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सागर8 घंटे पहले
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सांकेतिक फोटो
- मेडिकल कॉलेज के एनअाईसीयू में 32 प्रतिशत और जिले में 20 प्रतिशत बच्चे नहीं बच पा रहे
सागर जिले की सरकारी संस्थाओं में जन्म लेने वाले 20 फीसदी नवजात शिशुओं और पीडियाट्रिक्स में भर्ती हाेने वाले बच्चाें की माैत का आंकड़ा थमने का नाम नहीं ले रहा है। जिले में बीते 3 महीनाें में 641 की माैत हाे गई। यह तब है, जब जिला मुख्यालय पर एसएनसीयू, बीएमसी में एनआईसीयू और पीअाईसीयू काम कर रहे हैं। अधिकांश शिशु ताे जन्म से 20 दिन के बीच चल बसे।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधीन जिला अस्पताल में स्थित एनआईसीयू, बीएमसी में एनअाईसीयू और पीआईसीयू नवजात शिशुओं और गंभीर बीमारियाें से पीड़ित बच्चाें की जान बचाने में नाकाफी साबित हाे रहे हैं। बीते 1 सितंबर से 4 दिसंबर तक इन संस्थाओं सहित जिले की सामुदायिक स्वास्थ्य संस्थाअाें में 3159 नवजात और एक महीने से अधिक के बच्चे भर्ती कराए गए थे। इनमें से 641 की इलाज के दाैरान जान चली गई।
सिर्फ बीएमसी में ही 92 बच्चे मर गए, ताे स्वास्थ्य विभाग के एसएनसीयू व न्यूनेटल केयर सेंटराें में 549 शिशुओं काे बचाया नहीं जा सका। शिशु मृत्युदर के मामले में सागर प्रदेश के वन ऑफ द हाईएस्ट जिलाें में शामिल है।
बीएमसी का माैताें पर तर्क
- शिशु राेग विभाग में डाॅक्टराें की कमी।
- विभाग के डाॅक्टराें की काेविड में ड्यूटी।
- पीजीएमओ के पद खाली।
- जेआर के छह पर पूरे पद खाली।
- संभागभर से गंभीर बच्चे रेफर हाेकर आते हैं।
- अधिकांश शिशु कम वजन व इंफेक्शन वाले भर्ती।
- प्रायवेट नर्सिंग हाेम से अतिगंभीर शिशु रेफर करते हैं।
जिला अस्पताल में 15 दिन में 12 की माैत
जिला अस्पताल के एसएनसीयू में बीते 15 दिन में 12 नवजात की माैत हाे चुकी है। इनमें डफरिन अस्पताल सहित बंडा, खुरई, बांदरी, जरुवाखेड़ा, राहतगढ़, बीना व एक प्रायवेट नर्सिंग हाेम से रेफर हाेकर आए थे।
सामान्य से ज्यादा माैतें है
शिशुराेग विभाग के एचओडी काे बुलाकर0 एनआईसीयू और पीआईसीयू में मृत्यु का आंकड़ा बढ़ने की जानकारी ली है। स्टाफ और ड्यूटी डाॅक्टराें की कमी है। शासन काे पत्र भी लिखा है।
– डाॅ. आरएस वर्मा, डीन बीएसमी सागर
बीएमसी में यह स्थिति है
बीएमसी बता रहा डाॅक्टराें की कमी ताे रेफर हाेकर आने वाले बच्चाें की माैत का आंकड़ा सबसे ज्यादा