कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए प्रशासन ने हिंगोट युद्ध की अनुमति नहीं दी है.
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) में 200 साल पुरानी परंपरा इस साल नहीं निभेगी. इंदौर में होने वाले हिंगोट युद्ध (Hingot War) पर प्रशासन ने इस बार रोक लगा दी है.
हिंगोट युद्ध हर साल दीपावली के दूसरे दिन दो गांवों गौतमपुरा और रूणजी के ग्रामीणों के बीच होता था. इसमें दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे पर बारूद से भरे हुए हिंगोट (स्थानीय स्तर पर तैयार खतरनाक पटाखा) फेंकते हैं. अनूठे युद्ध को देखने दूरदराज से लोग पहुंचते हैं. इस युद्ध में कई ग्रामीण घायल तक हो जाते हैं. पिछले सालों में इस युद्ध में कुछ लोगों की मौत तक हो गई है. मान्यता है कि मुगल काल में गौतमपुरा क्षेत्र में रियासत की सुरक्षा में तैनात सैनिक मुगल सेना के दुश्मन घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे. सटीक निशाने के लिए वे इसका कड़ा अभ्यास करते थे. यही अभ्यास परंपरा में बदल गया.
As per govt order, events that gather large crowds can’t be allowed due to COVID-19. Therefore, the Hingot war will not happen this year: Bajrang Bahadur, Tehsildar of Depalpur in Indore, Madhya Pradesh (14.11.2020) pic.twitter.com/mrmsUbakIk
— ANI (@ANI) November 14, 2020
इस तरह तैयार होता है हिंगोट
बताया जाता है कि हिंगोरिया के पेड़ का फल हिंगोट होता है. बड़े नींबू के आकार के इस फल का बाहरी आवरण बेहद सख्त होता है. युद्ध के लिए गौतमपुरा और रुणजी के रहवासी महीनों पहले चंबल नदी से लगे इलाकों के पेड़ों से हिंगोट तोड़कर जमा कर लेते हैं और गूदा निकालकर इसे सुखा दिया जाता है. फिर इसमें बारूद भरकर इसे तैयार किया जाता है. हिंगोट सीधी दिशा में चले, इसके लिए हिंगोट में बांस की पतली किमची लगाकर तीर जैसा बना दिया जाता है. योद्धा हिंगोट सुलगाकर दूसरे दल के योद्धाओं पर फेंकते हैं. सुरक्षा के लिए दोनों दलों के योद्धाओं के हाथ में ढाल भी रहती है.