MP: छतरपुर में कड़कड़ाती ठंड के बीच नसबंदी और ऐसे जमीन पर पड़ी महिलाएं

MP: छतरपुर में कड़कड़ाती ठंड के बीच नसबंदी और ऐसे जमीन पर पड़ी महिलाएं


छतरपुर में महिलाएं इस तरह जमीन पर सोने को मजबूर हैं.

छतरपुर में नसबंदी का ऑपरेशन करा रही महिलाओं को हालत ठीक नहीं है. उन्हें कड़कड़ाती ठंड में जमीन पर सुलाया जा रहा है. वह भी तब, जब अस्पताल की 300 बिस्तरों वाली बिल्डिंग बनकर तैयार है.



  • Last Updated:
    December 21, 2020, 2:23 PM IST

छतरपुर. छतरपुर का जिला अस्पताल देखकर आपको लगेगा नहीं कि आप 21वीं सदी में जी रहे हैं. सरकार सरकार और प्रसाशन बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं होने के कितने ही दावे कर ले, लेकिन स्थिति बदतर ही है. छतरपुर जिला अस्पताल में नसबंदी का ऑपरेशन करा रही महिलाओं की हालत आपसे देखी नहीं जाएगी. ऐसा कहने के पीछे वजह है कि इन महिलाओं को कड़कड़ाती ठंड में जमीन पर सुलाया जा रहा है. इनके परिजन भी बाहर ही सोने को मजबूर हैं.

छतरपुर जिले केअस्पताल में 300 बिस्तर वाली बिल्डिंग तैयार है. इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन को ये नहीं लगता कि जो महिलाएं यहां नसबंदी का ऑपरेशन कराने आई हैं, उन्हें यहां शिफ्ट किया जाए. कम से कम उन्हें एक पलंग तो मुहैया कराया ही ज सकता है. अस्पताल प्रबंधन भले बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने की बात करता हो, लेकिन उसके दावे खोखले ही साबित हो रहे हैं.

महिलाओं के लिए एंबुलेंस तक नहीं

अस्पताल प्रबंधन इन महिलाओं के प्रति कितना लापरवाह है वह इस बात से ही पता चलता है कि नसबंदी कराने आ रही महिलाओं को लेकर आने और ले जाने के लिए एंबुलेंस तक यहां नहीं है. महिलाओं के परिजनों ने बताया कि उन्होंने हॉस्पिटल प्रबंधन से मांग भी की है कि उन्हें सुविधाएं मुहैया कराई जाएं. इस ठंड में महिलाओं को जमीन पर लेटने से खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. अस्पताल प्रबंधन केवल अपने टारगेट पूरा करने के चक्कर में है.पिछले साल भी सामने आई थी लापरवाही

पिछले साल नवंबर में भी छतरपुर में महिलाओं के नसबंदी ऑपरेशन के दौरान लापरवाही सामने आई थी. आसपास के गांवों की तमाम महिलाएं अपने परिजनों के साथ सामुदायिक केंद्र घुवारा में ऑपरेशन कराने के लिए पहुंचने लगी थीं. अस्पताल में लगभग 68 महिलाओं के रजिस्ट्रेशन हो चुके थे, लेकिन यहां सर्जन के समय पर न आने के कारण भूख और प्यास से परेशान होना पड़ा. बता दें कि नसबंदी के लिए प्रेरित करने का दायित्व आशा कार्यकर्ताओं के साथ अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को सौंपा गया था, जिन्होंने गांव-गांव जाकर महिलाओं को प्रेरित किया. फलस्वरूप भारी संख्या में महिलाएं अस्पताल में पहुंच चुकी थीं. करीब 20 गांवों से आई महिलाओं के लिए कोई इंतजाम नहीं किए गए. सर्जन के इंतजार में बैठी महिलाओं के ऑपरेशन के लिए शाम करीब 6 बजे एक सर्जन पहुंचे थे.





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