जब ब्रिस्बेन टेस्ट शुरू हुआ तो भारत का तेज गेंदबाजी का पूरा लाइन-अप ही बदला हुआ था. न बुमराह थे, और न मोहम्मद शमी! नवोदित सिराज, शार्दुल ठाकुर और नवदीप सैनी के हाथ में तेज गेंदबाजी की कमान थी. बल्लेबाजों में भी रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा और ऋषभ पंत को छोड़कर बाकी के बल्लेबाजों को दो-एक टेस्ट मैचों का ही अनुभव था.
स्पिनरों में भी न जडेजा थे और न ही रविचंद्रन अश्विन. बस वॉशिंगटन सुंदर ही मोर्चा संभाल रहे थे. पर इस जोड़ तोड़ कर बनाई गई टीम ने ऑस्ट्रेलिया के धुरंधरों को जिस तरह धूल चटाई, उसने भारतीय क्रिकेट की प्रतिष्ठा को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. सिराज ने ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में पांच विकेट और शार्दुल ठाकुर ने चार विकेट लेकर भारत को दौड़ में बनाए रखा. शार्दुल ठाकुर और वॉशिंगटन सुंदर ने तो गेंदबाजी के साथ ही बल्लेबाजी में भी झंडे गाड़े.
सबसे बड़ी बात यह है कि महासितारों की अनुपस्थिति में भारतीय टीम के नवोदित खिलाड़ियों ने अपनी जिम्मेदारियों को समझा और मानो ऐसा कह रहे हों, “कोई बात नहीं, कोई हो या न हो पर ‘मैं हूं ना”. मैं तो यह भी कहूंगा कि ब्रिस्बेन टेस्ट और श्रृंखला की जीत भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे गौरवशाली जीतों में से एक मानी जानी चाहिए. इसलिए भी कि सभी धारणाओं और मान्यताओं को तोड़कर इस टीम ने चमत्कारिक प्रदर्शन किया है.
आप तो यह भी जानते हैं कि भारतीय क्रिकेट टीम को ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों द्वारा रंगभेदी फब्तियों का शिकार बनाया जा रहा था. कोई उन्हें “ब्राउन डॉग (भूरा कुत्ता)” कह रहा था, तो कोई मूर्ख करार दे रहा था, पर कई बार बेहतर प्रदर्शन तब निकल आता है, जब आपसे कोई अपेक्षाएं नहीं रहती हैं. चूंकि भारतीय टीम से जीत की तो उम्मीद ही नहीं थी, तो उस पर परिणाम निकालने का दबाव भी नहीं था.
पिछली बार जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया जाकर श्रृंखला जीती थी, तब भारतीय टीम महासितारों से सज्जित थी. अतः इस बार की जीत से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय टीम की “बेंच स्ट्रेंथ” जबरदस्त हो गई है. जो खिलाड़ी टीम में आता है, वह अवसरों को परिणामों में बदलने के लिए आतुर रहता है.
चेतेश्वर पुजारा और ऋषभ पंत को कितनी ही आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है. पुजारा तो भारतीय क्रिकेट टीम की नई दीवार (पुरानी दीवार राहुल द्रविड़ थे) बनकर उभरे हैं. वह एक सिरे पर पिच पर कब्जा ऐसे जमा लेते हैं, जैसे यही उनका घर हो. ऋषभ पंत की विकेटकीपिंग भले ही मामूली हो, पर एक बल्लेबाज के तौर पर वह बेहद साहसी हैं. संघर्ष को वह दुश्मन की गली में ले जाकर ही पूरा करते हैं. चुनौती स्वीकार करना उनका स्वभाव है. वह दबकर नहीं बल्कि हावी होकर खेलते हैं.आपको याद होगा कि यही भारतीय टीम इसी सीरीज में 36 रन पर आउट हो गई थी, तब विराट कोहली भी टीम में थे. पर विराट कोहली की अनुपस्थिति में भी यही भारतीय टीम आसमानी बुलंदियां छू रही है. दरअसल भारतीय खिलाड़ी व्यावसायिक तौर भी इतने समृद्ध हैं कि उनमें हीनता की भावना तनिक भी नहीं है. वह विदेशी जमीन पर भी आंखों से आंखें मिलाकर शत्रु का नाश करने के लिए तैयार रहती है.
यह बात सही है कि यह ऑस्ट्रेलियाई टीम उनके क्रिकेट इतिहास की सबसे कमजोर टीम है और उनके कप्तान टिम पेन उनके क्रिकेट इतिहास के सबसे फीके कप्तान! वास्तव में देखा जाए तो टिम पेन की टीम में जगह ही नहीं बनती है, पर अगर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट कमजोर पड़ गया है तो इसमें हमारी तो कोई गलती नहीं है.
विश्व क्रिकेट का संतुलन बदल गया है. भारत अब विश्व क्रिकेट का नया “दादा” बनकर उभरा है. क्रिकेट के मैदान पर भी और क्रिकेट के व्यावसायिक संसार में भी यह विजय देश में एक नई क्रिकेट क्रांति ले आएगी और नए खिलाड़ियों में नई आशा का संचार करेगी. भारतीय टीम में प्रवेश के लिए प्रतिस्पर्धा कड़ी होती जाएगी और स्तर बेहतर होता जाएगा. भारतीय क्रिकेट टीम विश्व क्रिकेट के सिंहासन पर बैठ चुकी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं .)