कहानी पूरी फिल्मी है: नौ वर्ष की उम्र में इकलौता बेटा परिवार से बिछड़ा, सदमे में चल बसी मां, विकलांग पिता को 10 साल बाद मिलेगा ‘लाल’

कहानी पूरी फिल्मी है: नौ वर्ष की उम्र में इकलौता बेटा परिवार से बिछड़ा, सदमे में चल बसी मां, विकलांग पिता को 10 साल बाद मिलेगा ‘लाल’


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जबलपुर16 मिनट पहले

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क्षेत्रीय विधायक विनय सक्सेना के साथ पीड़ित परिवार

  • क्षेत्र के लोगों ने की मदद, क्षेत्रीय विधायक भी मदद को आगे आए

ये कहानी पूरी फिल्मी है। अपनों से बिछड़ने का अथाह दर्द है, तो सदमें में मां के प्राण त्यागने का दुख भी जुड़ा है। हालात और विपत्ति के मारे पिता की बेबसी पर शायद ईश्वर को भी रहम आ गया। 10 वर्ष पहले खोए बेटे के अचानक मिलने की खबर ने विकलांग पिता की अंधेरी जिंदगी में फिर से रोशनी की लौ जला दी है। बेटे से मिलने की राह में पैसों का रोड़ा आया तो क्षेत्रीय लोग आगे आए। चंदा कर पैसे की व्यवस्था की और क्षेत्रीय विधायक के पास ले जाकर प्रशासनिक मदद दिलाई। अब उम्मीद है कि प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी होते ही पिता को अपना बिछड़ा “लाल’ मिल जाएगा।
भाई निधन पर निकला था ग्वालियर
कोतवाली क्षेत्र के दीक्षितपुरा में किराए के मकान में रह रहे 48 वर्षीय पिता रविशंकर श्रीवास्तव दूसरों की दया पर जिंदगी लाठी टेक रहे हैं। रविशंकर ने बताया कि मेरा भी हंसता खेलता परिवार था। पत्नी रमा श्रीवास्तव और इकलौते बेटे राहुल तक मेरी दुनिया सिमटी हुई थी। तब मैं पंजाब बैंक कॉलोनी में रहता था। आज भी मुझे 15 अक्टूबर 2010 की वो तारीख याद है। ग्वालियर में रह रहे मेरे बड़े भाई का निधन हो गया था।
ग्वालियर पहुंचा ही था कि बेटे के गुम होने की खबर मिली
मैं घर से रेलवे स्टेशन निकला। और पीछे मेरा बेटा राहुल भी निकल गया। इसकी भनक न मुझे लगी और न ही पत्नी या किसी अन्य को। मैं ट्रेन पकड़ कर ग्वालियर निकल गया। मेरे पीछे बेटा किसी और ही ट्रेन में बैठकर हावड़ा चला गया। इसकी जानकारी 10 वर्ष बाद मुझे 17 मार्च को हुई, जब बेटे के कोलकाता में सकुशल होने की खबर मिली।
टूटा दुखों का पहाड़
मैं ग्वालियर पहुंचा ही था कि खबर मिली बेटा राहुल (9) नहीं मिल रहा। अगली ही ट्रेन से जबलपुर आ गया। बेटे की तलाश में पूरा शहर छान मारा। दर-दर भटका। बेटे को पाने के हर जतन किए। 26 अक्टूबर 2010 को कोतवाली थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई। पुलिस ने भी अपने स्तर पर प्रयास किया, लेकिन बेटे का कोई सुराग नहीं मिला। दो साल बाद इसी सदमे में मेरी पत्नी रमा भी चल बसी। काम धंधा छूटा तो पेट पालने के लिए रिक्शा चलाने लगा। डेढ़ साल पहले एक्सीडेंट में एक पैर खराब हो गया तो जिंदगी का ये सहारा भी छिन गया। अब तो लाठी से टेक कर चलना मजबूरी बन चुकी है।
10 साल बाद अचानक मिली खुशी
17 मार्च को कोतवाली टीआई रहे आरके मालवीय ने बुलाया। थाने में एक फोटो दिखाई। वह मेरे बेटे की थी। बोले की आपका बेटा 10 साल पहले भटक कर हावड़ा पहुंच गया था। वहां की पुलिस को वह स्टेशन पर रोते हुए मिला था। पूछने पर बताया कि उसके पापा खो गए हैं। पुलिस को लगा शायद उसके पिता स्टेशन पर खो गए। उसे बच्चों की देखभाल करने वाली संस्था मालीपुकुर समाज उन्नयन समिति को सौंप दिया। अब वह 19 साल का हो चुका है और 11वीं में पढ़ रहा है। पुलिस ने हावड़ा पुलिस को मिले उसके बचपन की फोटो दिखाई। रविशंकर ने भी घर में पड़ी बेटे की फोटो दिखाई। मिलान कराया गया, तो एक ही था।

राहुल की फोटो, जब वह गायब हुआ था

राहुल की फोटो, जब वह गायब हुआ था

मिसिंग पोर्टल से मिली जानकारी
कोतवाली के पूर्व टीआई रहे आरके मालवीय ने बताया कि मिसिंग पोर्टल में देश भर के गुम बच्चों का डेटा अपलोड किया जा रहा है। पुराने प्रकरण में भी इसकी जानकी अपलोड की जा रही है। इसी पोर्टल में राहुल की फोटो देखकर हावड़ा की पुलिस ने संपर्क किया था। इसके बाद पिता रविशंकर से बेटे की फोटो बुलाई गई। उसके गुमशुदगी की एफआईआर में लगी फोटो भी निकाली गई। राहुल के ही होने की पुष्टि हुई। मिलन की बारी आई तो लॉकडाउन लग गया।
कोलकाता जाने तक के नहीं थे पैसे
तब से रविशंकर की बेटे से लगातार बात तो हो रही है, लेकिन उससे मिलने की राह में कई रोड़े आते गए। लॉकडाउन हटा तो उसके पास आर्थिक समस्या खड़ी हो गई। उसकी बेबसी की कहानी क्षेत्र के मुकेश सराफ और अतुल वाजपेयी को लगी। अपने स्तर से पांच हजार की मदद दी और फिर उसे क्षेत्रीय विधायक विनय सक्सेना के पास ले गए। विधायक ने एसपी और सीडब्ल्यूसी के सदस्य से बात की। राहुल की देखभाल करने वाली संस्था की कंचन पाल ने सुपुर्दगी के लिए पुलिस का प्रमाण पत्र और सीडब्ल्यूसी का आदेश पत्र लाने की बात कही है। शुक्रवार को ये सारी कवायद पूरी करने के बाद पिता कोलकाता रवाना होगा।
संस्था भी पिछले 10 वर्षों से ढूंढ रही थी परिवार को
संस्था मालीपुकुर समाज उन्नयन समिति की कंचन पाल ने बताया कि राहुल जब मिला था, तो वह पता के तौर पर बिहार नाम लेता था। हमारी संस्था ने बिहार में उसके परिवार के बारे में खोजने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी पता नहीं चला। दरअसल राहुल का परिवार जिस पंजाब बैंक कॉलोनी में रहता था, उसके सामने का क्षेत्र गोपाल बिहार नाम से प्रसिद्ध है। राहुल को बिहार शब्द ही याद थे। विधायक विनय सक्सेना ने बताया कि रविशंकर को पूरी प्रशासनिक मदद मिलेगी। उसके बेटे की पढ़ाई-लिखाई की जवाबदारी अब हमारी होगी।



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