सेहत का सोमवार: कई लाभ पहुंचाता है द्विहस्त हलासन

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रतलाम3 दिन पहले

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शाब्दिक अर्थ शरीर का आकार हल के समान हो जाता है। जैसे हल जमीन को खोद का उपजाऊ करता है। उसी प्रकार यह आसन भी शरीर को अनेकों लाभ का उत्तरदायित्व रखता है। यह सर्वागासन का ही एक रूप होता है। विधि-जमीन पर कंबल बिछाकर पीठ के बल श्वांस को सामान्य रखते हुए लेट जाएं। सिर गर्दन और मेरुदंड को सहज और सीधा रखें। दोनों पैरों को पास पास रखते हुए श्वांस को शरीर के अंदर की तरफ भरते हुए दोनों पैरों को धीरे धीरे ऊपर उठाते हुए दोनों हाथों का नितंबों को सहारा देकर सिर के ऊपर से पीछे की तरफ ले जाते हुए पैरों के पंजे को या पैरों की उंगलियों को जमीन से स्पर्श कराएं। दोनों हाथों को दो या तीन स्थिति में रख सकते हैं। पहली स्थिति में हाथ जमीन पर सीधे पीछे की तरफ रहने दें। दूसरी स्थिति में दोनों हाथ से पैरों के पंजे पकड़ कर रखें और तीसरी स्थिति में दोनों हाथों को कंधों के समानांतर रख सकते हैं। आसन की मुद्रा में जालंदर बंध अपने आप लग जाता है। आसन की मुद्रा में 10 से 15 सेकंड रहे व श्वांस पर श्वांस सामान चलने दें व पुनः मूल स्थिति में आने के लिए श्वांस रोककर दोनों पैरों को सीधे रख धीरे धीरे श्वांसन की स्थिति में ले आएं। यह क्रिया 5 से 7 बार तक कर सकते हैं। आसन का अभ्यास होने पर आसन की मुद्रा में पांच मिनट तक भी रुक सकते हैं। लाभ-रक्त को शुद्धि देते हुए मस्तिष्क को पूर्ण रक्त प्रवाह कर हार्ट व मेरुदंड को शक्तिशाली बनाता है। चेहरे पर क्रांति लाते हुए आंखों की ज्योति बढ़ाते हुए यौन शक्ति बढ़ाता है। जठराग्नि को उद्दीत कर भूख बढ़ाता है। विशेष-शरीर फुर्तीला होकर रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। डायबिटीज में लाभकारी है। निर्देश-हाई ब्लड प्रेशर, स्लिप डिस्क, मेरुदंड में चोट वाले रोगी नहीं करें। आशा दुबे, जिला योग प्रभारी



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