ज्योतिरादित्य सिंधिया. (फाइल फोटो)
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में पहली बार विधानसभा (Assembly) की 28 सीटों पर एकसाथ उपचुनाव (By-Election) होने जा रहे हैं. इस उपचुनाव में ऐसे प्रत्याशी भी मैदान में हैं, जो हर बार नई पार्टी से किस्मत आजमाते हैं.
दलबदलू नेता अगर एक पार्टी से टिकट नहीं मिली तो छलांग लगाकर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं. इस उपचुनावों में भी ऐसे उम्मीदवार सियासी मैदान में है जो तीन से चार राजनीतिक दलों का स्वाद चखकर फिर नई पार्टी से चुनावी नैया पार लगाने में जुटे है. उपचुनाव में चर्चित जिन 6 दल बदलू नेताओं के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, उनमें से 5 ग्वालियर चंबल इलाके की सीटों से ही चुनाव लड़ते हैं.
जानें कौन से दलबदलू हैं मैदान में
हरिवल्लभ शुक्ला – शिवपुरी जिले के हरिवल्लभ शुक्ला पहले कांग्रेस में थे. टिकट नहीं मिली तो 2003 में राष्ट्रीय समानता दल के टिकट पर पोहरी से चुनाव लड़े और जीते. 2004 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा के लिए गुना से प्रत्याशी बनाया. 2008 के विधानसभा चुनाव में वे बसपा के टिकट पर पोहरी से लड़े, लेकिन हार गए. शुक्ला ने 2013 में कांग्रेस के टिकट पर पोहरी से चुनाव लड़ा और भाजपा के प्रहलाद भारती से हार गए. हरिबल्लभ शुक्ला फिर से उपचुनाव में पोहरी से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.फूल सिंह बरैया- फूल सिंह बरैया इस बार उपचुनाव में उम्मीदवार हैं. दतिया जिले की भांडेर विधानसभा सीट से बसपा के विधायक रह चुके फूलसिंह बरैया ने चार दलों की सवारी की है. बसपा से नाराज होकर उन्होंने समता समाज पार्टी का दामन थामा. कुछ दिनों बाद उन्होंने भाजपा की भी संगत कर ली. बाद में उनका मन भाजपा से ऊब गया तो उन्होंने बहुजन संघर्ष दल बना लिया. अब बहुजन संघर्ष दल से वे कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. उपचुनव में वे भांडेर से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.
एंदल सिंह कंसाना- मुरैना जिले की सुमावली सीट से भाजपा उम्मीदवार एंदल सिंह कंसाना ने पहले टिकट न मिलने पर कांग्रेस छोड़ी थी. अब मंत्री की कुर्सी न मिलने पर पार्टी को अलविदा कह दिया. 1993 में कंसाना को कांग्रेस से टिकट नहीं मिली तो वे बसपा से चुनाव लड़ गए और जीते. 1998 में भी वे बसपा से विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. 2003 में वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 2008 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. 2020 में भाजपा में शामिल होकर उपचुनाव लड़ रहे हैं.
अजब सिंह कुशवाहा- सुमावली से कांग्रेस उम्मीदवार अजब सिंह कुशवाहा ने 2003 में बसपा से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. 2008 में भी वे बसपा के टिकट पर उम्मीदवार बने, लेकिन फिर हार गए. 2018 का चुनाव अजब सिंह ने भाजपा की ओर से लड़ा, लेकिन फिर हार का मुंह देखना पड़ा. अब कुशवाह फिर दल-बदलकर मैदान में हैं. उपचुनाव में इस बार अजब सिंह कुशवाहा कांग्रेस में शामिल होकर सुमावली से ही उम्मीदवार बने हैं.
रामप्रकाश राजौरिया- मुरैना से बसपा उम्मीदवार रामप्रकाश राजौरिया भी दूसरे दलों की सवारी कर चुके हैं. 2013 में बसपा से चुनाव लड़ा था. लेकिन वे चुनाव हार गए थे. 2018 में उनको बसपा ने टिकट नहीं दी तो वे आम आदमी पार्टी के बैनर तले चुनाव में उतर गए. इस बार भी उनको हार मिली. इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए लेकिन उनका मन नहीं लगा वे फिर बसपा में वापस आ गए. इस उपचुनाव में वे फिर से बसपा के उम्मीदवार हैं.
मुन्नालाल गोयल- मुन्नालाल गोयल उपचुनाव में भाजपा से उम्मीदवार हैं. मुन्नालाल गोयल ने बसपा से चुनाव लड़ा. बसपा के बाद कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा और अब कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा के चुनाव चिह्न से सियासी मैदान में हैं.
अखंड प्रताप सिंह- अखंड प्रताप सिंह बड़ा मलहरा सीट से उपचुनाव में बसपा के प्रत्याशी हैं. इससे पहले अखंड प्रताप सिंह कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं तो वहीं कांग्रेस के बाद भाजपा सरकार में भी अखंड प्रताप सिंह मंत्री रह चुके हैं. भाजपा और कांग्रेस का दामन छोड़ अब अखंड प्रताप सिंह ने बसपा का दामन थामा है और बसपा के टिकट से चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.