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- Sounded As A Buffalo, The Elephant Eating The Paddy Ran To The Teeth And Punched In The Back, Treating The Injured In Jabalpur
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जबलपुर14 मिनट पहले
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- मंडला के बीजाडांडी में हाथी के आक्रमण में घायल आदिवासी की जुबानी पूरी घटना
“मैं तो मौत के मुंह से बचा हूं। अंधेरा हो गय था। घर की बाड़ी में धान रखा था। तभी नजर पड़ी तो काला सा जानवर धान खाते हुए दिखा। लगा भैंस है। आवाज लगाई। पल भर में मेरे सामने मौत खड़ी थी। हाथी ने सूंड से धक्का देकर गिरा दिया। फिर नुकीले दांत पीठ में गड़ा दिए। शुक्र था कि हाथी के पीछे कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे। वह मुझे छोड़कर कुत्तों की ओर झपटा। यही वो पल था, जब मैने पूरी ताकत लगाकर शोर मचाते हुए दौड लगा दी। इसके बाद हाथी भाग गया।’ घायल भैसवाही बीजाडांडी निवासी भगत गनेशा (45) ने दैनिक भास्कर से एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान अपनी आपबीती सुनाई।
हाथी राम ने पीठ में धंसाया दांत
चार इंच का गहरा गांव है
भगत ने बताया कि मेरे पीठ में चार इंच गहरा घाव है। कुत्ते नहीं भौंकते तो हाथी मुझे मार ही डालती। अब भी वह दृश्य मेरे आंखों के सामने रह-रह कर तैर जाती है। भगवान का शुक्र है की जिंदा बच गया। घटना के बाद बेटे अनिल कुमार ने डायल-100 पर सूचना दी। इसके बाद पुलिस और फारेस्ट विभाग के लोग पहुंचे और मुझे पहले बीजाडांडी अस्पताल ले जाया गया। वहां से मेडिकल रेफर कर दिया गया। हाथी ने नगरार गांव निवासी भूरा उर्फ राजकुमार यादव (55) को भी खेत में पटक कर पैर रख दिया था। उसके चेहरे व पीठ पर चोट आई है। उसे तो बीजाडांडी से ही इलाज के बाद छुट्टी मिल गई। भगत के मुताबिक पूरी जिंदगी में कभी मेरे गांव में हाथी नहीं आया था।

राम-बलराम नाम के हाथी की फाइल फोटो
फैमिली नेचर का होता है हाथी
प्राणी विशेषज्ञ डॉक्टर एबी श्रीवास्तव ने बताया कि हाथी फैमिली नेचर का हाेता है। बलराम के साथ उसकी जोड़ी लंबे समय से थी। उसकी मौत से वह अकेला पड़ गया है। इस कारण विचलित है। ऐसे स्थित में ग्रामीणों को उससे दूरी बनाकर रखना चाहिए। पास जाने पर वह उग्र होकर जान भी ले सकता है। दोनों हर बार नरसिंहपुर में गन्ना के सीजन में जाते थे।
वहां कभी कोई घटना नहीं है, कारण की वहां कोई उन्हें छेड़ता नहीं था। कान्हा में उसे पूर्व में आराम मिला था। वह वापस जा रहा है। हाथी की मैमोरी इंसान से अधिक होती है। उसे कान्हा में ही आराम मिलेगा। ट्रेंक्युलाइज कर उसे कान्हा ले जाकर पालतू बनाना ही एक मात्र विकल्प है। बांधवगढ़ व कान्हा में पूर्व में ऐसा किया जा चुका है।