ऊषा मध्य प्रदेश में सिंगरौली के विधान की रहने वाली हैं. वह साल 1998 से बतौर स्कूल अध्यापिका पढ़ा रही हैं. कोरोनाकाल में ऊषा ने अपनी जान जोखिम में डालकर मोबाइल लाइब्रेरी के जरिए बच्चों को घर-घर जाकर शिक्षित करने काम सराहनीय काम किया. ऐसे में न्यूज 18 ने ऊषा देवी के इस सराहनीय काम की प्रशंसा कर उनसे इस पर खास बातचीत की है.
सवाल- आपको कैसे पता चला कि आपका नाम ‘मन की बात’ में पीएम मोदी द्वारा लिया गया ?
जवाब- मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था कि पीएम ने मन की बात कार्यक्रम में मेरे नाम और काम दोनों का जिक्र किया है. मुझे इस बारे में स्थानीय मीडिया से पता चला. यह मेरे लिए खुशी का बहुत बड़ा अवसर था और मैं इसके लिए प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करती हूं कि उन्होंने मेरे विनम्र प्रयासों की देशभर में सराहना की.सवाल- आपके काम की खुद पीएम ने चर्चा की आपको कैसा लगा?
जवाब- मैं अभिभूत हूं कि मेरे प्रयासों की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई. मैं केवल एक शिक्षक के रूप में अपना कर्तव्य निभा रही हूं. मैं साल 2014 से गर्मियों की छुट्टियों में छात्रों के बीच जाकर उन्हें तरह-तरह की रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ रही हूं जिसमें पेंटिंग करना भी शामिल है, लेकिन इस बार मैंने उन्हें शिक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण किताबों का भी सहारा लिया है.
सवाल- आपने छात्रों के बीच कैसे जाना शुरू किया?
जवाब- मैं एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका हूं, जहां बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं आ पाते हैं. इसका कारण उनकी कई पारिवारिक समस्याएं हैं. ऐसे में मैं खुद ही उनके क्षेत्रों में उन्हें शिक्षित करने के लिए निकली जो अभियान अभी तक जारी है. उनके पेरेंट्स ने मेरे इस काम से खुश होकर अपने बच्चों को अब नियमित रूप से स्कूल भेजना शुरू कर दिया है.
सवाल- आपकी मोबाइल लाइब्रेरी कैसे कार्य करती है?
जवाब- मैं आपको बता दूं कि पहले मैं खुद ही किताबें लेकर स्थानीय क्षेत्रों में बच्चों के बीच जाया करती थी, लेकिन अगस्त के बाद अपनी स्कूटी के जरिए ज्यादा से ज्यादा किताबों को लेकर बच्चों के बीच पहुंची. मुझे लगता है कि किताबों की सजावट और मात्रा बच्चों को आकर्षित करती है. मैं बच्चों के लिए कविताएं, कहानी और अन्य दिलचस्प किताबों को लेकर जाती हूं और वे इस रोजाना पढ़ते भी हैं.
सवाल- क्या आपको और आपके परिवार को लॉकडाउन में कोविड-19 का डर नहीं सताता था?
जवाब- हां बिल्कुल, मेरा परिवार इस महामारी से बहुत सहमा हुआ था और उन्हें हर दिन यह डर सताता रहता था कि कहीं मैं इस वायरस का शिकार न हो जाऊं, लेकिन बाद में मेरे जज्बे को देखते हुए उन्होंने मुझे सपोर्ट करना शुरू कर दिया.
सवाल- सामाजिक और आधिकारिक तौर आपको कैसी प्रतिक्रिया मिली?
जवाब- यह मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत गर्व की बात है और मेरे पड़ोसी और स्कूल स्टाफ सभी ने मुझे इसकी ढेरों बधाईयां दी हैं. जिलाधिकारी ने भी मुझे बधाई संदेश भेजा है, साथ ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी मुझे जिले का नाम रोशन करने के लिए ढेरों शुभकामनाएं दी हैं. मैं अपने प्रयासों का समर्थन करने के लिए न्यूज 18 का भी धन्यवाद करती हूं.