रिसर्च में खुलासा: अस्पतालों में आ रहे एलर्जिक अस्थमा के मरीजों में कोरोना का संक्रमण कम

रिसर्च में खुलासा: अस्पतालों में आ रहे एलर्जिक अस्थमा के मरीजों में कोरोना का संक्रमण कम


उज्जैन19 घंटे पहले

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  • हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटिज, मोटापा आदि के मरीजों को खतरा ज्यादा
  • रिसर्च: अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन के डॉक्टरों की रिसर्च में खुलासा

(शरद गुप्ता) हाल ही में आई एक रिसर्च रिपोर्ट में यह पता चला है कि एलर्जिक अस्थमा से ग्रसित मरीजों के कोविड-19 के चपेट में आने की संभावना न्यूनतम है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन के डॉ. डेनियल जे. जैक्सन, डॉ. विलियम और टीम द्वारा 4 सितंबर को पब्लिक डोमैन में प्रकाशित की गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉ. संजीव कुमरावत बताते हैं कि कोरोना वाइरस हमारे शरीर के सेल (कोशिका) में ACE-2 (एंजियोटेनसिन कनवर्टिंग एंजाइम-2) के माध्यम से प्रवेश करता है।

यह ACE-2 रिसेप्टर मुख्यत: हमारी किडनी, इंटेस्टाइन (आंत), लंग्स और हार्ट में पाए जाते हैं। श्वसन तंत्र में यह ACE-2 रिसेप्टर नाक व गले की सतह (इपिथेलियम), एयर वे (ट्रेकिया, ब्रोकांई) और फेफड़ों में (निमोसाइट टाइप-2) पाए जाते है। जितने ज्यादा ACE-2 रिस्पेटर होंगे कोराेना संक्रमण का खतरा उतना ज्यादा होगा। हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटिज, स्मोकिंग, मोटापा इनमें ACE-2 रिसेप्टर की संख्या अधिक होती है, यही वजह है कि इन्हें हाईरिस्क माना जाता है। डाॅ. कुमरावत के अनुसार कोरोना की शुरुआत में अमेरिका की संस्था CDC (सेंट्रल ऑफ डिसिज कंट्राेल) ने एलर्जिक अस्थमा मरीजों को कोरोना के लिए हाईरिस्क माना था। लेकिन चीन में अमेरिका के डॉक्टरों की टीम ने काफी रिसर्च के बाद यह दावा किया है कि एलर्जिक अस्थमा के मरीज कोरोना से सुरक्षित हैं।

चीन के कोविड मरीजों पर रिसर्च के बाद बदली धारणा

चीन के कोविड मरीजों पर रिसर्च के दौरान डॉ. डेनियल और डॉ.विलियम की टीम यह देखकर हैरान हुई कि कोरोना संक्रमण की चपेट में आए मरीजों में एलर्जिक मरीजों की संख्या न्यूनतम थी। इसके बाद उन्होंने अस्थमा मरीजों पर स्टडी के लिए बच्चों और वयस्क दोनों ग्रुप पर स्टडी की। इसके लिए अस्थमा मरीजों को चार ग्रुप में बांटा। इसमें छोटी से बड़ी उम्र के मरीजों को रखकर उनकी मीडियम से लेकर IGE एक्टिविटी पर फोकस किया। अपने प्रयोगों के आधार पर डॉ.डेनियल, डॉ. विलियम अौर टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि मीडियम और हाई IGE एक्टिविटी के उन मरीजों में ACE-2 रिस्पेटर की संख्या कम है। ACE-2 रिस्पेटर की संख्या कम होने का अर्थ है कि उनमें कोविड होने की संभावना न्यूनतम है। इसके बाद टीम ने एक और प्रयोग किया। ऐसे मरीजों का ग्रुप बनाया गया, जिनको एलर्जी थी। उन मरीजों को जिस वस्तु से एलर्जी थी उस वस्तु के साथ उन्हें एक्सपोज किया तो यह पाया कि इनमें 8 से 48 घंटे के भीतर ACE-2 रिस्पेटर की संख्या बहुत कम हो गई, यानि कोरोना के चांस कम हो गए। तब टीम ने निष्कर्ष दिया कि एलर्जिक अस्थमा के जिन मरीजों में IGE हाइपर एक्टिविटी रहती है उन मरीजों में ACE-2 रिस्पेटर की संख्या बहुत कम होती है। चूंकि ACE-2 रिस्पेटर से ही कोरोना वाइरस कोशिका मेंे प्रवेश करता है। इसलिए एलर्जिक अस्थमा के मरीज कोरोना से सुरक्षित रहते हैं।

यह है एलर्जिक अस्थमा

एलर्जिक अस्थमा में मानव शरीर किसी भी एलर्जन के लिए हाइपर एक्टिव हो जाता है। यह एलर्जन धूल के कण, पराग कण, सुंगध(परफ्यूम), बिल्ली, कुत्ता, बकरी, खरगोश आदि के रेशे हो सकते हैं। यह एलर्जन जब शरीर में प्रवेश करते है तो इम्युन सिस्टम हाइपर एक्टिव होकर एंटीबॉडी IGE बनाता है। यह IGE एंटीबॉडी कई केमिकल निकालती है, जिनको ल्युकोट्रिन कहते है। इन केमिकल्स के कारण एयर-वे (श्वास नली) में सूजन आ जाती है, बहुत ज्यादा म्युकस निकलता है। जिससे श्वास नली संकरी हो जाती है। जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है, संकरी नली से हवा निकलती है तो मरीज की आवाज भी घरघराहट में बदल जाती है। इसी कारण CDC (यूएस) का यह मानना था कि चूंकि अस्थमा में पहले ही श्वास नली संकरी हो जाती है, यदि इन मरीजों को कोविड हुआ तो सांस लेने में दिक्कत बढ़ जाएगी। इसलिए एलर्जिक अस्थमा को कोविड-19 के लिए हाईरिस्क मान लिया गया था।

वस्तुस्थिति पर आधारित रिपोर्ट

अब तक सामने आएं कोविड मरीजों में हमने भी ऐसा पाया है कि एलर्जिक अस्थमा के मरीजों के कोरोना से संक्रमित होने की संभावना न्यूनतम है। जबकि पहले अस्थमा से ग्रसित मरीजों को भी हाईरिस्क माना जा रहा था। हाल ही में हुए अध्ययन में एलर्जिक मरीजों में कोविड की संभावना न्यूनतम बताई गई है।
डाॅ.सुनील चौधरी, एमडी

नोट: यह रिपोर्ट एक स्टडी पर अाधारित है। इसका यह मतलब कतई नहीं कि एलर्जिक अस्थमा के मरीज लापरवाही करें। सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क का उपयोग आवश्यक है।



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