सतना : चित्रकूट के घाट पर गधों का मेला, औरंगज़ेब ने यहीं से खरीदे थे खच्चर

सतना : चित्रकूट के घाट पर गधों का मेला, औरंगज़ेब ने यहीं से खरीदे थे खच्चर


इस बार चित्रकूट के मेले में 11 हजार गधे और खच्चर लाए गए हैं.

​इस​ मेले (Donkey fair) की परंपरा मुगल बादशाह औरंगजेब ने शुरू की थी. कहते हैं,चित्रकूट के इसी मेले से उसने अपनी सेना (army) के बेड़े में गधे और खच्चर शामिल किए थे.

सतना. चित्रकूट के घाट पर सिर्फ संतों का मेला ही नहीं लगता बल्कि गधों (Donkey) का मेला भी भरता है. और ये आज से नहीं, बल्कि औरंगज़ेब के ज़माने से चला आ रहा है. हर साल दिवाली (Diwali) पर ये मेला भरता है जो तीन दिन चलता है. इस दौरान हज़ारों गधे और खच्चर बेचे-खरीदे जाते हैं.

राम की तपोभूमि चित्रकूट में मां मंदाकिनी के तट पर गधों का मेला लगता है. यह मेला ऐतिहासिक है और मूर्ति भंजक तानाशाह मुगल शासक औरंगज़ेब के ज़माने से चला आ रहा है. हर साल दिवाली के दिन मेला शुरू होता है और तीन दिन चलता है. पूरे देश-प्रदेश से व्यापारी और खरीददार यहां आते हैं. तीन दिन के इस मेले में हजारों गधे, घोड़े और खच्चरों की खरीद-फरोख्त इस दौरान की जाती है.

इस बार कम गधे आए
इस बार कोरोना के कारण हर बार की तुलना में कम पशु लाए गए. मेला कितना विशाल होता है इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि उसके बाद भी इस साल लगभग 11 हजार गधे घोड़े खच्चर यहां लाए गए थे. मेले में गधों की संख्या कम रही और कीमत ज्यादा. मेले में देश के कोने-कोने से गधा व्यापार अपने पशुओं को लेकर आते हैं. चित्रकूट में​ गधों का यह ​ ऐतिहासिक ​मेला है जिसमें लाखो का व्यापार होता है.चित्रकूट से औरंगज़ेब का नाता

​इस​ मेले की परंपरा मुगल बादशाह औरंगजेब ने शुरू की थी. कहते हैं,चित्रकूट के इसी मेले से उसने अपनी सेना के बेड़े में गधे और खच्चर शामिल किए थे. मेले में  कुछ व्यापारियों का  दर्द भी छलका. उनका कहना है इस बार कोरोना के कारण धंधा काफी मंदा है. अधिक गधे घोड़े न आने की वजह से उनका रेट बहुत ज्यादा बताया जा रहा है. हालांकि कुछ खरीददार ऐसे भी रहे जो 10 से 12 गधे ले गए. उनका कहना है कि यह मेला बहुत ही अच्छा है जिसके चलते हम को आसानी से पशु मिल जाते हैं.





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