एमपी में सिंधिया औऱ उनके समर्थक विधायकों के दल बदलने के कारण ही उप चुनाव हुए.
28 सीटों के नतीजे प्रदेश की 230 विधान सभा सीटों पर प्रभाव डालने वाले होंगे. जो आने वाले समय में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए अहम होंगे.
- News18Hindi
- Last Updated:
November 10, 2020, 7:14 AM IST
मध्य प्रदेश की 28 विधान सभा सीटों के लिए हुए उप चुनाव अब नतीजों पर जा पहुंचे हैं. कुछ ही घंटों के बाद साफ हो जाएगा कि उपचुनाव के प्रचार में किस का दम, दमदार साबित हुआ और किसका कौन बेदम हो गया. जनता हार-जीत का फैसला EVM में कैद कर चुकी है. 8:00 बजे मतगणना शुरू होने के बाद शुरुआती रुझान 9:00 बजे से आना शुरू हो जाएंगे 11:00 बजे तक साफ हो जाएगा कि किस सीट पर कौन बना सिकंदर.
सिंधिया की साख
इस उप चुनाव में उम्मीदवारों से ज्यादा दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. 28 सीटों पर हुए इस उप चुनाव में यदि सबसे ज़्यादा किसी नेता की साख दांव पर लगी है तो वो है दलबदल कर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की. सिंधिया के दल बदलने के साथ ही 26 विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा और उप चुनाव को न्यौता दिया. ग्वालियर-चंबल सहित 22 सीटों पर बीजेपी की हार या जीत ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी और प्रदेश की सियासत में उनका कद नापने के लिए काफी होगी. यदि उपचुनाव में बीजेपी ग्वालियर चंबल और मालवा सहित सांची विधानसभा सीट पर जीत हासिल करती है तो निश्चित तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान के बराबर होता दिखेगा. इसके उलट यदि उपचुनाव में बीजेपी हारती है तो इसका ठीकरा भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ही फोड़ा जाएगा. यह नतीजे सिंधिया के राजनीतिक भविष्य औऱ बीजेपी में उनकी हैसियत को भी तय कर देंगे. साथ ही यह भी बता देंगे कि सिंधिया का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने का फैसला कितना ठीक था और बीजेपी का उन्हें पलक पावड़े बिछाकर लेना और उनके समर्थकों को टिकट देना कहां तक सही साबित हुआ.शिवराज-शर्मा की जोड़ी का दम
मध्य प्रदेश की राजनीति में ये पहला मौका है जब विधान सभा की इतनी ज़्यादा सीटों पर एक साथ उप चुनाव हुए. शिवराज एमपी के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय और जनाधार वाले नेता हैं. लगातार 13 साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं. ज़ाहिर है मध्य प्रदेश में हर चुनाव और बीजेपी का हर फैसला उनके कद को मापता है. उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर बीजेपी के कई नेताओं के लिए भी ये चुनाव साख का सवाल है. प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा 84 सभाएं और 10 रोड शो करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज की लोकप्रियता भी उपचुनाव के नतीजे तय कर देंगे. इसके अलावा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के लिए भी एक चुनाव अग्नि परीक्षा साबित होगा. प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद बीडी शर्मा के नेतृत्व में ये पहला चुनाव है.
कमलनाथ और कर्ज़माफी कितने असरदार
दूसरी तरफ कांग्रेस में एकतरफा मोर्चा संभाले पीसीसी चीफ और पूर्व सीएम कमलनाथ उपचुनाव में कितना असरदार साबित हुए यह भी चुनाव परिणाम से पता चल जाएगा. यदि कांग्रेस इक्का-दुक्का सीट ही जीत पाती है तो सीधे-सीधे कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल उठेंगे. कमलनाथ अभी पीसीसी चीफ औऱ नेता प्रतिपक्ष दोनों पद संभाले हुए हैं. कांग्रेस पार्टी ने उपचुनाव को लेकर बड़े फैसले लेने की पूरी छूट कमलनाथ को दी थी. यदि नतीजे कांग्रेस के खिलाफ जाते हैं तो यह कांग्रेस पार्टी से ज्यादा कमलनाथ की निजी हार होगी. यदि उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी 20 से ज्यादा सीटें हासिल कर लेती है तो यह कमलनाथ की जीत मानी जाएगी. मनोवैज्ञानिक राजनीतिक तौर पर यह कांग्रेस की बड़ी जीत होगी.हालांकि 20 सीट जीतने के बाद भी वो सत्ता से 8 कदम यानि 8 सीट दूर रह जाएगी. चुनाव नतीजों से ये भी पता चलेगा कि प्रदेश की राजनीति में छाये रहे किसान कर्ज़माफी के मुद्दे ने कितना असर दिखाया.
28 का असर 230 पर
28 सीटों के नतीजे प्रदेश की 230 विधान सभा सीटों पर प्रभाव डालने वाले होंगे. जो आने वाले समय में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए अहम होंगे.