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- Now There Is Nothing But Cracking Walls And Broken Dreams, Only The Court Dates Are Being Found
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उज्जैन6 घंटे पहले
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मुरलीधर लंबे समय से बीमार हैं। स्थिति ऐसी है कि बिस्तर पर ही शौच कराना पड़ती है। पेंशन के 800 से दवा नहीं आती।
- बिनोद मिल की चाल के 164 परिवारों का दर्द, आखिर कब मिलेगा न्याय, लोग बोले
- पिछले निगम चुनाव में सीएम बोले थे- मालिकाना हक दिलाएंगे,और ये दूसरा चुनाव आ गया
ये पीड़ा है कभी शहर की शान रही बिनोद मिल के कर्मचारी परिवारों की। मिल बंद हुई और उसी के साथ इन परिवारों के सपने भी खत्म हो गए। सालों से हक के लिए लड़ रहे इन परिवारों का दर्द सिर्फ एक किस्से से समझें-
बिनोद मिल की चाल में रह रही अनामिका मगरे बताती हैं 2015 के निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह यहां आए थे, तब भरोसा दिलाया था बेरोजगार हुए श्रमिक के परिवार को बकाया और मुआवजे की पाई-पाई तो देंगे ही, श्रमिक बस्ती के मकान का मालिकाना हक भी दिलाएंगे।
फिर निकाय चुनाव आ गए। बावजूद न तो ढहते हुए घरों की दरकती दीवारों की हालत बदली, न हमारी जिंदगी। बकाया, मुआवजा तो मिला नहीं,अब बेघर होने का संकट है। आस थी कि कोर्ट से हक िमलेगा, मगर मिल रही है बस तारीख। श्रमिक परिवारों का कहना है जिन घराें में पीढ़ियां गुजर गईं, उसे खोने के डर में रोज मर रहे हैं। नेता वोटों की फसल काटकर मौज कर गई, मगर यहां की दरकती दीवारों के साथ यहां रहने वाले 164 परिवारों के सपने भी टूटते जा रहे हैं।
हर घर की एक ही कहानी…बस्ती में पीढ़ियां गुजर गईं, बातों में जाहिर हुआ दर्द
पक्की सीमेंट-क्रांकीट की सड़कें, पानी की पाइप लाइन, गैस लाइन भी। देखने में लगता है, किसी समृद्ध कॉलोनी में आ गए। ये महज एक पहलू है। भीतर श्रमिक बस्ती के 1 नंबर मकान में 93 साल की पत्नी कांता के साथ रहते हैं 96 वर्षीय जुगल किशोर। परिवार के नाम पर दो ही लोग हैं। इनकी काया ऐसी कि 10 कदम भी बिना सहारे चल न पाएं।
पेंशन से गुजर बसर कर रहे हैं। जुगल किशोर बताते हैं मिल के सिक्योरिटी विभाग में पदस्थ थे। पत्नी कांताबाई बताती हैं मकान लेना है तो सरकार ले ले मगर पहले हमारा बकाया दे दें, हम चले जाएंगे। इस बस्ती में अमूमन हर घर की यही कहानी है। किसी के पिता, किसी के ससुर मिल में काम करते थे। तीन पीढ़ियां श्रमिक बस्ती में गुजार चुके परिवारों के भीतर दबी टीस भास्कर टीम से बातचीत में कुछ बयां हुई।
सलमा बी बताती हैं ससुर शब्बीर खान और पति मुश्ताक दोनों मजदूर थे। ससुर नहीं रहे। ढाई कमरे के मकान में परिवार के 12 लोग रहते हैं। बारिश में कभी टीन की छत टपकती है तो पानी सेे बचने के लिए डाली तिरपाल हवा के झोंके से उड़ जाती है। कई रातें जागकर गुजरी है। परमानंद कहते हैं पीएफ का भी महज 25 प्रतिशत हिस्सा मिला था। 10 लोगों का परिवार है।
दो बेटे हैं, जाे दिहाड़ी कर घर चला रहे हैं। ऐसे ही हालात सुभद्रा बाई, मृतक मजदूर सुंदरलाल, गंगाराम, झगरुराम, प्रभुदयाल, मोगूराम के परिवार, चंदा, शंकुतला, दुर्गा प्रजापत, ज्याेति के भी हैं। किसी का बेटा छुट्टी मजदूरी कर रहा है, कोई लोगों के घरों में काम करके आजीविका चला रही है। काेरोना काल इनके लिए नरक के समान गुजर रहा है।
चिंता : बेटी के विवाह की तारीख नजदीक
मजदूर इकबाल खान और पत्नी शकीला की माैत के बाद अनाथ हुए चार बच्चे रोज ही जिंदगी से लड़ रहे हैं। दो बेटे अल्तमश और इरफान लोगों के घरों में पेंटिंग कर बहन शाइना और अफसाना का जीवन संवार रहे हैं। कुछ माह बाद शाइना का निकाह है। सिर से छत छीनने के फरमान ने इनकी संभलती जिदंगी को वापस उसी मोड़ पर ला खड़ा किया है।
किराए का मकान लेने की हैसियत नहीं
सुमन बघेल बताती हैं मकानों को गिराने के बाद मलबे की नीलामी होगी। इसके बाद मजदूरों को बकाया भुगतान किया जाएगा सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेश का कहकर हमसे मकान खाली करने काे कह रहे हैं पर कोर्ट हमारे हाल तो देखें, एक मकान में 10 से 12 लोग रहते हंै। किराए से 5 हजार से कम में मकान नहीं मिलेगा। ये रुपए कहां से आएंगे।
6 हेक्टेयर जमीन बेचकर भुगतान का लिया था निर्णय
क्षेत्र से पार्षद रहीं शैफाली राव के पति राकेश राव बोले- 6 साल से श्रमिक परिवार मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का वादा पूरा हाेने की बाट जोह रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने 19 फरवरी 2020 को कैबिनेट बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया कि बंद मिल की 96 बीघा जमीन में से 6 हेक्टेयर जमीन बेचकर बकाया भुगतान किया जाए। मिला क्या, भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मजदूरों को छला। मेरी पत्नी क्षेत्र से पार्षद रही, इनके वोटों से ही। अब बताइए रोज मजदूरों के सवालों का जवाब कैसे दूं।