मुरैना14 घंटे पहले
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खेती की जानकारी देते कृषि वैज्ञानिक
- कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने जैविक खेती के प्रति किया किसानों को जागरूक
भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है। इसलिए किसान एकल खेती पर निर्भर नहीं रहें तथा खेत व मेढ़ के आसपास दूसरी खेती भी लेना शुरू करें।
यह बात शनिवार को कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ एसपी सिंह किसानों से कह रहे थे। डॉ सिंह ने किसानों को बताया कि अधिक उत्पादन के लिये खेती में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है। जिससे सामान्य व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैे। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई है।
जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते हेै। सरकार भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग करें, ताकि अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें।
रसायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग करने से जैविक व अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ा
डॉ सिंह ने बताया कि प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र (पारिस्थितिकी तंत्र) निरंतर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। उन्होंने बताया कि देश में कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं, जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं।
अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्यधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था। परंतु बदलते परिवेश में गौ पालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है, जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।