इलेक्ट्रिक कार की बैटरी पावर
इलेक्ट्रिक कारों में पेट्रोल और डीजल कारों की तरह ‘इंटरनल कंब्यूशन इंजन’ नहीं होता है. यह कारें फ्यूल सेल्स से चलती हैं, जो हाइड्रोजन और लीथियम ऑयन से बिजली पैदा करते हैं. हर सेल में पॉजिटिव इलेक्ट्रोड होते हैं, जिनमें लीथियम और कोबाल्ट की मात्रा अधिक होती है. साथ ही इन सेल्स में नेगेटिव इलेक्ट्ऱोड भी होते हैं, जिनमें ग्रेफाइट की मात्रा ज्यादा होती है. इन सेल्स के इलेक्ट्ऱ़ोड के बीच एटम्स प्रकिया होती है, जो मोटर को पावर देते हैं. बता दें कि इलेक्ट्रिक कार कम शोर करती हैं. इससे प्रदूषण का खतरा भी कम होता है. साथ ही इन कारों को पेट्रोल, डीजल या सीण्नजी इंजन से चलने वाली कारों की तरह समय-समय मरम्मत की भी जरूरत नहीं पड़ती है.
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पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों के उलट इलेक्ट्रिक कारें ग्रीन इल्युशन के उत्सर्जन को कम नहीं करती हैं. हालांकि, कई मायनों में इन कारों की बैटरी पर्यावरण के लिहाज से बेतहर नहीं है. दरअसल, इन बैटरियों को चार्ज करने के लिए बिजली की जरूरत होती है, जो कोयला-जलाने और न्यूक्लियर पावर स्टेशन से बनाई जाती है.
बैटरी का पर्यावरण पर ये है असर
बैटरी के लिए केमिकल्स के खनन का भी पर्यावरण पर बड़ा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कार चलाते समय सड़कों पर रिसने वाले पानी में जहरीले पदार्थ होते हैं. पर्यावरण के लिहाज से ये ठीक नहीं हैं. बता दें कि बैटरी में इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन कोबाल्ट डेमोक्रेटिक रिपब्ल्कि ऑफ कॉन्गो की खदानों से आता है, जहां बड़े और छोटे बच्चे मजदूर के तौर पर काम करते हैं. यह मजदूर अपनी जान को जोखिम में डाल खनन का काम करते हैं और एमनेस्टी जैसे मानवाधिकार की बात करने वाले संगठन ने इस खनन प्रक्रिया को बाल मजदूर कानून के खिलाफ माना है.
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बैटरी के रिसाइकिलिंग की समस्या
इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी की रिसाइकिलिंग भी बड़ी समस्या है. वहीं, कुछ इंडस्ट्री का कहना है कि कोबाल्ट की वैश्विक आपूर्ति पहले से ही निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है और भविष्य में भी इसकी मांग में कमी हो सकती है. बताया जा रहा है कि बैटरी कारों में अभी बहुत कुछ विकसित करने की जरूरत है. क्योंकि यह चार्ज होने में बहुत वक्त लेती हैं और इससे आप एक वक्त में लंबा सफर तय नहीं कर सकते हैं.
2028 तक इतनी होंगी इलेक्ट्रिक कारें
यूरोपियन कमीशन का अनुमान है कि साल 2028 तक सड़कों पर 200 मिलियन इलेक्ट्रिक कारें दौड़ेंगी. बता दें कि बैटरी इलेक्ट्रिक कारों की वैल्यू 40 फीसदी तक बढ़ा देती है. वहीं, चीन का दुनिया की दो तिहाई बैटरी मैन्युफैक्चरिंग मार्केट पर कब्जा है, लेकिन यूरोपीय संघ को 2028 तक अपने हिस्से को मौजूदा 3 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी तक करने की उम्मीद है.