एक मेला ऐसा भी: 90 साल में पहली बार ऊंची नस्ल के गधे भी नहीं मिल रहे

एक मेला ऐसा भी: 90 साल में पहली बार ऊंची नस्ल के गधे भी नहीं मिल रहे


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उज्जैन16 मिनट पहले

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  • शिप्रा तट पर हर साल लगता है गधों का मेला, व्यापारी लौट रहे खाली हाथ

197 किलोमीटर की दूरी तय करके दाहोद से आए भागवत अपने पूरे कुनबे के साथ दस दिन से शिप्रा तट पर डटे हैं। पत्नी सुशीला शाम ढलने के पहले खुले आसमान के नीचे चूल्हा जलाती हैं क्योंकि स्ट्रीट लाइट के अलावा उनके पास रोशनी का कोई दूसरा साधन नहीं है।

पीने का पानी हैंडपंप से ले रहे हैं। जिस मकसद से वे यहां आए थे वह पूरा नहीं हुआ। आखिर वे दो दिन और इंतजार करने के बाद लौट जाएंगे। भागवत बताते हैं कि दादा, परदादा आते थे। यह क्रम 90 साल से चल रहा है।

पहली बार ऐसा हुआ जब उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। वे 100 गधे खरीदने आए थे लेकिन एक भी नहीं मिला। भागवत ऐसे अकेले कारोबारी नहीं हैं। बड़नगर रोड पर ऐसे 10 परिवार की अस्थायी बसाहट हो गई है। यह गुजरात और महाराष्ट्र से आए हैं। टेंट में निवास, धरती बिछौना और ओढ़ने को खुला आसमान।

कार्तिक माह की देव प्रबोधिनी एकादशी से शिप्रा तट पर गधों का मेला लगता है। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान से हर साल औसत 400 कारोबारी आते थे। बड़नगर रोड का एक हिस्सा गधों, घोड़ों और खच्चरों से पट जाता था।

इस बार हालात अलग हैं। दस दिन से अच्छी नस्ल के गधे की खरीदी का इंतजार करने आए व्यापारियों के लिए 40 गधे, 15 घोड़े और 1 खच्चर स्थानीय व्यापारी लेकर आए हैं। स्थानीय व्यापारी महेश प्रजापति ने बताया हमारे यहां के गधे महाराष्ट्र, गुजरात और खच्चर वैष्णोदेवी तक भी गए।

देव प्रबोधिनी एकादशी पर ढोल ढमाके से मेले की शुरुआत होती है। समापन पर ऊंचे दाम पर गधे, घोड़े, खच्चर खरीदने वाले व्यापारियों का सम्मान भी होता है।

ईंट भट्‌टों पर ट्रेंड हो जाते हैं यहां के गधे, इसलिए पसंद

तीन भाइयों को लेकर यहां आए हैं। हर साल यहां से ऊंची नस्ल के 40 से 50 गधे खरीदकर ले जाते हैं। इस बार सात दिन में केवल चार गधे ही अच्छी नस्ल के मिल पाए हैं। यहां के गधे ईंट भट्‌टों पर काम करते हैं और इतने ट्रेंड हो जाते हैं कि उन्हें छोटे बच्चों के साथ भी छोड़ दिया जाए तो किसी तरह का डर नहीं रहता।

यही कारण है कि साल में एक बार यहां से गधे ले जाते हैं और अपने भट्‌टों पर काम चलाते हैं। इस बार अच्छी नस्ल के गधे मिलने की उम्मीद नहीं है। इस बार ट्रांसपोर्ट का खर्च भी निकलने की उम्मीद नहीं

भावगढ़ में भी लगता है गदर्भ मेला

जयपुर से 10 किमी दूर गोनेर रोड पर लूणियावास के पास भावगढ़ बंध्या में कुम्हारों की कुलदेवी खनकानी माता (पूर्व नाम कल्याणी माता) के मंदिर परिसर के मैदान में गधों का सालाना मेला भरता है।

इस बार ट्रांसपोर्ट का खर्च भी निकलने की उम्मीद नहीं

472 किलोमीटर का सफर तय कर यहां इसलिए आते हैं कि बारिश के बाद यहां गधे सस्ते में मिल जाते हैं। इस बार कोरोना संक्रमण के कारण आशंका थी कि मेला नहीं लगेगा लेकिन कुछ लोगों के फोन आए कि मेला लगेगा।

इस कारण उज्जैन आ गए। यहां आने पर पता चला कि मेला नहीं लग रहा है। ऊंची नस्ल के गधे भी कम ही आए हैं। ऐसे में उन्हें ले जाने में ट्रांसपोर्ट का खर्च भी नहीं निकलने वाला। एक-दो दिन इंतजार करने के बाद वापस अपने शहर लौट जाएंगे।
जयराम साहिबराव सिराले, महाराष्ट्र



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