mp में 10 वीं औक 12 वीं की शु्क्रवार नियमित रूप से शुरू हो गयी हैं.
अधिकतर अभिभावक बच्चों को स्कूल (School) भेजने के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे हैं. खासतौर से सरकारी स्कूलों में बच्चों को आने जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेना पड़ता है. इसलिए सिटी बसों में बच्चों को भेजने से पेरेंट्स (Parents) डर रहे हैं.
मध्यप्रदेश में 18 दिसंबर से 10वीं और 12 वीं बोर्ड की क्लासेस नियमित रूप से लगाने के लिए स्कूल खोलने का सरकार ने फैसला किया था. 9 वीं और 11वीं की कक्षाएं पहले की तरह एक दिन के अंतर से लगेंगी. हालांकि स्कूल आने के लिए सरकार या स्कूल प्रशासन की ओर से कोई ज़बरदस्ती नहीं है. स्टूडेंट्स को उनके माता-पिता की परमिशन के बाद ही स्कूल में प्रवेश दिया जाएगा.
हॉट स्पॉट कोरोना
हाई स्कूल और बारहवीं हायर सेकेंडरी स्कूल की 18 दिसंबर से नियमित कक्षाएं लगाने के आदेश तो जारी कर दिए लेकिन कोरोना का हॉट स्पॉट बने इंदौर में इसका विरोध शुरू हो गया. पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं. पालकों का कहना है कि जब कोर्ट और संसद तक बंद हैं तो स्कूल को खोलना क्यों जरूरी है. सरकार स्पष्ट करे.इस फैसले के खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे.स्कूलों में PTM
स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश के बाद शुक्रवार को स्कूलों में टीचर पेरेंट्स मीटिंग्स हुईं. जिनमें अधिकत्तर अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने की बात कही.इंदौर के सरकारी एक्सीलेंस स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग में आए अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चों के कोरोना से सुरक्षित रहने की गारंटी स्कूल प्रबंधन ले तो तभी वे बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं. लेकिन सारी गारंटी अभिभावकों से ही ली जा रही है. अभिभावकों से लिखित में लिया जा रहा है कि वे अपनी मर्जी से अपनी गारंटी पर बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं. ये गलत है. पालकों का कहना है शहर में कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ रहा है,ऐसे में स्कूल खोलना क्यों जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी
जागृत पालक संघ के अध्यक्ष चंचल गुप्ता का कहना है निजी स्कूलों ने फीस वसूलने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन बंद करने की धमकी देकर सरकार से स्कूल खुलवाने के आदेश निकलवाए हैं. इससे पालकों पर फीस वसूली का दबाव बनाया जा सके.हम स्कूलों की मनमानी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
फैसला मंज़ूर नहीं
अभिभावकों का ये भी कहना है कि अब सत्र ही खत्म होने वाला है तो स्कूल खोलने का क्या मतलब है. वे बच्चों को स्कूल भेजकर रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. जब देश की संसद बंद है, विधानसभाएं नहीं चल रहीं हैं कोर्ट बंद हैं जहां समझदार लोग आते जाते हैं. वहीं स्कूलों में इन सबसे कम समझदार और बच्चे जाएंगे.ऐसे में स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा.सिर्फ 1 साल बचाने के लिए बच्चों की जिंदगी दांव पर नहीं लगाई जा सकती.ये जान जोखिम में डालने वाला फैसला है. इसके साथ ही अभी विंटर विकेशन भी शुरू होने वाली हैं इसलिए स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर भी खानापूर्ति कराई जाएगी.
पेरेंट्स तैयार नहीं
स्कूलों में कक्षाएं शुरू करने से पहले पेरेंट्स-टीचर मीटिंग की जा रहीं हैं. इसमें अभिभावकों से बच्चों को स्कूल भेजने की सहमति ली जा रही है. लेकिन अधिकतर अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे हैं. खासतौर से सरकारी स्कूलों में बच्चों को आने जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेना पड़ता है. इसलिए सिटी बसों में बच्चों को भेजने से पेरेंट्स डर रहे हैं. वे किसी तरह की रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं.