‘अब बस बहुत हुआ’ कहना मुनासिब समझा
सपने देखकर अक्सर उसे पूरा करने वाला ये खिलाड़ी यथार्थवादी भी रहा है. पिछले एक साल में डॉक्टरों के तमाम प्रयास और चाहने वालों की दुआओं के बावजूद पिता अजयभाई के स्वास्थ में बहुत सुधार हो नहीं रहा है और ऐसे में पार्थिव के पास कोई चारा नहीं था कि वो अपने संन्यास के फैसले को और कुछ वक्त के लिए टाल पाते. वैसे भी इस साल जब आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने उन्हें एक भी मैच में खेलने का मौका नहीं दिया तो शायद क्रिकेटर के तौर पर उनके अहम को भी ठेस पहुंची होगी और उन्होंने अब बस बहुत हुआ कहना मुनासिब समझा हो.
कोच और कमेंटेटर के तौर पर अब दिखेंगे पार्थिव!
पिछले हफ्ते ही इस लेखक के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में पटेल ने इस बात के संकेत दिए थे कि वो अब क्रिकेट में दूसरी पारी की शुरुआत करना चाहते हैं. उनके पास एक आईपीएल टीम के साथ कोच और मेंटर के तौर पर जुड़ने का ऑफर है तो साथ ही कमेंटेटर और एक्सपर्ट के तौर पर भी वो खुद को आजमाना चाहते हैं.
धोनी के साये के बावजूद अपनी एक पहचान बनाना खास बात
भारत के लिए 25 टेस्ट, 38 वन-डे और 2 टी20 खेलना कोई असाधारण उपलब्धि शायद नहीं लगे, लेकिन अगर किसी भी युवा विकेटकीपर-बल्लेबाज को महेंद्र सिंह धोनी वाले युग में गिनती के मैच भी खेलने को मिल जाए तो वो साधारण बात भी तो नहीं. अगर नई सदी के शुरुआत में एक मासूम किशोर के तौर पर खुद को भारतीय क्रिकेट में स्थापित करना पार्थिव के लिए एक बड़ी चुनौती रही तो धोनी जैसे सर्वकालीन महान खिलाड़ी के साये में रहने के बावजूद अपनी एक पहचान बनाना और राष्ट्रीय टीम में कई बार वापसी करना ये दिखाता है कि गुजरात के इस खिलाड़ी में जबरदस्त जुझारुपन था.गुजरात क्रिकेट के मोटा भाई या फिर ‘दादा’ कहें पार्थिव को!
भारतीय क्रिकेट के अलावा पार्थिव को अपने राज्य गुजरात की क्रिकेट को बदलने के लिए ठीक वैसे ही याद किया जाएगा जैसा कि सौरव गांगुली को भारतीय क्रिकेट को बदलने के लिए किया जाता है. अपने राज्य की अंडर 16 टीम के जरिए सफर की शुरुआत करते हुए दो दशक बाद पहली बार उसी राज्य को रणजी ट्रॉफी चैंपियन बनना कप्तान के तौर पर पार्थिव की शानदार उपलब्धि रही. पिछले 13 साल से IPL में अलग-अलग 6 टीमों के लिए अलग-अलग भूमिका में खेलना ये भी दिखाता है कि पटेल हमेशा डिमांड में बने रहे.
नई सदी के उस बच्चे में दम था!
धोनी के भारतीय क्रिकेट में छाने से पहले चर्चा अक्सर पटेल की हुआ करती थी. नई सदी के आरंभ में चाहे 2002 का इंग्लैंड दौरा रहा हो या फिर 2003 वर्ल्ड कप जो साउथ अफ्रीका में हुआ था (ये अलग बात है कि राहुल द्रविड़ के चलते पटेल को एक भी मैच में खेलने का मौका नहीं मिला) या फिर 2004 की वो भारतीय टीमें, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान का दौरा किया और यादगार जीत हासिल की. पार्थिव उन टीमों का हिस्सा रहे और अपनी भूमिका निभाई. बहरहाल क्रिकेट जगत हमेशा 2002 में सबसे युवा विकेटकीपर के तौर पर टेस्ट डेब्यू करने वाले खिलाड़ी के तौर पर याद करेगा. 17 साल के खिलाड़ी ने पहली पारी में जब शून्य बनाया तो शायद हर किसी को लगा कि बच्चे के साथ भारतीय चयनकर्ता जबरदस्ती कर रहे हैं, लेकिन मैच की दूसरी पारी में जब पटेल ने 60 गेंदों पर नॉट ऑउट 19 रन बनाकर मैच ड्रॉ कराया तो हर किसी को एहसास हो गया कि इस बच्चे में दम है. पटेल की इस पारी और ड्रॉ वाले नतीजे के चलते भारत 4 मैचों की टेस्ट सीरीज 1-1 से बराबर करने में कामयाब रहा और टीम इंडिया इंग्लैंड में लगातार चौथी सीरीज हारने से बच गई.
आंकड़ों के जरिए मूल्यांकन करना होगा आलसी तरीका
क्रिकेट में अक्सर खिलाड़ियों का मूल्यांकन उनके आंकड़ों के जरिए आसानी से आलसी तरीके से कर दिया जाता है. अगर उस पैमाने पर पटेल के करियर को तोलें तो वो अविश्वसनीय नहीं हैं. या यूं कहें धोनी की तरह नहीं हैं. लेकिन, पटेल खिलाड़ी के तौर पर उम्दा थे. अगर सौरव गांगुली से लेकर अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़ से लेकर हरभजन सिंह और यहां तक कि पूर्व कोच जॉन राइट भी उनके सदाबहार फैन बने रहे तो कुछ तो खास बात रही ही होगी इस विकेटकीपर बल्लेबाज में.
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
First published: December 9, 2020, 8:12 PM IST