आस्था और परंपरा: एक या दो बार टिकरा गुसाई देवी को प्रसन्न करने के लिए दी जाती है बकरे या मुर्गे की बलि

आस्था और परंपरा: एक या दो बार टिकरा गुसाई देवी को प्रसन्न करने के लिए दी जाती है बकरे या मुर्गे की बलि


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भोपाल8 मिनट पहले

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  • इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय में इस सप्ताह का प्रादर्श है टिकरा गुसाई देवी की डोकरा प्रतिमा

भोपाल के इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में सप्ताह के प्रादर्श के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य के झारा ग्रामीण समुदाय से संकलित टिकरा गुसाई देवी की डोकरा प्रतिमाएं प्रदर्शित की जा रही हैं। इसकी ऊंचाई 66 सेमी, चौड़ाई.33 सेमी है। इस प्रादर्श को इस सप्ताह दर्शकों के लिए प्रदर्शित किया जाएगा।

आदिवासी संस्कृति और डोकरा कला का अटूट संबंध

संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि टिकरा गुसाई छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में आदिवासी संस्कृति और डोकरा कला के बीच अटूट संबंध का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। टिकरा गुसाई देवी की इस प्रतिमा को एक झारा कलाकार द्वारा ढलाई की देशज विधि से खूबसूरती से तैयार किया गया है। झारा समुदाय रायगढ़ का एक स्थानीय धातु शिल्पी समुदाय है। जो अपनी डोकरा कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

सिंहासन को गुसाई देवी की बहनों की आकृतियों से सजाया

इस प्रादर्श के बारे में डॉ. सुदीपा रॉय ने बताया कि लॉस्ट वैक्स तकनीक से ढाला गया यह प्रादर्श झारा समुदाय के लोग, स्थानीय आदिवासी समुदायों जैसे मुरिया, गोंड, बाइसन-हॉर्न मारिया, भतरा आदि के लिए देवी-देवताओं की विभिन्न प्रतिमाओं की ढलाई करते हैं।इस प्रतिमा को एक अलंकृत सिंहासन पर बैठा हुआ दिखाया गया है। जिसमें सबसे ऊपर एक झंडा लगा है। पूरे सिंहासन को गुसाई देवी की अन्य बीस बहनों की छोटी डोकरा आकृतियों से सजाया गया है। देवी को गांव के बाहर एक स्थान टिकरा में रख कर पूरे गांव और समुदाय की समृद्धि के लिए उपासना की जाती है। झारा लोग सूर्योदय से पहले देवी प्रतिमा की पूजा करते हैं। वर्ष में एक या दो बार टिकरा गुसाई देवी को प्रसन्न करने के लिए बकरे या मुर्गे की बलि दी जाती है।



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