रतलाम के इन बुज़ुर्गों के आदर्श गांधीजी हैं.
रूपाखेड़ा गांव में सन 1955 से 1971 तक सर्वोदय स्कूल लगा करता था जहां चरखा (Charkha) चलाने के साथ ही गांधी जी (Gandhi) के आदर्शों का पाठ पढ़ाया जाता था. गांव की ये पीढ़ी उसी स्कूल में पढ़ी है.
ये गांव रतलाम से 15 किलोमीटर बसा रूपाखेड़ा गांव है.यहां की वो पीढ़ी अब बुजुर्ग हो चुकी है. इसने आज़ादी के आंदोलन के दौरान अपने बड़े बुज़ुर्गों के कहने पर गांधीजी के आव्हान पर खादी अपनायी थी. और ये आज भी गांधीजी के पद चिन्हों पर चल रहे हैं. ये बुजुर्ग आर्थिक रूप से खासे संपन्न हैं. देश में बड़े से बड़े ब्रांडेड कपड़ो की धूम मची है, लेकिन इन लोगों का लगाव सिर्फ खादी से है. महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रेरित होकर गांव के इन लोगों ने ने पूरी उम्र खादी के कपड़े ही पहने हैं.जी हां गांधीजी की वही खादी जिसे 1920 के दशक में गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ,एक बड़े स्वरोजगार के रूप में उपयोग में लाया गया था. हिन्दुस्तान के बुनकारों को ठगी और कर्ज़दारी से बचाने के लिए ही खादी के चलन को बढ़ाया था. खादी के इस चलन को रतलाम के इस गांव की पूरी एक पीढ़ी अब तक अपनाए हुए है. रूपाखेड़ा गांव में खादी पहनने वाले ये ऐसे 6 बुजुर्ग हैं जिनका खादी के प्रति योगदान इनके जीवन में झलक रहा है.
खादी के प्रति प्रेम और समर्पण
इन खादी प्रेमियों के अनुसार खादी पहनने से, पुराने समय में गरीबों को काम और पैसा मिल जाया करता था.अगर वे मिल के कपडे पहनते तो सारा पैसा मिल मालिकों तक पहुंचता.ऐसे में गरीबों का भला नहीं हो पता. इसी सोच और उद्देश्य की बदौलत खादी पहनने का यह सफर, आज तक बदस्तूर जारी है.अब भले ही खादी के कपड़े रेडी मेड मिल जाते हैं लेकिन उस ज़माने में इन कपड़ों को चरखे पर सूत कातकर बनाना पड़ता था.खादी प्रेमियों को फिक्र
1980 में दशक में सर्वोदय संस्था के शिविर के बाद से इस गांव में खादी के प्रति नयी पीढ़ी के लोगों की दिलचस्पी भी बढ़ गयी. कुछ ग्रामीणों ने उस शिविर के बाद से खादी को अपना लिया.प्रण लिया की अब जीवन भर खादी ही पहनेंगे. वही आज के दौर में खादी के प्रति लोगों की उदासीनता इन खादी प्रेमियों की चिंता बढ़ा रही है.
सर्वोदय स्कूल की शिक्षा
रूपाखेड़ा गांव में सन 1955 से 1971 तक सर्वोदय स्कूल लगा करता था जहां पर चरखा चलाने के साथ ही गांधी जी के आदर्शों का पाठ पढ़ाया जाता था. गांव की ये पीढ़ी उसी स्कूल में पढ़ी है. लगभग सभी लोगों ने चरखा चलाया है और ये लोग खादी पहनते है. प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी खुद, मन की बात कार्यक्रम में कई बार खादी के महत्व को समझा चुके हैं. बहरहाल अब जरूरत है देश के युवाओ को आगे बढ़कर खादी को ट्रेंड में लाने और देश विदेश में खादी का डंका बजाने की.