आदिवासी परंपरा को जानने का अवसर: जनजातीय संग्रहालय की छत पर नजर आएंगी गोंड मान्यताएं

आदिवासी परंपरा को जानने का अवसर: जनजातीय संग्रहालय की छत पर नजर आएंगी गोंड मान्यताएं


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भोपाल33 मिनट पहले

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जनजातीय संग्रहालय की छत पर गोंड कलाकारों ने उकेरी आदिवासी परंपराएं।

  • जनजातीय संग्रहालय में 20 कलाकारों ने तीन हजार स्क्वायर फीट में तैयार किए चित्र
  • कलाप्रेमी आदिवासी परंंपरा को करीब से जान पाएंगे

जनजातीय संग्रहालय में जल्द ही पर्यटकों को गोंड जनजाति के उत्सव और मान्यताएं देखने को मिलेंगी। यहां की छत पर चित्र बनाने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। अभी यहां पर बने स्तंभों पर बांस से आकृतियां बनाने का काम किया जा रहा है। उन सभी चित्रों को तीन हजार स्क्वायर फीट पर तैयार किया गया है जिसे 20 अलग अलग कलाकारों ने तैयार किया है। इनमें 7 कलाकार मुख्य हैं। वे यहां जो चित्रकारी कर रहे हैं, उनमें गौंड जनजाति के मेले, सोच, बड़ादेव, मकड़ी की कथा, अमरकंटक स्थित नर्मदा नदी के किनारे लगने वाला मेला और उत्सव, बच्चों के खेल को चित्रित किया है। संग्रहालय में डिंडोरी जिले के रामनारायण मरावी ने चित्रों में गांव को शहर में बदलते हुए दिखाया है। वहीं सुखनंदी व्याम ने सहयोगी कलाकारों के साथ मिलकर पूस माह में लगने वाले मढ़ई मेले का दृश्य तैयार किया है।

गोंड जनजाति में बड़ादेव-मकड़ी की कहानी

बड़ादेव और मकड़ी की कहानी चित्रकार मयंक श्याम ने कहा उन्होंने अपने चित्रों के जरिए बड़ादेव और मकड़ी की कहानी को चित्रित किया है। गोंड जनजाति में बड़ादेव को भगवान माना जाता है। उन्होंने कहा एक सीप का कीड़ा, धरती का नक्शा बिगाड़ रहा था, तो बड़ादेव ने मकड़ी से कहा कि तुम धरती पर अपना जाल बिछा दो। मकड़ी ने वैसा ही किया, जिससे धरती बच सकी और सभी को जीवन मिला। तभी बड़ादेव ने मकड़ी को वरदान दिया तुम ऊपर से गिर कर कभी नही मरोगी। चित्रों में 10 से अधिक मकड़ी बनाई हैं।शिवरात्रि मेले को दर्शाया।

नर्मदा के किनारे लगने वाला शिवरात्रि मेला

गोंड कलाकार छोटी टेकाम अपने 5 सहयोगी कलाकारों के साथ मिल कर अमरकंटक में नर्मदा नदी के किनारे लगने वाले शिवरात्रि मेले को दिखाया है। साथ ही उन्होंने बताया है कि यहां पर भक्त मनोकामना मांगने और पूरे होने की कथा को दिखाया है। मेला एक से डेढ़ माह के लिए लगता है। जिसमें अमरकंटक के आस पास के गांव के लोग एक माह या फिर 15 दिनों के लिए मेले में जाते थे। साथ ही गांव से मेले तक पहुंचने वाले दृश्य को बताया है। उनकी दिनचर्या और वहां की संस्कृति को दर्शाया है। यह चित्र उन्होंने 20 बाय 20 की जगह में तैयार किया गया है।

घरसरी माता की आराधना

गोंड कलाकार दुर्गाबाई वयाम ने घरसरी माता की मान्यताओं को दिखाया है। वे बताती हैं कि गोंड जनजाति में घरसरी माता का बहुत अधिक महत्व है। जब भी कोई आदमी सुबह काम से लौटता है, तो वह शाम को एक बार जरूर घरसरी माता की आराधना करता है। इस चित्र में नृत्य, पूजा, दिनचर्या को दर्शाया है।



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