच्छी बात ये है कि भारत में पुराने वाहनों को आयात करने की अनुमति नहीं है, लेकिन घरेलू बाजार में ही कई वाहन एक हाथ से दूसरे हाथों में बेचे और खरीदे जाते है. कई वाहन ऐसे भी होते है जो पर्यावरण और सड़क यातायात के अनुकूल नहीं होते.

CPCB द्वारा 6 शहरों में कराये गए एक सर्वे में ये खुलासा हुआ था कि 13 फीसदी ट्रक, 8 फीसदी बसें, 5 फीसदी तीन पहिया वाहन, 3 फीसदी कारें और 7 फीसदी दुपहिया वाहन ऐसे है जो 15 सालों से अधिक पुराने हैं. अगर स्क्रैपेज पॉलिसी में पुराने वाहन रखने की सीमा 20 साल निर्धारित की जाती है तो साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक 69 फीसदी पंजीकृत वाहनों को चलाने की अनुमति मिल जायेगी.

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सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी एक आंकड़ा के मुताबिक कुल वाहनों में व्यावसायिक वाहन मसलन ट्रक,बस और तिपहिया वाहनों का अनुपात महज 5 फीसदी है लेकिन ये 65-70 फीसदी वाहन प्रदूषण उत्सर्जित करते है. इनमें से 2000 से पहले बने वाहनों से 15 फीसदी वाहन प्रदूषण पैदा हो रहा है. इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन द्वारा लगाये गए एक अनुमान के मुताबिक 2003 से पहले बने वाहन आधे से अधिक प्रदूषण फैलाते है. वहीं आईआईटी मुंबई द्वारा देश के कई शहरों में किए गए अध्ययन के मुताबिक साल 2005 से पहले बने वाहन 70 फीसदी प्रदूषण उत्सर्जित करते हैं. बीएस-1 की तुलना में बीएस-6 मापदंड़ों वाली गाड़ियां 35 गुना कम कार्बन उत्सर्जन करती है.





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