Gwalior : ठंड में ठिठुरते, कचरे में खाना तलाशते मिले पूर्व पुलिस अफसर से मिलने पहुंचे 5 TI दोस्त

Gwalior : ठंड में ठिठुरते, कचरे में खाना तलाशते मिले पूर्व पुलिस अफसर से मिलने पहुंचे 5 TI दोस्त


ग्वालियर. ग्वालियर (Gwalior) में फुटपाथ पर ठंड में ठिठुरते हुए कचरे में खाना तलाश रहे पूर्व पुलिस अफसर मनीष मिश्रा (Manish mishra) की ज़िंदगी अब पटरी पर लौटने लगी है. सोमवार को उनके बैच के 5 पुलिस अफसर मनीष से मिलने स्वर्ग सदन आश्रम पहुंचे. मनीष ने सबको पहचान लिया और उनके परिवार के बारे में बातचीत भी की.

मनीष मिश्रा अब ठीक हो रहे हैं. दोस्तों ने उन्हें नयी ज़िंदगी दे दी है. फिलहाल मनीष को स्वर्ग सदन आश्रम में रखा गया है. यहीं उनकी देखभाल और इलाज किया जा रहा है. जब मनीष के यहां होने की जानकारी दोस्तों को लगी तो उनके बैच के 5 पुलिस अफसर उनसे मिलने आश्रम पहुंच गए. ग्वालियर TI आसिफ़ मिर्ज़ा बैग, सतीश भदौरिया, राम नरेश यादव, EOW इंस्पेक्टर सतीश चतुर्वेदी, देवास TI पंकज द्विवेदी मनीष से मिलने पहुंचे. ये सभी अब अलग-अलग इलाकों के टीआई है.

मनीष ने कीं दिल की बातें
मनीष मिश्रा ने सबको पहचान लिया. वो सभी से खुलकर और खुश होकर मिले. मनीष ने एक और बैचमेट शिवसिंह यादव के बारे में पूछा. शिव सिंह अब मेहगांव में टीआई हैं. साथियों ने फौरन मनीष की मोबाइल पर वीडियो कॉल के ज़रिए शिव सिंह से बात करवायी. बात करके मनीष पुरानी यादों में खो गए. शिव सिंह से उनके परिवार और भाई के बारे में बात की. उन सबका भी हाल जाना.10 नवंबर की वो रात

वो 10 नवंबर की रात थी. मतगणना ड्यूटी करके DSP विजय सिंह और रत्नेश तोमर ग्वालियर में अपने घर लौट रहे थे. वो झांसी रोड से निकल रहे थे. जैसे ही दोनों बंधन वाटिका के फुटपाथ से होकर गुजरे तो सड़क किनारे एक अधेड़ उम्र के भिखारी को ठंड से ठिठुरता हुए देखा. गाड़ी रोककर दोनों अफसर भिखारी के पास गए और मदद की कोशिश. रत्नेश ने अपने जूते और डीएसपी विजय सिंह भदौरिया ने अपनी जैकेट उसे दे दी. इसके बाद जब दोनों ने उस भिखारी से बातचीत शुरू की, भिखारी ने उन दोनों का नाम लेकर पुकारा. किसी फिल्मी कहानी की तरह पल भर में ये सच सामने आया कि भिखारी की हालत में पहुंच चुका ये शख्स दरअसल उन्हीं के बैच का पुलिस अफसर मनीष मिश्रा है.

10 साल से थे लापता
भिखारी के रूप में पिछले 10 साल से लावारिस हालात में घूम रहे मनीष मिश्रा कभी पुलिस अफसर थे. वह अचूक निशानेबाज भी थे. मनीष 1999 में दारोगा के पद पर पुलिस में भर्ती हुए थे. उसके बाद एमपी के विभिन्न थानों में थानेदार के रूप में पदस्थ रहे. उन्होंने 2005 तक पुलिस की नौकरी की. अंतिम बार में दतिया में बतौर थाना प्रभारी पोस्टेड थे. लेकिन धीरे-धीरे उनकी मानसिक स्थिति खराब होती चली गई. घरवाले उनसे परेशान होने लगे. इलाज के लिए उनको यहां-वहां ले जाया गया, लेकिन एक दिन वह परिवार वालों की नजरों से बचकर घर छोड़कर चले गए.

पत्नी ने छोड़ा

परिवारवालों को पता नहीं कैसे मनीष की खबर नहीं लगी. जबकि वो यहीं भटक रहे थे. जब घरवालों ने मनीष की खोजबीन बंद की तो पत्नी भी घर छोड़कर चली गई.मनीष यहां वहां पता नहीं कहां-कहां भटकते हुए भीख मांगने लगे. और भीख मांगते-मांगते करीब दस साल गुजर गए.
कभी सोचा भी नहीं था…
दोनों डीएसपी साथियों ने बताया कि मनीष उनके साथ साल 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर भर्ती हुए थे. उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि मनीष एक दिन इस हाल में उन्हें मिलेंगे.

डीएसपी दोस्तों ने शुरू कराया इलाज
दोनों ने मनीष से काफी देर तक पुराने दिनों की बात करने की कोशिश की और अपने साथ ले जाने की जिद भी की. लेकिन मनीष साथ जाने के लिए राजी नहीं हुए. इसके बाद दोनों अधिकारियों ने मनीष को समाजसेवी संस्था स्वर्ग सदन आश्रम में भिजवाया. वहां मनीष की अच्छे से देखभाल शुरू की गयी और अब वो धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं.

पुलिस परिवार से हैं मनीष
डीएसपी दोस्तों के मुताबिक मनीष के भाई भी थानेदार हैं और पिता और चाचा एसएसपी के पद से रिटायर हुए हैं. उनकी एक बहन किसी दूतावास में अच्छे पद पर हैं. मनीष की पत्नी, जिसका उनसे तलाक हो गया, वह भी न्यायिक विभाग में पदस्थ हैं.

भावुक हुए आईजी
मनीष की इस बदहाली और दोस्तों की पहल की खबर मीडिया में सुर्खियों में रही. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पदस्थ आईजी दीपांशु काबरा ने भी ये खबर पढ़ी. उन्होंने ट्वीट किया-‘ खबर पढ़कर मन भावुक हो गया…’





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