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- When Netaji Changed The Party, The Public Changed Its Face; The Public Did Not Accept The Leaders Who Changed The Ticket And Win In The Vis Elections
मुरैना20 घंटे पहले
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प्रतीकात्मक फोटो
- जाहर सिंह को छोड़कर क्षेत्र बदलने वाले नेताओं को भी जनता ने हमेशा किया नापसंद
दल-बदल; इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी हों या कांग्रेस से नाखुश होकर भाजपा के साथ खड़े दिख रहे नेता… सब मंच से एक-दूसरे को धोखेबाज व दगाबाज कहकर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। लेकिन मुरैना जिले की जनता का मिजाज ऐसा है कि जब भी किसी नेता ने टिकट या जीत के लिए दल या क्षेत्र बदला, जनता ने उसे एक बार हार का मजा जरूर चखाया। हां दूसरी बार भले ही उसे स्वीकार कर लिया हो। बार-बार दल बदलकर चुनाव लड़ने वाले नेताओं में इस बार चुनाव लड़ने वाले कई प्रत्याशी भी शामिल हैं।
जाहर सिंह एकमात्र नेता, जिन्होंने 3 बार सीट बदली, सिर्फ एक बार हारे: क्षेत्र बदलने वाले नेताओं में जाहरसिंह शर्मा इकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होंने कई बार सीट बदलकर चुनाव लड़ा लेकिन हार सिर्फ एक बार जौरा विधानसभा में मिली। जाहर सिंह शर्मा ने पहला चुनाव 1967 में जनसंघ के टिकट पर जीते। 1977 में उन्होंने सुमावली विस बनने के बाद इसी सीट से चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद उन्हें दोबारा 1985 में मुरैना सीट से जनता पार्टी ने टिकट दिया और वे जीते। उन्हें सिर्फ जौरा विस में एक बार हार का सामना करना पड़ा।
एक नजर में जानिए… दल-बदलू नेताओं की स्थिति
अजब सिंह कुशवाह- 2013 में सुमावली विस से बसपा से चुनाव लड़कर भाजपा के सत्यप्रकाश सिकरवार से हार गए। इस चुनाव में अजब सिंह दूसरे व कांग्रेस के ऐदल सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे। 2018 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में इसी सीट से लड़े और हारे अब 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव लड़ने के लिए फिर मैदान में हैं। रामप्रकाश राजौरिया- 2013 में बसपा से चुनाव लड़े लेकिन भाजपा के रुस्तम सिंह से 1875 वोटों से हार गए। उन्हें 2018 में बसपा ने पुन: प्रत्याशी बनाया, लेकिन बाद में उनकी जगह उनका टिकट काटकर दूसरा प्रत्याशी मैदान में उतार दिया। इससे गुस्साए रामप्रकाश आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। लेकिन चुनाव हारने के बाद भाजपा का दाम थाम लिया। उपचुनाव से पहले दोबारा बसपा से टिकट लाकर मुरैना सीट से मैदान में हें।
सोनेराम कुशवाह- जौरा सीट से पहला चुनाव 1999 में बसपा से लड़ा और जीते। 1998 में दूसरा चुनाव भी इसी सीट से बसपा के टिकट पर जीते। 2003 में बसपा ने टिकट काटा तो राष्ट्रीय समानता दल से चुनाव लड़े तो जनता ने उन्हें नकार दिया। इसके बाद 2008 व 213 में राष्ट्रीय समानता दल के टिकट से इसी सीट से चुनाव लड़कर हारे। 2018 में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं सके।
ऐदल सिंह कंषाना- 1993-1998 में बसपा से सुमावली सीट से 2 बार विधायक चुने गए। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थन में कांग्रेस ज्वाइन कर ली और मंत्री पद से नवाजे गए। 2003 का चुनाव कांग्रेस के टिकट से लड़े लेकिन दल बदलते ही जनता ने हरा दिया। हालांकि बाद में 2008 व 2018 का चुनाव कांग्रेस के टिकट से ही जीते। उपचुनाव में अब भाजपा के प्रत्याशी हैं।
सेवाराम गुप्ता- मुरैना विस सीट पर 1990 में भाजपा से विधायक बने लेकिन 1993 में भाजपा ने इनका टिकट काट दिया। 1998 में इन्हें दूसरी पार्टी ने मौका दिया तो पुन: जीते। लेकिन वर्ष 2003 में भाजपा ने इनका टिकट काटकर रुस्तम सिंह को दे दिया। इससे आहत होकर यह समाजवादी पार्टी से चुनाव मैदान में कूंद पड़े। लेकिन जनता ने इन्हें मात्र 8 हजार 264 वोट दिए, जिससे इन्हें हार का सामना देखना पड़ा।
रविंद्र तोमर भिड़ौसा- 2008 में पहला चुनाव दिमनी सीट से बसपा से लड़े लेकिन भाजपा से हार गए। 2013 में बसपा छोड़कर कांग्रेस से जुड़ गए लेकिन दल बदलने के बाद जनता ने नकार दिया और दूसरा चुनाव भी हार गए। 2018 में कांग्रेस ने ही इनका टिकट काट दिया। अब उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट से मैदान में हैं।