ऑक्सीजन पर जिला अस्पताल: पिता की गोद में मासूम, दादा के हाथ सांसों की डोर

ऑक्सीजन पर जिला अस्पताल: पिता की गोद में मासूम, दादा के हाथ सांसों की डोर


Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप

झाबुआएक दिन पहले

  • कॉपी लिंक
  • मरीजों की देखभाल के लिए 50 कर्मचारी फिर भी परिजन को ढकेलना पड़ रहा सिलेंडर
  • आदिवासी जिले में स्वास्थ्य सेवा बदहाल : कर्मचारियों का काम खुद मरीजों के परिजन को करना पड़ रहा

ये जिला अस्पताल की अव्यवस्थाओं का एक दृश्य मात्र नहीं है, बल्कि इस बात का सबूत है कि आम और गरीब मरीजों व उनके परिवारों को क्या कुछ नहीं झेलना पड़ता। बच्चा गोद में लिए चल रहा सदावा गांव का गुड्डू वसुनिया है।

उसके 6 महीने के बेटे राहुल की छाती में एक सप्ताह से संक्रमण है। गुरुवार रात जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। उसे ऑक्सीजन पर रखा गया है। शनिवार को डॉक्टरों ने एक्स-रे के लिए लिखा। एक्स-रे के लिए वार्ड से एक्स-रे रूम तक बच्चे को गुड्डू और परिवार के लोग इस तरह से लेकर गए।

पिता ने बेटे को गोद में उठाया, दादी ने ऑक्सीजन की नली पकड़ी और दादा सिलेंडर खींचते हुए आगे चले। न कोई नर्स साथ थी और न वार्ड बॉय या स्वीपर। ये स्थिति तब है जब जिला अस्पताल में स्थायी तौर पर 9 वार्ड बॉय और 7 स्वीपर पदस्थ हैं।

ठेके पर स्वीपर पद पर 34 कर्मचारी रख रखे हैं। 8-8 घंटे की तीन शिफ्ट में इनकी ड्यूटी लगाई जाती है। यानि एक समय पर कम से कम 15 ऐसे कर्मचारी अस्पताल में होते हैं। गुड्डू के साथ जो बीती, वो यहां का अकेला मामला नहीं है। आए दिन ऐसा होता है। अक्सर मरीजों के परिजन ही स्ट्रेचर खींचकर ले जाते हैं। कर्मचारी सिर्फ मैन गेट से आने वाले मरीजों का स्ट्रेचर खींचते हैं।

पिता का पैर फ्रेक्चर, बेटे ने खींचा स्ट्रेचर
ट्रामा सेंटर में राणापुर के गंभीर माली (62) एक माह से भर्ती हैं। उनके बाएं पैर में फ्रेक्चर है। ग्लूकोज लेवल लगातार बढ़ने से उन्हें डिस्चार्ज नहीं किया गया। शनिवार को डॉक्टरों ने एक्स-रे के लिए कहा, ताकि देखा जा सके कि हड्डी जुड़ी या नहीं। उन्हें स्ट्रेचर पर लिटाकर बेटा राजू एक्स-रे रूम तक ले गया और वापस भी लाया।

खतरा क्या : अस्पताल में लंबे रैंप है। अकेले आदमी के लिए इस पर स्ट्रेचर चलाना मुश्किल है। अस्पताल के कर्मचारी इसके लिए प्रशिक्षित होते हैं। ऐसे में परिजन द्वारा स्ट्रेचर ले जाने में दुर्घटना का खतरा होता है।

ऐसा अस्पताल, मशीनें कई सारी, चलाने वाले नहीं
जिला अस्पताल में नया आईसीयू भी शुरू नहीं हो पा रहा है। लगभग 48 लाख रुपए के 5 नए वेंटिलेटर काम नहीं आ रहे। दो महीने से ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इन्हें चलाने के लिए स्टाफ नहीं है। जिले में सिर्फ एक एनेस्थेटिक है। वो आरएमओ (रेसिडेंट मेडिकल ऑफिसर) भी है। पहले से लगे दो वेंटिलेटर वो चला रहे हैं। कम से कम 3 एनेस्थेटिक की जरूरत है। एमडी मेडिसिन और दूसरा स्टाफ भी कम है। वो भी 2 ही हैं। 10 बेड के इस नए आईसीयू का ताला नहीं खुल पा रहा।

गलती नर्स की, उनकी मीटिंग लूंगा
^सीधे तौर पर नर्स की गलती है, जिसकी वार्ड में ड्यूटी थी। इस तरह से मरीजों को बिना कर्मचारी के जाने ही नहीं देना चाहिए। कर्मचारी हैं ही इस काम के लिए। पूरे स्टाफ की मीटिंग लेकर उन्हें हिदायत देंगे कि आगे से ऐसी गलती न हो।
– डॉ. बीएस बघेल, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल



Source link