India Vs Australia: लो, कर दिया हिसाब बराबर

India Vs Australia: लो, कर दिया हिसाब बराबर


क्रिकेट को गौरवशाली अनिश्चितताओं का खेल इसीलिए कहा जाता है कि इसमें कभी-भी अप्रत्याशित घटनाएं घट सकती हैं. भारत जब पहले टेस्ट मैच की दूसरी पारी में महज 36 रन पर आउट होकर शर्मनाक पराजय के दलदल में फंस गया था, तब सभी ने भारतीय टीम की संभावनाओं को निरस्त कर दिया था. फिर भारतीय बल्लेबाजी के सबसे मजबूत स्तंभ और विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज विराट कोहली (Virat Kohli) भी पत्नी के प्रसवकाल में साथ रहने के लिए भारत लौट चुके थे. ऐसे में श्रृंखला के 0-4 से गंवाने की अटकलें तेज हो गई थीं.

ईशांत शर्मा की अनुपस्थिति और मोहम्मद शमी के घायल होने से भारतीय आक्रमण की धार कमजोर नजर आने लगी थी. ऐसी विषम परिस्थिति में नए कप्तान अंजिक्य रहाणे (Ajinkya Rahane) की प्रतिभा और काबिलियत का तेजाबी परीक्षण था. लेकिन, जब आपसे अपेक्षाएं नहीं होती हैं, तो आप पर दबाव भी नहीं होता है. अंजिक्य रहाणे ने अपने बुद्धिमानीपूर्ण फैसलों और संतुलित शांत बर्ताव से अपनी कप्तानी और बल्लेबाजी से बहुत प्रभावित किया. आठ विकेट से जीत उतनी ही अकल्पनीय थी, जितनी कि 36 रन पर पहले टेस्ट में दूसरी पारी का सिमटना!

भारत की इस जीत ने सीरीज को तो 1-1 के संतुलन पर ला ही दिया है, साथ ही समालोचकों ने विराट कोहली और अंजिक्य रहाणे की कप्तानी की कला की तुलना भी करना शुरू कर दिया है. विराट कोहली धधकते हुए ज्वालामुखी की तरह हैं, जो बात-बात पर उत्तेजित हो जाते हैं. क्रिकेट के खेल में उन्हें जीत के सिवाय कुछ भी मंजूर नहीं है. दूसरी ओर अंजिक्य रहाणे ककड़ी की तरह ठंडे और टीम को प्रोत्साहित करते रहने की कोशिश करते दिखे. साफ था कि उनका संतुलित व्यवहार उनके हर कामयाब निर्णय में झलकता था. यहां तक कि शतक लगाने के बाद भागीदार रवींद्र जडेजा के कारण वह रन आउट हो गए, तो कोसने के बजाय विकेट पर टिककर और रन बनाते रहने प्रेरणा देते गए.

भारतीय टीम जब ‘हडल’ बनाकर खड़ी होती थी, तब विराट कोहली अकेले बोलते दिखाई देते थे. बाकी सब खिलाड़ी केवल सुनते थे. पर अंजिक्य रहाणे जब हडल में थे, तो कई खिलाड़ी बोलते सुने गए. जिस तरह गेंदबाजी में बुमराह, अश्विन और जडेजा का इस्तेमाल किया, उससे भी क्रिकेट विशेषज्ञ बहुत प्रभावित हुए हैं. यह एक आंख खोलने वाली घटना सिद्ध हुई है. विराट कोहली की अनुपस्थिति में या विकल्प के तौर पर भी टेस्ट क्रिकेट में कप्तान के पद के दावेदारों में रोहित शर्मा के साथ अब अंजिक्य रहाणे भी खड़े हो गए हैं.

भारत के पास अब मौका अच्छा है. श्रृंखला को अब भी जीता जा सकता है. मनोवैज्ञानिक लाभ अब भारत के साथ है. ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी की कमजोरी अब खुलकर सामने आ चुकी है. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट इतिहास की बल्लेबाजी के लिए लिहाज से यह सबसे कमजोर टीम दिखाई देती है. विश्व क्रिकेट में अब शक्ति संतुलन बदल रहा है. ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी तो अब विश्व स्तर की है. स्टार्क, कमिन्स, हैजलवुड आज भी बड़े असरकारक हैं. लेकिन, अपने ही घर में उछाल वाली पिचों पर ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को मार खाते और लड़खड़ाते देखते हैं, तो उनकी दुर्गति पर तरस आता है. वार्नर नहीं हैं, तो शुरुआत ही लड़खड़ा रही है. स्टीव स्मिथ फॉर्म में नहीं हैं. बाकियों का स्तर वैसा नहीं है कि उच्च स्तर की गेंदबाजी के सामने पांच दिनी टेस्ट मैचों में टिक सकें.

भारत के लिए पृथ्वी शॉ की जगह शुभमन गिल को खिलाना बेहतर रहा. सिराज भी तेज गेंदबाजी तिकड़ी में कामयाब रहे. रवींद्र जडेजा की वापसी से टीम का कायापलट हो गया है. विराट कोहली के बारे में हमें लगता रहा कि जडेजा और अश्विन की जोड़ी पर शायद उन्हें पूरा भरोसा नहीं था, लेकिन रहाणे ने इनका असरदार इस्तेमाल किया.

आप जीत या हार से कुछ न कुछ सीखते जरूर हैं. भारत ने पहले टेस्ट की नाकामयाबी के बाद ऑस्ट्रेलिया से संघर्ष करके वापसी की भावना सीखी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने क्या सीखा? मुझे लगता है, उन्होंने भारतीय क्षेत्ररक्षकों से कैच टपकाना सीखा. शुभमन गिल के दो बार और रहाणे के चार कैच छोड़े गए. ऐसे में आप जीत कैसे हासिल कर सकते हैं!सबसे अच्छी बात यह है कि भारत अब विदेशों में जाकर टेस्ट जीत रहा है. अच्छी आदत बरकरार रहे, यही आशा हम कर सकते हैं.

*सुशील दोशी, पद्मश्री से सम्मानित जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं.

ब्लॉगर के बारे में

सुशील दोषीकाॅमेंटेटर

लेखक प्रसिद्ध काॅमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.

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