देशव्यापी हड़ताल: बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने सहित 10 सूत्रीय मांगों को लेकर बैंककर्मियों ने नहीं किया काम, गेट पर ताले

देशव्यापी हड़ताल: बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने सहित 10 सूत्रीय मांगों को लेकर बैंककर्मियों ने नहीं किया काम, गेट पर ताले


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इंदौर3 मिनट पहले

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बैंक के शटर पर इस प्रकार से हड़ताल लिखे पोस्टर लगा दिए गए थे।

सेंट्रल ट्रेड यूनियन के आह्वान पर गुरुवार को बैंककर्मी हड़ताल पर चले गए। इस कारण सभी व्यावसायिक और ग्रामीण बैंकों में कामकाज ठप रहा। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर एसोसिएशन का कहना है कि ऑल इंडिया बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर एसोसिएशन, बैंक इंप्लाइज़ फेडरेशन ऑफ इंडिया और यूनाइटेड फोरम ऑफ ग्रामीण बैंक यूनियन के बैंक प्रबंधन आंदोलन में शामिल हैं।

स्टेट बैंक का यूनियन एनसीबीई और भारतीय मजदूर संघ का बैंक यूनियन नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स ने भी हड़ताल का नैतिक समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि सेंट्रल ट्रेड यूनियन की सामान्य मांगों के अतिरिक्त बैंक यूनियनों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने, बैंकों में जमा राशि पर ब्याज बढ़ाने, कॉरपोरेट घरानों से एनपीए ऋण की वसूली के लिए सख्त कार्रवाई करने, अस्थायी कर्मियों का नियमितीकरण, आउटसोर्सिंग पर प्रतिबंध, खाली पदों पर अविलंब नियुक्ति में प्रायोजक व्यावसायिक बैंकों के साथ ही 10 सूत्री मांगों को लेकर बैंककर्मी हड़ताल पर हैं।

हड़तालकर्मियों का कहना था कि हमारा विरोध सरकार की नीतियों को लेकर है। सरकार अपने क्षेत्रों वाले बैंकों का धीरे-धीरे निजीकरण करने की कोशिश में लगी है। वित्तमंत्री कई बार यह कह चुकी हैं कि जो सरकारी बैंक बचे हैं। उनमें लगी सरकार की पूंजी को हटाकर प्राइवेट पूंजी को लाया जाएगा। पिछले दिनों रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि भारत में औद्योगिक घरानों को बैंक खोलने के लाइसेंस दिए जाएंगे। यह बहुत घातक कदम होगा। विश्व में कहीं ऐसा नहीं होता। यदि उद्योगपति बैंक खोलेंगे तो वे जनता की जमापूंजी अपने उद्योगों को बढ़ावा देने में लगाएंगे। यदि उनका धंधा नहीं चला तो जनता की जमा पूंजी डूब जाएगी। बहुत से प्राइवेट बैंक पहले भी मिस मैनेजमेंट के कारण खत्म हो चुके हैं। आज भारत को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत है। उनका कहना था कि हमारी लड़ाई सरकार की नीतियों को लेकर है। बैंकों का निजीकरण, भर्ती, बैंकों में ठेका प्रणाली, आउट सोर्सिंग समाप्त करने की लड़ाई है, जो जारी रहेगी।



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