Madhya Pradesh Social Worker Amarjit Singh Passes Away In Indore | इंदौर में समाजसेवी सूदन का निधन, कई के कीड़े लगे घावों को खुद साफ किया, तालाब में डूबी लड़की का तन ढंकने के लिए उतार दी थी अपनी पगड़ी

Madhya Pradesh Social Worker Amarjit Singh Passes Away In Indore | इंदौर में समाजसेवी सूदन का निधन, कई के कीड़े लगे घावों को खुद साफ किया, तालाब में डूबी लड़की का तन ढंकने के लिए उतार दी थी अपनी पगड़ी


इंदौर29 मिनट पहले

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समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन दिन-रात गरीबों की सेवा में लगे रहते थे।

  • लंबी बीमारी के बाद समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन ने निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली
  • सूदन ने करीब 50 सालों तक सामाजिक कार्य करते हुए कई लोगों को नया जीवन दिया

बेसहारा और मजबूरों के पापाजी समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन नहीं रहे। मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद उन्होंने निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। सूदन ने करीब 50 सालों तक सामाजिक कार्य करते हुए कई लोगों को नया जीवन दिया तो कई का अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया। कई के कीड़े लगे घावों को खुद साफ किया। उनकी इंसानियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2006 में बिलावली तालाब में डूबी लड़की का तन ढंकने के लिए कपड़ा नहीं मिलने पर अपनी पगड़ी उतार दी थी। इसके लिए उन्हें समाज के रोष का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कहा था कि ऐसे काम के लिए वे बार-बार ऐसा करेंगे।

सड़क किनारे, बस स्टैंड कहीं भी बेसहारा दिखे, तो सूदन मदद को खड़े रहते थे।

सड़क किनारे, बस स्टैंड कहीं भी बेसहारा दिखे, तो सूदन मदद को खड़े रहते थे।

मानवता की मिसाल थे सूदन
पुलिस कंट्रोल रूम पर यदि कोई व्यक्ति फोन कर ये सूचना देता है कि शहर की किसी सड़क, गली या मोहल्ले में कोई बीमार व्यक्ति पड़ा है, जिसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं, दुर्गन्ध आ रही है तो वहां से उसे 9926302002 या 9425074227 ये दो नंबर दिए जाते थे। ये नंबर किसी अस्पताल या एम्बुलेंस के नहीं, बल्कि इंदौर में रहने वाले समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन के थे। जैसे ही उनके पास ऐसे किसी व्यक्ति की सूचना आती है, वैसे ही वे अपनी बाइक उठाकर उसके पास पहुंच जाते और फिर अपनी बाइक पर या रिक्शा से या फिर एम्बुलेंस बुलाकर उसे ज्योति निवास या किसी ऐसे आश्रम ले जाते थे, जहां वे उसके घाव को किसी तरह साफ कर सकें। उसके घाव को साफ करके कीड़ों को बाहर निकालकर या तो वो उसे अस्पताल में भर्ती करा देते थे या फिर किसी वृद्धाश्रम या अनाथ आश्रम में पहुंचा देते थे।

इलाज के साथ कई लोगों का अंतिम संस्कार भी किया।

इलाज के साथ कई लोगों का अंतिम संस्कार भी किया।

ऐसी है मदद की मिसाल बने सूदन की कहानी
खंडवा के रहने वाले सूदन को पीड़ितों की सेवा करने की सीख उन्हें अपने पिता से मिली थी। मदद का सिलसिला 14 साल की उम्र से शुरू हुआ था। जब एक बार वे स्कूल जा रहे थे। यहां एक बुजुर्ग महिला रो रही थी और उसके पास एक व्यक्ति लेटे हुए थे। जब सूदन ने उनसे पूछा कि आप ऐसे क्यों रो रही हैं। इस पर उन्होंने बताया कि लेटे हुए व्यक्ति उनके पति हैं और उनकी मृत्यु हो चुकी है। मेरे पास इतने रुपए नहीं हैं कि मैं उन्हें घर तक लेकर जा सकूं या फिर उनका अंतिम संस्कार कर सकूं। इस पर मैं दौड़कर अपने घर गया और अपना गुल्लक तोड़ दिया। उसमें 12-15 रुपए थे, उससे मैंने उनका अंतिम संस्कार किया। जब घर लौटा तो पिता ने कहा कि बेटा आज बहुत लेट हो गए। इस पर मैंने उन्हें पूरा वाक्या सुनाया तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और बोले इतनी सी उम्र में तुमने बहुत बड़ा काम किया है।

24-25 साल के लड़के के शरीर में रेंग रहे थे कीड़े
सूदन को एमवाय अस्पताल की बिल्डिंग के बाहर एक 24-25 साल का लड़का दिखा, उसकी पीठ में एक बड़ा घाव था, जिसमें कीड़े लगे हुए थे। पूरा शरीर बदबू मार रहा था, उसे देखकर उन्हें लगा कि इसके लिए कुछ करना चाहिए। इस पर वे उसे एमवाय लेकर गए, लेकिन वहां कोई उसे रखने को तैयार नहीं हुआ। इस पर वे उसे लेकर मदर टेरेसा के ज्योति निवास लेकर पहुंचे। वहां अपने हाथों से पहले उसके घाव को धोकर कीड़े निकाले और फिर उसका इलाज कराया। बाद में पता चला कि वो झारखंड का रहने वाला था। उससे पता पूछकर उसके घरवालों को इंदौर बुलाया और वो उसे लेकर वापस अपने गांव चले गए।

कई लोगों को दिया जीवन दान।

कई लोगों को दिया जीवन दान।

85 साल की वृद्धा को उठाकर गुरुद्वारा ले गए थे
14-15 साल की उम्र में ही सड़क किनारे बैठी एक 85 साल की महिला बारिश में भीग रही थी। महिला के पैर में घाव था, जिसमें कीड़े रेंग रहे थे। शरीर से बदबू भी आ रही थी। सुदन ने उस वृद्धा को अपनी पीठ पर उठाया और गुरुद्वारे ले गए। यहां पर ज्ञानी जी से कहकर उन्हें रहने की जगह दिलवाई। लंगर से खाकर खाना खिलाया। अगले दिन उसे अस्पताल लेकर गए। महीनों चले इलाज के बाद वृद्धा स्वस्थ्य हो गई।

पग उतारने पर झेलना पड़ा था आक्रोश
2006-7 में पुलिस द्वारा उन्हें जानकारी मिली कि बिलावली तालाब में एक युवती की लाश मिली है। मौके पर पहुंचे तो पता चला कि वह पन्नी बिनने वाली 12-13 साल की नाबालिग बच्ची थी। वहां पर फायर टीम मौके पर थी। अंधेरा होने से फायर ब्रिगेड ने काम बंद करने को कहा। इस पर मैं रोड पर गया और कुछ कार वालों से निवेदन किया कि मेरी बच्ची तालाब में डूब गई है। लाइट नहीं होने से उसे निकालने में परेशानी आ रही है। इस पर वे तालाब की मेड से लाइट दिखाने लगे। बच्ची बाहर आई तो उसके शरीर पर पकड़े नहीं थे। पास में मौजूद झोपडी और बंगले वालों से चादर या कोई कपड़ा मांगा तो उन्होंने नहीं दिया। वापस आया तो हजारों लोग बच्ची को घूर रहे थे। इस पर मैंने अपनी पगड़ी उतारी और उसे ऑटो से लेकर अस्पताल पहुंचा। यहां डॉक्टरों से तत्काल इलाज के लिए कह दिया कि मेरी बच्ची है। पग उतारने पर समाज वालों ने नाराजगी जताई, जिस पर उन्होंने सीधा जवाब दिया। ऐसी परिस्थिति में हर बार वे ऐसी गलती करेंगे।

घाव से कीड़े तक खुद साफ करते थे।

घाव से कीड़े तक खुद साफ करते थे।

मां को मरने के लिए एमवाय के बाहर छोड़ गए थे बच्चे
एडिशनल एसपी प्रशांत चौबे सूदन काे याद करते हुए कहते हैं वे बिना किसी शुल्क के दिनभर यह काम करते थे। अपने स्वयं के खर्च से वे लोगों की मदद करते थे। हमारे पास एक बुजुर्ग महिला की खबर आई थी। वह बोल नहीं पा रही थी। उनके बच्चे उन्हें एमवाय अस्पताल के सामने रखकर चले गए थे। इसकी जानकारी सूदन को मिली तो वे खुद वहां पहुंचे, महिला की सफाई करवाई। इसके बाद इलाज करवाया। ठीक होने पर उन्होंने अपना नाम पता बताया। इसके बाद सागर जिले से उनके बच्चों को बुलाया गया। पुलिस की समझाइश के बाद वे उन्हें घर लेकर गए। संक्रमण काल में भी सूदन ने अपनी मां की तरह उनका लालन-पालन किया था।

संस्था बनाना नहीं चाहते थे
सूदन ने कई लोगों की मदद की। लोग उन्हें एक संस्था बनाकर उसके माध्यम से सेवा करने की सलाह देते थे, लेकिन वे कभी कोई संस्था बनाना नहीं चाहते थे। वे कहते थे कि मैं अपने मन की तसल्ली के लिए ये काम करता हूं. संस्था बनाकर मैं कोई तामझाम खड़ा करना नहीं चाहता। एम्बुलेंस, रिक्शा, दवाई, इलाज आदि के खर्च की व्यवस्था कैसे होती है ये पूछने पर वो बताते थे कि मेरे कुछ मित्र हैं, जिन्हें मुझ पर पूरा भरोसा है। वो हर नेक काम के लिए मेरी मदद करते हैं। वे बताते थे मेरे पिताजी मुझसे कहते थे कि अगर कोई अमीर बीमार पड़ता है तो लोग हाज़री लगाने पहुंच जाते हैं, लेकिन जो लोग सड़कों पर घूम रहे हैं, उनके लिए कोई नहीं सोचता है। अगर तू इनके लिए कुछ कर सकता है, तो ज़रूर करना।



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