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भोपाल5 मिनट पहले
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गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मंगलवार को पीटीआरआई पहुंचकर अधिकारियों से चर्चा कर इसे संचालनालय बनाए जाने की बात कही।
- गृहमंत्री ने कहा कि दतिया में दूसरा प्रशिक्षण सेंटर बनाया जाएगा
मध्यप्रदेश में ट्रैफिक सुधार और एक्सीडेंट की संख्या कम करने के लिए भोपाल जहांगीराबाद स्थित पुलिस ट्रेनिंग एंव रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीटीआरआई) को संचालनालय बनाया जाएगा। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस संबंध में मंगलवार को पीटीआरआई में यह बात कही। हालांकि 7 साल पहले भी इस संबंध में पुलिस मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन आज तक फाइल आगे नहीं बढ़ पाई। इस दौरान उनके साथ डीजीपी विवेक जौहरी, एडीजी डीसी सागर समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे। नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि इसके साथ ही मुरैना में एक और इसी तरह का ट्रेनिंग स्कूल खोला जाएगा। संचालनालय बनने के बाद यह सीधे निर्देश दे सकेगी।
घायल की मदद करने वाले से पूछताछ नहीं होगी
नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि एक्सीडेंट में पहला घंटा अहम होता है। इसे गोल्डन आवर्स कहा जाता है। अब प्रदेश में एक्सीडेंट में घायल की मदद करने वाले से पुलिस पूछताछ नहीं करेगी। मददगार अगर बयान देना चाहेगा, तो ही पुलिस उसके बयान दर्ज करेगी। उसे बयान देने के लिए मजबूर नहीं करेगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि एक्सीडेंट होने पर घायल के लिए पहला घंटा सबसे महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में अगर कोई मदद करता है, तो पुलिस ने उसे बयान नहीं ले सकती है।
पीटीआरआई अभी सिर्फ पत्राचार तक सीमित
पीटीआरआई को एक्सीडेंट, रिसर्च और पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग देने के लिए बनाया गया है। सभी जिलों द्वारा एक्सीडेंट की जानकारी पीटीआरआई को भेजी जाती है। हालांकि यह एक साल पूरे होने के 2 से 3 महीने बाद भेजी जाती है। इसके बाद यहां से संबंधित जिले के एसपी को रिपोर्ट भेजकर एक्सीडेंट जोन पर स्थानीय स्तर पर कार्य करने की बात कही जाती है। यह पूरा कार्य पत्राचार तक सीमित रह गया है। इस कारण यह खानापूर्ति बनकर रह जाता है। अब इसे संचालनालय बनाकर नया रूप दिए जाने की कवायद शुरू की जा रही है।
इसलिए एक्सीडेंट की संख्या बढ़ती जा रही
प्रदेश में पुलिस को एक्सीडेंट के मामलों में अधिकांश सूचनाएं अस्पताल से मिलती हैं। साधारण तौर पर पुलिस एक्सीडेंट के मामलों में खानापूर्ति करते हुए चालक द्वारा तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाना लिखकर केस बना देती है। घायल के बयान पर ही पूरा मामला बन जाता है। इसी कारण लगातार एक्सीडेंट होने के बाद भी वहां पर सुधार नहीं हो पाते हैं। संचालनालय बनने से इस पर कार्य किया जा सकेगा। जिससे ट्रैफिक इंजीनियरिंग पर भी कार्य हो सकेगा।