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विकास सबलिया | खच्चरटोड़ी3 दिन पहले
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वनवासी सशक्तिकरण केंद्र में इस तरह कमरे में की जा रही मशरूम की खेती।
- महंगे उपकरण नहीं खरीदे, बाजार से प्लास्टिक और नायलोन की रस्सियां खरीदकर उपयोग की, घोंसलिया में सेवा भारती संस्था के आश्रम में उग रहा मशरूम
गांव बड़ा घोंसलिया में सेवा भारती संस्था बच्चों के लिए आवासीय केंद्र चलाती है। यहां स्कूल है, हॉस्टल है और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण दिए जाते हैं और उत्पादन भी किया जाता है। इस बार यहां के 15 बच्चों ने मशरूम की खेती करने में सफलता पाई है। दो महीने में यहां उत्पादन भी होने लगा और खरीदारों के ऑर्डर भी आने लगे हैं। लगभग 10 हजार की लागत से आश्रम के एक कमरे में खेती शुरू की गई। संस्था को उम्मीद है कि इससे 80 हजार से 1 लाख तक मुनाफा होगा।
स्वयंसेवक व सोशल मीडिया से सीखा खेती के बारे में
सेवा भारती के वनवासी सशक्तिकरण केंद्र के बच्चे इसके पहले गणेशोत्सव के दौरान मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं, दिवाली पर लाइटिंग वाली झालरें बनाकर बेच चुके हैं। यहां के पूर्णकालिक पीयूष ने बताया आलीराजपुर जिले में आरएसएस के स्वयंसेवक विनय लंबे समय से इसकी खेती करते आ रहे हैं। उन्हीं से इस बारे में सीखा। काफी चीजें सोशल मीडिया के माध्यम से पता की। नवंबर में यहां एक कमरे में यूनिट शुरू की। बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए एक बार विशेषज्ञ बुलवाए। इसके बाद से वो सारा काम कर रहे हैं।
मुनाफे का काम है मशरूम की खेती
भारत में मशरूम को खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्छी आदि नाम से जाना जाता है। मशरूम से पापड़, जिम का सप्लीमेंट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, टोस्ट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि बनाए जाते हैं।
घुप अंधेरे वाले कमरे में हाेती है खेती : प्रकल्प प्रमुख रामसिंह निनामा ने बताया मशरूम की खेती अंधेरे वाले कमरे में होती है। खिड़कियां या तो होती नहीं है या खोली नहीं जाती। इसे नमी वाला, ठंडा वातावरण चाहिए। कमरे में रस्सियों पर प्लास्टिक के पैकेट लटकाए जाते हैं। इनमें बीज, चावल की पराल को उपचारित कर भरा जाता है। पैकेट में छेद करते हैं, जिनमें से उत्पादित मशरूम निकलता है। इस मिश्रण को सैनिटाइज करने की भी प्रक्रिया है। इसके लिए भी रॉ मटेरियल लाया गया था। केंद्र में 200 वर्गफीट के कमरे में 50 पैकेट में मशरूम उगाई है।
बाजार में 250 से 600 रुपए भाव
पीयूष ने बताया कि हर पैकेट से 5 किलोग्राम उत्पादन की उम्मीद है। इस तरह कुल उत्पादन ढाई क्विंटल तक हो सकता है। झाबुआ में ये मशरूम 250 रुपए प्रति किलो बिकता है। बड़े शहरों में भाव 600 रुपए तक मिल जाते हैं। वहां डिमांड ज्यादा है। अभी उत्पादन में से कुछ बेच देते हैं और कुछ बच्चों के उपयोग में आ रही है। इससे नाश्ता तैयार होता है, एक दिन छोड़कर बच्चों के लिए मशरूम की सब्जी बनाई जा रही है।