छत्तीसगढ़ी विशेष – बने रमँज के देख धान तोला ठनकत मिलही

छत्तीसगढ़ी विशेष – बने रमँज के देख धान तोला ठनकत मिलही


आमदनी अउ खेती मा कोजनी का दुसमनी हे के कई पईत किसान घलो ठगा जाथे.

किसान के लागत मूल्य मा दिनो दिन बढ़वार होवत जावत हे. एमा नइते ओमा अइसे सोंच के किसान बारो महिना फसल उपजाना चाहत हे अउ उपजाना जरूरी भी हावय.


  • News18Hindi

  • Last Updated:
    January 22, 2021, 1:58 PM IST

अन्न कुंवारी ला खेत ले खलिहान मा लानके मिंजई करे जाथे. बईला दऊरी अउ बेलन मा मिंजई करे के चलन आजो हावय. मींज कूट के अपन घर मा लाने जाथे. घर के दुवारी मा अन्न कुंवारी के सत्कार होथे. लोटा मा पानी धरे महतारी पानी ला चंद्राकार आकृति मा रितोके अउंच थे. अउंचे के पुरखउती परंपरा ला आजो निभाना चाही. कोठी मा धान रईथे त मन हा आन रईथे.

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सुकाल-दुकाल के चिंता ला टांग देथे
जतका जतन करके धरती माता के कोरा ले अन्न उपजाए जाथे वोतका मान घलो राखे जाथे. दाना ठनकत-ठनकत अपन मालिक के घर मा पहुंचके आदर पाथे. आदर देवईया अउ लेवईया दुनो के मन खुशी-खुशी नाचे ला धर लेथे. नेंग नियाव के हमर समाज मा सबो किसम के नेंग हावय. बीज अउ फसल एला ही संसार का मान मिलथे. किसम-किसम के अनाज अउ नगदी फसल के बोवई सालभर चलतेच रईथे. किसान हकरय नहीं. नफा नुकसान के हिसाब ला कभू नइ लगाइस. सरग भरोसा रहिस तभो अउ आज के जगा मा तभो. ईश्वर के बिसवास अउ अपन परंपरा ला निभावत जीयत जागत रइथे. काहोही अइसे कहिके अपन आत्मा ला दुख नइ देवय अइसन हे हमर किसान.सबो जिनिस बर अपन उपजाए अन्न के भरोसा

करके देख अउ जांगर के चलत ले सुरताए के चिंता छोड़. रगड़ा खाबे तभो एक दिन तोला शांति मिलही. सबो परिवार के अपन-अपन बुता मा महारत रईथे. कोनो काखरो बुता ला नइ निनासंय. सबके अपन काम हे. चोमास आईस तहां ले अपन घर मा सकेले बिजहा ला बगरा डारथे. गउधन ओखर थाथी हरे. दूध दही मही लेवना सबो के आनंद उठाथें. अपन पुरती राखले तहां ओकर अउ गुंजाइस ला जानके चलना इकंर काम हरय. घर केहेच मा कतका सुघ्घर लागथे. जेवन पानी के संगे संग अउ कतको जिनिस ला सकेले धरे ला परथे. दुकनहा अउ घरौधिया दुनो के तालमेल मा संसार चलत हावय. कोनो कांही करंय फेर किसानी के महिमा के बखान करहिंच. किसान के रहत ले संसार ला चलना अउ चलाना परही. कतको पनछुटहा राहय तभो ले गुजर बसर करत हमन ला चलनच परही एक हाथ ले अउ एक हाथ दे अइसे करके हमर सियान सिखोए हावय बस उही सिखोना चलत राहय.

बढ़ोना के नेंग अपना जगा श्रेष्ठ हे
अजम करे के सेती भगवान भरोसा ताय अइसे कहना गरीब अउ अमीर दोनों सोंचथें. दूनो परानी अइसे केहे जाथे माने महिला पुरुष दुनो के योग्यता ला परखे गेहे. सरीर के क्षमता के हिसाब मा सबो बरोबर होंवय अइसे आजकाल के मान्यता हावय. फसल के झरती मिंजाई मा बढ़ोना राखे के तरीका घलो अपन आप मा एक मिसाल हे. मुर्रा लाई अइसे अनाज ले भड़ंवा मा केवटिन के फोरे मिलथे. सबो किसान अपन हस्ती अनुसार बढ़ोना राखंथे. गांव मा बढ़ोना के चरचा आवत फसल तक रईथे. अइसे जाने गेहे के माता के आशीरवाद एमा समाए रइथे. चलव ए चलन ला हमन अपन आने वाला पीढ़ी ला घलो देवत चलन.

खेतेच मा मशीनी लुवई मिंजई अउ उहें ले बजार

समय बदल गेहे. तीन फसली उपज होना आज के मांग ला घलो पूरा करत हे. अबादी के हिसाब मा अन्न के मांग बाढ़ गेहे. किसान के लागत मूल्य मा दिनो दिन बढ़वार होवत जावत हे. एमा नइते ओमा अइसे सोंच के किसान बारो महिना फसल उपजाना चाहत हे अउ उपजाना जरूरी भी हावय. खड़े फसल ला मोल भाव करके लेवइया घलो किंजरत रईथें. सबके अपन नाम अउ दाम हावय. आमदनी अउ खेती मा कोजनी का दुसमनी हे के कई पईत किसान घलो ठगा जाथे. फेर कभू निराश नइ होवय. कांही न कांही उदिम करके अपन घाटा ला पूरा करिच लेथे. तत्काल धान पान ला मिंज के बजार मा पहुंचाके अपन दाम ला उमचाना आज के मांग होगे हे.

ठनकत रईथे तभे देखे मा अघासी लागथे
अपन उम्मर मा पाके लुएटोरे अउ मींजे मा अन्न के दाना-दाना ठनन-ठनन करके खुशियाली मनावत हे तइसे लागथे. बजार मा अपन जगा के नाम ला उजागर करईया अनाज के कीम्मत आजो आंखी मूंद के करे जाथे. फलाने जगा के उपजारे अन्न के आजो चिन्हारी हावय. नाम के सेती भाव बियाना के गुंजाइस नइ राहय. कहिदे अउ नापा होगे तउलइया तऊल डारिस अउ कीम्मत मिहनत मा जुड़गे. ठनन-ठनन, ठन ठनाठन ठन ठन. (लेखक साहित्याकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)








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