क्या सिंधिया के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान?

क्या सिंधिया के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान?


मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) के मंत्रिमंडल में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के दो कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत की इंट्री हो गई है. जबकि भाजपा में सिंधिया की पूछ-परख से कांग्रेस हैरान है.

Source: News18Hindi
Last updated on: January 3, 2021, 9:35 PM IST

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राज्‍यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत की मंत्रिमंडल में इंट्री हो गई है. इन दो चेहरों को मंत्री बनाने के लिए सिंधिया उपचुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बनाए हुए थे. चौहान पर दबाव पार्टी के वरिष्ठ विधायकों की ओर से भी था, लेकिन किसी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई. सिलावट और राजपूत को मंत्री बनाए जाने का संदेश स्पष्ट है. ज्योतिरादित्य सिंधिया को जिस तरह से महत्व मिल रहा है,उसमें इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री चौहान उनकी जमीन तैयार कर रहे हैं. उन्हें मजबूत कर रहे हैं?

मंत्री पद की शपथ से पहले तुलसी सिलावट ने कहा कि शिव-ज्योति की जोड़ी मध्य प्रदेश में इतिहास रचेगी. उल्लेखनीय है कि पिछले साल मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी. विधायकों के इस्तीफे से कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी. भाजपा की पंद्रह माह बाद सरकार में वापसी का रास्ता खुला. भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने सिंधिया की सहमति से ही शिवराज सिंह चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच अच्छी कैमेस्ट्री दिखाई दी. सिंधिया ने इस कैमेस्ट्री को शिव-ज्योति एक्‍सप्रेस का नाम दिया. इन दोनों नेताओं के संयुक्त प्रयासों से ही उपचुनाव में भाजपा मजबूत होकर उभरी. कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.

समय पर विधायक न चुने जाने के कारण सिलावट-राजपूत ने छोड़ था मंत्री पद
भाजपा में सिंधिया की पूछ-परख से कांग्रेस हैरान है. मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा कहते हैं कि ऐसा असहाय मुख्यमंत्री पहली बार देखा. इससे पहले कांग्रेस सिलावट-राजपूत के मंत्री न बन पाने को लेकर सिंधिया का मजाक उड़ा रही थी. विधानसभा उपचुनाव के नतीजे दस नवंबर को आए थे. तीन मंत्री चुनाव हार गए थे. इनमें दो इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं. एक अन्य एंदल सिंह कंषाना भी सुमावली से चुनाव हार गए. शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक कुल चौदह गैर विधायकों को मंत्री और राज्यमंत्री बनाया गया था. चुनाव हार जाने के कारण इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया का इस्तीफा 1 जनवरी को मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था. एंदल सिंह कंषाना ने चुनाव परिणाम आने के बाद ही पद छोड़ दिया था. छह माह की अवधि में विधायक न चुने जाने के कारण सिलावट और राजपूत ने 20 अक्टूबर को मंत्री पद से इस्तीफा दिया था. चुनाव जीतने के बाद भी मंत्रिमंडल में वापसी न होने से शिव-ज्योति की जोड़ी टूटने की चर्चाएं चल निकली थीं. उपचुनाव के बाद सिंधिया की लगातार भोपाल यात्रा को भी दबाव की राजनीति के तौर देखा गया.

पार्टी में संतुलन बनाना शिवराज के लिए है चुनौती भरा
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के आम चुनाव में भाजपा ने अपनी पंद्रह साल पुरानी सरकार गंवा दी थी. शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में आई कमी को बड़े कारण के तौर पर देखा गया. भाजपा की सरकार में वापसी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के पाला बदलने के कारण हुई. सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में प्रवेश से भाजपा के आतंरिक समीकरण बुरी तरह गड़बड़ा गए हैं. सबसे ज्यादा असर ग्वालियर-चंबल इलाके में पड़ा. निमाड, मालवा भी अछूते नहीं रहे. पार्टी के भीतर विभिन्न स्तरों पर सिंधिया के विरोध के स्वर भी सुनाई दिए. सिंधिया के परंपरागत विरोधियों ने उन्हें कमजोर करने की पहली कोशिश उपचुनाव के उम्मीदवार तय करते समय की. पार्टी ने अपने वादे के अनुसार इस्तीफा देने वाले सभी विधायकों को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया. इससे पहले चौदह लोगों को मंत्री बनाकर पार्टी सिंधिया को लेकर अपनी रणनीति का संकेत दे चुकी थी. सिंधिया समर्थकों को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने अपने कई पुराने साथियों को हासिए पर डाल दिया. राजेन्द्र शुक्ला और रामपाल सिंह का नाम उल्लेखनीय है. वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई जैसे पुराने विरोधी भी अपने आप किनारे लग गए. शिवराज सिंह चौहान के लिए अब नए और पुराने भाजपाईयों के बीच संतुलन बनाना बेहद चुनौती भरा होगा.

पार्टी में नहीं है शिवराज सिंह चौहान का विकल्पअसंतुष्ट विधायकों के पास शिवराज सिंह चौहान को यथास्थिति स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. जो चेहरे चौहान का विकल्प बन सकते थे,वे पंद्रह साल में भाजपा की राजनीति में हासिए पर दिखाई दे रहे हैं. चौहान के विकल्प के तौर पर नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम हमेशा चर्चा में रहता है. वे देश के कृषि मंत्री हैं. तोमर उसी ग्वालियर-चंबल इलाके से आते हैं,जहां सिंधिया का प्रभाव ज्यादा है. विधानसभा के पिछले तीन विधानसभा चुनाव में चौहान की राह तोमर ने ही आसान की थी. चौहान-तोमर की जोड़ी मध्य प्रदेश भाजपा की सबसे सफल जोड़ी मानी जाती रही है, लेकिन अब शिव-ज्योति की जोड़ी है. सिंधिया भी देर-सबेर केन्द्र में मंत्री बनेंगें. शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में ही रहकर राजनीति करना चाहते हैं. उनकी दिलचस्पी केन्द्र की राजनीति में नहीं है. इसका स्पष्ट संकेत चौहान ने उस वक्त ही दे दिया था, जब उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. सिंधिया के भाजपा में आ जाने के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश में कई नई राजनीतिक संभावनाओं का आकलन कर रहा है. सिंधिया को मजबूत करने की कोशिश भी राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा लगातार की जा रही हैं. सिंधिया भी अपने आपको खांटी भाजपाई दिखाने में गुरेज नहीं कर रहे हैं.

खाली मंत्री पद नहीं उभरने देंगे असंतोष
संभावना यह भी प्रकट की जा रही है कि पंद्रह जनवरी को संक्रांति के बाद शिवराज सिंह चौहान बड़े पैमाने पर राजनीतिक नियुक्तियां कर सकते हैं. नियुक्त किए जाने वाले चेहरों को लेकर लगातार विचार-विमर्श चल रहा है. भाजपा ने राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश को बड़ी रणनीति के तहत मध्य प्रदेश भेजा है. शिव प्रकाश का मुख्यालय भोपाल तय किया गया है. यहीं से वे चार अन्य राज्यों का काम भी देखेंगे. इनमें पश्चिम बंगाल भी एक है. पश्चिम बंगाल के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश के ही हैं. विजयवर्गीय और मुख्यमंत्री चौहान के राजनीतिक रिश्ते बेहतर नहीं माने जाते. विजयवर्गीय समर्थक इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला को मुख्यमंत्री चौहान मंत्रिमंडल में जगह नहीं दे रहे हैं. अपने पिछले कार्यकाल में भी चौहान ने इंदौर से किसी भी विधायक को मंत्री नहीं बनाया था. कारण सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय के बीच सहमति न बन पाने को बताया गया. अब सिंधिया समर्थक सिलावट ने मेंदोला की राह रोक दी. मंत्रिमंडल में अभी चार जगह खाली हैं. जगह खाली रखना चौहान की रणनीति का हिस्सा रहता है. इसके जरिए वे असंतोष को उभरने नहीं देते. भाजपा में सौदान सिंह की भूमिका में बदलाव को भी सामान्य तौर पर नहीं देखा जा सकता. अब तक भाजपा में वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रतिनिधि के तौर सह संगठन महामंत्री के पद पर काम कर रहे थे. अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए हैं. चंडीगढ़ मुख्यालय रखा गया है. विदिशा जिले के हैं. शिवराज सिंह चौहान विदिशा से ही लोकसभा चुनाव लड़ते रहे हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं)


ब्लॉगर के बारे में

दिनेश गुप्ता

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.

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First published: January 3, 2021, 9:27 PM IST





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