कांग्रेस ने शुरू से ही भाजपा के विरुद्ध ‘आक्रामक रवैया’ अपनाया. कभी ‘ग़द्दार’ तो कभी ‘बिकाऊ’ कह कर कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए विधायकों और उनके मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया पर मुखर होकर हमला बोला. इसके विपरीत भाजपा ने शिवराज के नेतृत्व में सधी हुई रणनीति पर काम करते हुए शिवराज सिंह चौहान को पूरे चुनाव की धुरी बना कर रख दिया.
Source: News18Hindi
Last updated on: November 18, 2020, 12:48 PM IST
कांग्रेस ने शुरू से ही भाजपा के विरुद्ध ‘आक्रामक रवैया’ अपनाया. कभी ‘ग़द्दार’ तो कभी ‘बिकाऊ’ कह कर कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए विधायकों और उनके मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया पर मुखर होकर हमला बोला. कभी मतदाताओं को गंगाजल देकर उसे ‘स्वच्छ’ करने का अभियान चलाया तो कभी ‘लोकतंत्र’ को बचाने की गुहार लगाई.
इसके विपरीत भाजपा ने शिवराज के नेतृत्व में सधी हुई रणनीति पर काम करते हुए शिवराज सिंह चौहान को पूरे चुनाव की धुरी बना कर रख दिया. भाजपा ने तर्क दिया कि हमारी कथनी और करनी में फर्क नहीं है और कमलनाथ द्वारा किए जाने वाले आरोपों पर हमला किया. भाजपा ने कांग्रेस सरकार आते ही बंद हुई तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में लगातार जनता से चर्चा जारी रखी, विभिन्न माध्यमों से शिवराज केंद्रित पॉज़िटिव कैम्पेन पर फ़ोकस बनाए रखा.
‘आत्मनिर्भर भारत’ के सुर में सुर मिलाते हुए शिवराज ने भी ‘आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश’ अभियान की शुरुआत की और कांग्रेस द्वारा किसानों और युवाओं को ठगे जाने को मुद्दा बनाने में कामयाब रहे. ग़ौरतलब है कि बड़ी संख्या में जिन किसानों का कर्ज़ माफ नहीं हुआ, उन्हें दंड ब्याज भरना पड़ा था, किसका दर्द शिवराज सिंह चौहान बखूबी समझते थे और वे इसे आक्रोश में बदलने में कामयाब रहे. वहीं शिवराज ने मुख्यमंत्री किसान कल्याण निधि जैसी योजना को अमली जामा पहना दिया. पीएम मोदी के ₹ 6000 में अपनी तरफ़ से ₹ 4000 जोड़ कर किसानों के खाते में पैसे पहुंचाने शुरू कर दिए!
शिवराज सिंह चौहान ने अपनी हर रैली और सभा में कांग्रेस से सवाल किया संबल, लाड़ली लक्ष्मी, कन्यादान योजना, आदि क्यों बंद की? बेटियों के लिए, मज़दूरों के लिए, किसानों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं को बंद कर राज्य में IIFA कराने के पीछे क्या तर्क था? कांग्रेस इन आरोपों को नजरअन्दाज करती रही. आधी आबादी में एक अलग पहचान रखने वाले शिवराज ने कमलनाथ सरकार द्वारा महिला हितैषी योजनाओं से समझौता करने को एक बड़ा मुद्दा बनाया. संबल जैसी योजना जिससे हर गरीब को नया संबल मिला था वह भी फिर शुरू कर दी.
जनता के बीच ‘शिवराज है, तो विश्वास है’ नारे के साथ भाजपा मैदान में उतरी. एक तरफ शिवराज ने चुनावी अभियान में दिन-रात एक कर खूब मेहनत की तो दूसरी ओर उन्होंने हाईटेक अभियान की भी शुरुआत की. डिजिटल रथ, सोशल मीडिया आदि के माध्यम से गांव-गांव तक मुख्यमंत्री शिवराज यह संदेश लेकर गए कि भरोसे का दूसरा नाम भाजपा है. और जब तक भाजपा है, तब तक सभी योजनाओं का फ़ायदा जनता को मिलता रहेगा. एक तरफ जहां शिवराज के नेतृत्व में भाजपा ने सधा और संगठित अभियान चलाया दूसरी तरफ कांग्रेस के नेताओं और उनके विचारों में बिखराव साफ दिखा. जिसका नतीजा रहा 19-9 की विजय. ऐसी विजय जो भाजपा को कभी नहीं मिली. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)
First published: November 18, 2020, 12:48 PM IST