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- Workers Owning Property Worth 3 Thousand Are Also Contesting From Surkhi, Tractor Mechanic In 22 Candidates
सागर10 मिनट पहले
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प्रतीकात्मक फोटो।
- पशुपालक और भूसा कमीशन एजेंट ने भी उपचुनाव के लिए भरा पर्चा
- उपचुनाव के लिए कुल 23 प्रत्याशियों के 30 नामांकन, एक रिजेक्ट हुआ
सुरखी विधानसभा उपचुनाव के लिए एक तरफ जहां करोड़पति भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच प्रचार की होड़ लगी हुई है। वहीं महज 3 हजार रुपए की संपत्ति का मालिक एक मजदूर भी चुनाव मैदान में है। मजदूर ने एक नहीं दो नामांकन भरे हैं। एक निर्दलीय और दूसरा गौड़वाना गणतंत्र पार्टी से। ये खिरिया जैसीनगर निवासी चरन सिंह हैं।
चरन सिंह के अलावा चुनाव मैदान में उतरे 22 प्रत्याशियों में से 7 मजदूर, एक ट्रेक्टर मैकेनिक, किसान, भूसा कमीशन एजेंट और रिटायर कर्मचारी भी शामिल हैं। रिटर्निंग अधिकारी को उपचुनाव के लिए कुल 23 प्रत्याशियों के 30 नामांकन प्राप्त हुए थे। जिसमें एक प्रत्याशी का फार्म रिजेक्ट कर दिया गया।
छिंदवाड़ा से ऑटो डीलर ने भी भरा पर्चा
नामांकन की स्क्रूटनी के बाद 22 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें 11 राहतगढ़ ब्लॉक के निवासी है। जबकि दो विदिशा और एक छिंदवाड़ा जिले के निवासी ऑटो डीलर हैं। इसके अलावा बीना, सागर और जैसीनगर क्षेत्र के प्रत्याशी भी मैदान में उतरे हैं। 12 प्रत्याशियों ने निर्दलीय आवेदन किए हैं। जबकि भाजपा-कांग्रेस के अलावा शिवसेना, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों ने भी नामांकन भरे हैं।

एससी-एसटी और मुस्लिम वोट कटने का डर : भाजपा-कांग्रेस के लिए अलावा चुनाव मैदान में उतरे निर्दलीय व अन्य पार्टियों के प्रत्याशियों में 70 फीसदी मुस्लिम और एससी-एसटी वर्ग के हैं। ऐसे में बड़ी पार्टियों को इन वर्गों के वोट कटने का डर सताने लगा है और अब नामांकन वापसी के लिए जोड़-तोड़ भी शुरू हो चुकी है। हालांकि पिछले तीन विधानसभा चुनावों के परिणाम पर नजर डाले तो सिर्फ 2013 में ही निर्दलीय व अन्य दलों के प्रत्याशियों को मिलाकर कुल 9500 वोट मिले हैं। पिछले चुनाव में भाजपा-कांग्रेस को छोड़कर अन्य प्रत्याशी ढाई हजार वोटें ही जुटा सके थे।
हालांकि 2013 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों को अधिक वोट मिलने के कारण ही हार-जीत के बीच 141 वोटों का ही अंतर बचा था। उस समय भी गोविंद सिंह राजपूत और पारूल साहू आमने-सामने थे। ऐसे में देखना यह है कि इस बार निर्दलीय और डमी प्रत्याशियों का यह गणित कितना रंग दिखाता है।