अब इस बात में तो कोई शक नहीं कि 36 रन में पूरी टीम का आउट होना भारतीय क्रिकेट का वह अनचाहा रिकॉर्ड है, जिसे लाख कोशिश कर भी मिटाया या छुपाया नहीं जा सकता. लेकिन इस प्रदर्शन के बाद जिस तरह से मौजूदा भारतीय टीम पर लोगों ने सवाल खड़े किए, उन्हें यह याद दिलाना जरूरी है कि यह क्रिकेट है. इस खेल में अनिश्चितता का आसमान जितना ऊंचा है, उतना शायद ही किसी खेल में हो. आलोचना के सुर में अपना गम भुलाने वाले लोग शायद भूल गए कि भारतीय टीम मैच के 6 सेशन, यानी 12 घंटे, यानी करीब 1100 गेंद फेंके जाने के बाद जीतने की स्थिति में थी. ऑस्ट्रेलिया ने उसी टीम इंडिया को महज 14 गेंद के छोटे से अंतराल में हार की ओर धकेल दिया. याद रहे चेतेश्वर पुजारा, मयंक अग्रवाल, अजिंक्य रहाणे और विराट कोहली के विकेट 14 गेंदों के भीतर करीब 15 मिनट में ही गिरे. फिर क्या था, भारत के करोड़ों क्रिकेट विशेषज्ञों का ज्ञान उबाल मारने लगा.
सचिन-द्रविड़ की टीम 66 पर आउट हो चुकी
जो लोग 36 रन पर आउट होने के बाद ‘कोहली एंड कंपनी’ की पानी पी-पीकर कमियां निकाल रहे है, वे भलीभांति जानते होंगे कि भारत का इससे पहले का न्यूनतम स्कोर 42 रन था. इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में जो भारतीय टीम 42 रन पर सिमटी, उसमें सुनील गावस्कर, अजित वाडेकर, गुंडप्पा विश्वनाथ जैसे दिग्गज थे. वह विशुद्ध टेस्ट क्रिकेट का जमाना था और उस वक्त तक भारत ने एक भी वनडे मैच नहीं खेला था. इसी तरह 1996 में जो भारतीय टीम डरबन में 66 रन पर ढेर हुई, उसमें सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और अजहरुद्दीन शामिल थे. जिन संजय मांजरेकर को पूरी टीम में तकनीकी दिक्कत दिख रही है, उनके डेब्यू मैच में भारत 75 रन पर सिमट गया था, वह भी दिल्ली की सूखी विकेट पर…
स्कोरकार्ड
अपनी ही टीम का मजाक ना उड़ाएं
भारतीय टीम के इन खराब प्रदर्शनों को याद कर यह जताने की कोशिश नहीं है कि हम एडिलेड की हार और समर्पण की समीक्षा ना करें. हां, यह जरूर है कि हमें विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों की टीम का मजाक भी नहीं उड़ाना चाहिए. आखिर यही हमारे देश के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी हैं. इन्होंने ही हमें इसी ऑस्ट्रेलिया में दो साल पहले जीत दिलाई थी. इक्का-दुक्का खिलाड़ियों को छोड़ दें तो यही टीम 26 दिसंबर से फिर मैदान पर उतरेगी. हमारे ‘जोक्स का ज्वार’ कहीं इतना ऊंचा ना हो जाए कि हम अपने ही खिलाड़ियों के मनोबल को पाताललोक में धकेलने लगें.
टेस्ट ही तो है, जहां गेंदबाजों की चलती है
टेस्ट क्रिकेट को असली क्रिकेट कहा जाता है. शास्त्रीय खेल. ऐसे में हमें टेस्ट मैच देखते हुए और उसकी समीक्षा करते हुए पूरी गंभीरता की जरूरत होती है. एक यही फॉर्मेट है, जिसमें गेंदबाजों की चलती है. गेंदबाज जब लय में हो तो अच्छे-अच्छे खां पानी मांग बैठते हैं. जैसा कि एडिलेड में 19 दिसंबर की सुबह में हुआ. जोश हेजलवुड और पैट कमिंस ने एडिलेड में जो लाइन-लेंथ पकड़ी, उसे आइडिएल कहा जाता है. यह वो लेंथ है, जिस पर आप ना तो आगे जा सकते हैं और ना ही पीछे. आगे कुआं-पीछे खाई. यह वही लाइन है, जिसे आप छोड़ते हुए डरते हैं कि कहीं बोल्ड या एलबीडब्ल्यू ना हों जाएं और खेलते हुए बचते हैं कि कहीं किनारा ना लग जाए.
गावस्कर ने समझाया, सचिन ने कहा-ब्यूटी
टेस्ट क्रिकेट के महान ओपनर सुनील गावस्कर ने इस बात को चैनल-7 पर बड़ी खूबसूरती से समझाया. उन्होंने कहा, ‘टीम इंडिया की बल्लेबाजी में कोई खामी नहीं थी. ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. ऐसा ही 1974 में लॉर्ड्स टेस्ट के दौरान गेंद स्विंग हो रही थी. हालात मुश्किल थे और हमारी टीम एक भी खराब शॉट खेले बिना ऑल आउट हो गई थी. हमारे खिलाड़ी भी एलबीडब्ल्यू और बोल्ड हुए थे. जब आप इस तरह की तेज गेंदबाजी का सामना करते हो तो ऐसे में रन बनाना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही टीम इंडिया के साथ एडिलेड में हुआ.’ सचिन तेंदुलकर ने भी भारतीय टीम की आलोचना नहीं की. इसकी बजाय उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के पलटवार को टेस्ट क्रिकेट की ब्यूटी करार दिया. साफ है- कम स्कोर पर आउट होना भले ही किसी टीम के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा कर दे, लेकिन कुल मिलाकर ऐसी गेंदबाजी ही तो टेस्ट क्रिकेट की खूबी या खूबसूरती है.
जोखिम दोधारी तलवार, जिसकी राय फटाफट के एक्सपर्ट दे रहे
फटाफट क्रिकेट के एक्सपर्ट कह सकते हैं कि जब ऐसी लाइन-लेंथ थी, तो बल्लेबाजों को कुछ अलग करना था. जैसे कि क्रीज से थोड़ा आगे निकलकर खड़े होना या कुछ आक्रामक शॉट खेलना. अब ऐसा करने में जोखिम भी रहता है. जाहिर है कि यदि कोई बल्लेबाज जोखिम लेते हुए आउट हो जाता तो यही एक्सपर्ट फिर टूट पड़ते. अप्रोच पर सवाल उठाते. कहते कि यह कोई आईपीएल थोड़े ही है. टेस्ट क्रिकेट है. धीरज से खेलो. फिर चयनकर्ताओं पर खीजते कि आईपीएल देखकर टीम चुन ली और भी ना जाने क्या-क्या…
टीम में कुछ बदलाव दिखने वाले हैं
इस मैच के बाद भारतीय टीम में यकीनन कुछ बदलाव दिखने वाले हैं. पैटरनिटी लीव पर लौट रहे विराट की जगह शुभमन गिल लौट सकते हैं. पृथ्वी शॉ दोनों पारियों में जिस अंदाज में बोल्ड हुए हैं, उससे उनका भी पत्ता कटता दिख रहा है. केएल राहुल के टीम में बतौर ओपनर लौटने के आसार भी बनने लगे हैं. हां, रोहित शर्मा पर माथापच्ची करनी बेकार है कि वे दूसरे टेस्ट में खेलेंगे या तीसरे में. जब कप्तान कोहली को ही उनके बारे में ठीक से पता नहीं होता, तो बाकियों के कहने ही क्या.
कठिन टेस्ट में टीम इंडिया की राह आसान नहीं
भारतीय टीम जब 1974 में इंग्लैंड के खिलाफ 42 रन पर आउट हुई तो वह मैच पारी से हार गई थी. इतना ही नहीं, वह अगला मैच भी पारी के ही अंतर से हारी थी. याद रखिए कि यह वही टीम थी, जिसने 3 साल पहले इंग्लैंड को उसके घर में ही हराया था. विराट की टीम भी दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हरा चुकी है. अब वह 36 रन पर भी ढेर हो चुकी है. अगले मैच में टीम को अपने बेस्ट बैट्समैन व कप्तान कोहली का साथ भी नहीं मिलेगा. जाहिर है इस कठिन टेस्ट में टीम इंडिया की राह आसान नहीं है. ऐसे में सच्चा प्रशंसक अपनी टीम की टांग नहीं खींचता, उसे बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है. क्रिकेट को धर्म मानने वाले हम भारतीय प्रशंसकों से टीम यही उम्मीद कर रही है.
और अंत में. 19 दिसंबर, वह तारीख है जिस दिन भारत ने अपने टेस्ट इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे छोटा स्कोर दोनों ही बनाया है. 2016 में सबसे बड़ा (759/7) और 2020 में सबसे छोटा (36). दोनों ही स्कोर विराट कोहली की कप्तानी वाली टीम ने बनाए हैं. यह सिर्फ आंकड़ा नहीं है. यह भरोसा है. हर दिन नया होता है. भारतीय टीम के लिए भी अगली सुबह रोशनीभरी होगी. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)