सीखो ऑस्ट्रेलिया सीखो, भारत से अब तुम सीखो!

सीखो ऑस्ट्रेलिया सीखो, भारत से अब तुम सीखो!


ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ (India vs Australia) में जीत का जश्न अब भारत में भी लगभग थम-सा गया है और हर कोई इंग्लैंड के ख़िलाफ़ होने वाली सीरीज़ की तरफ रुख़ करता दिख रहा है. लेकिन, कंगारुओं का दर्द ज़रा भी कम नहीं हुआ है. इस हार ने ऑस्ट्रेलिया समीक्षकों को झकझोर कर रख दिया है. क्या पूर्व कप्तान और क्या पूर्व बोर्ड अध्यक्ष या फिर कोई पूर्व खिलाड़ी, हर कोई लगभग अब इस बात को मान चुका है कि लगातार दो बार ऑस्ट्रेलिया को उसी ज़मीं पर मात देना बहुत टेढ़ी खीर है और अगर भारत ने इसे अंजाम दिया तो निश्चित तौर पर ये सिर्फ एक टीम की अविश्वसनीय जीत भर नहीं है.

भारत की जीत को इतना अहमियत क्यों दे रहे हैं कंगारु?
आंकड़ों के लिहाज़ से तो साउथ अफ्रीका ने भी नई सदी में लगातार तीन बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज़ जीती है लेकिन भारत की जीत की अहमियत कहीं अधिक है. इसकी सबसे अहम वजह ये है कि भारत ने जो जीत हासिल की वो अपनी नियमित टेस्ट टीम के ज़रिए नहीं बल्कि लगभग इंडिया ए जैसी टीम के साथ हासिल की जबकि ऑस्ट्रेलिया अपनी पूरी ताकत के साथ उतरा. ऑस्ट्रेलिया इस बात को लेकर हैरान है कि जिस वाशिंगटन सुंदर को उन्हीं के राज्य तमिलनाडु की रणजी टीम में भला जगह नहीं मिलती है तो वो अचानक नेट बॉलर के साये से निकलकर टेस्ट टीम में आता है और मैच जिताने वाला खेल दिखाकर चला जाता है! वो इस बात को लेकर परेशान है कि भारत के पास टी नटराजन जैसा एक ऐसा गेंदबाज़ भी है नेट बॉलर के तौर पर दौरे पर आता है और तीनों फॉर्मेट में आकर छा जाता है. लेकिन, ऐसा टीम इंडिया ने पहली बार नहीं दिखाया. 2016 में जसप्रीत बुमराह भी तो टी20 सीरीज़ के लिए चुने गए थे लेकिन लंबी फ्लाइट की थकान की परवाह किए बगैर वो वन-डे मैच में डेब्यू कर बैठे जब कप्तान एम एस धोनी ने उन्हें मौका दिया. कहने का मतलब है कि आखिर भारत का कोई भी युवा खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के लिए इतना तैयार कैसे हो सकता है?

चैपल की गुरखा मिलिटरी ट्रेनिंग वाली दलीलटीम इंडिया के पूर्व कोच ग्रेग चैपल ने सिडनी मॉर्निंग हेरल्ड अख़बार में एक बड़ा दिलचस्प लेख लिखा. चैपल की दलील थी भारत के लिए क्रिकेट खेलने वाले युवा को एक किस्म की गुरखा मिलिटरी ट्रेनिंग (Gurkha military training program) जैसे गुज़रना पड़ता जिसे दुनिया में सबसे मुश्किल (शारीरिक और मानसिक तौर पर) ट्रेनिंग माना जाता है. भारत के युवा खिलाड़ियों को क्रिकेट में भी कुछ ऐसी ही ट्रेनिंग से रुबरु होना पड़ता है. ये बात तो सही है. आप खुद सोचिए कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले जॉब यानि IAS या फिर IIT /IIM/AIIMS जैसे सबसे सम्मानीय संस्थांनों में भी दाखिले के लिए औसतन हर साल 300 से ज़्यादा सीटें होती हैं जबकि टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए हर साल 10 नए खिलाड़ियों को भी मौका नहीं मिलता है. चैपल ने कई साल भारत में बिताए हैं और उनका मानना है कि अंडर 16 के दौर से भारतीय किशोरों को जिस तरीके की स्पर्धा से गुज़रना पड़ता है उसकी तुलना में तो ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी बच्चे ही बनकर रह जाते हैं.

अब कोई नहीं दे रहा है ऑस्ट्रेलिया मॉडल की मिसाल!
चैपल के तर्क से मुझे हैरानी भी हुई और खुशी भी. आखिर नई सदी की शुरुआत में जब से एक पेशेवर पत्रकार के तौर मैंने क्रिकेट को कवर करना शुरु किया उस समय से हर बेहतरीन बात के लिए पूरी दुनिया के सामने ऑस्ट्रेलिया मॉडल की मिसाल दी जाती थी. मतलब अगर रिकी पोंटिंग और उस दौर के शानदार खिलाड़ी (मैक्ग्रा, गिलक्रिस्ट, ब्रेट ली, माइक हसी, जस्टिन लेंगर, साइमंड्स) अंत्तराष्ट्रीय क्रिकेट में आकर छा गये तो इसके लिए पूर्व विकेटकीपर रोडनी मार्श और ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट एकेडमी (Australian Cricket Academy) का उदाहरण दिया गया. इसी बात से प्रभावित होकर पूर्व बोर्ड अध्यक्ष राजसिंह डूंगरपूर ने बैंगलोर में नेशनल क्रिकेट एकेडमी यानि कि NCA की स्थापना करवा दी. और निश्चित तौर पर इससे भारतीय क्रिकेट को काफी फायदा हुआ.

सीखो ऑस्ट्रेलिया सीखो, भारत से सीखो!
ऑस्ट्रेलिया में इस बात को लेकर बहस हो रही है कि आखिर उनके यहां ए क्रिकेट टीमों का ऐसा प्लान क्यों नहीं है जहां मोहम्मद सिराज जैसा खिलाड़ी 16 मैचों में 70 विकेट लेकर अपने पहले टेस्ट के लिए पूरी तरह से परिपक्व दिखता है और मोहम्मद शमी और उमेश यादव जैसे गेंदबाज़ों की कमी रत्ती भर महसूस होने नहीं देता है. वहीं ऑस्ट्रेलिया के पास वो आत्म-विश्वास नहीं है कि पूरी सीरीज़ के दौरान अपने तेज़ गेंदबाज़ों को एक के बाद एक करके वो आराम देने के बारे में सोच सके जैसा कि उन्होंने पिछले साल एशेज़ सीरीज़ के दौरान किया था.

ऑस्ट्रेलिया के 5 घरेलू टीमों वाले फर्स्ट क्लास क्रिकेट सिस्टम को पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इमरान ख़ान ने एक समय सबसे बेहतरीन सिस्टम बताया था. इमरान ही नहीं कई और पूर्व दिग्गज ऑस्ट्रेलिया के Sheffield Shield से बहुत प्रभावित थे और भारत के विशालकाय रणजी ट्रॉफी सिस्टम का मज़ाक उड़ाया जाता था. आज हालात ये हैं कि ऑस्ट्रेलिया ये कह रहा कि वाह जी क्या बात है भारत में 38 टीमें हैं और वो इतना सारा पैसा खर्च करते हैं जबकि हम सिर्फ $44m dollars ही अपने घरेलू क्रिकेट पर खर्च करते हैं.

ऑस्ट्रेलिया को इस बात का एहसास है कि निश्चित तौर पर पैसे के चलते आईपीएल और ऑस्ट्रेलिया की बीबीएल की कोई तुलना नहीं हो सकती है लेकिन वहां के जानकारों का तर्क है कि IPL  से ना सिर्फ टी20 बल्कि हर फॉर्मेट के लिए मंझे खिलाड़ी भारत को मिल रहे हैं लेकिन BBL से ऐसा कमाल देखने को नहीं मिल रहा. कंगारु भी चाह रहे हैं उनके पास एक ऐसा सिस्टम हो भारत की तरह जिससे सफेद गेंद या लाल गेंद के शानदार खिलाड़ी नहीं, बल्कि क्रिकेट के ही बेहतरीन खिलाड़ी निकलें. जिस पंत को टी20 के लायक समझा जाता है वो टेस्ट की चौथी पारी में मुश्किल पिच पर हैरतअंगेज खेल दिखाकर मैच जिता देता है. कंगारुओं को ऐसे नज़रिए वाले खिलाड़ी और सिस्टम की कमी खलती दिख रही है.

विनम्रता को दोहराने का मौका अब कंगारुओं के पास
एक दौर था जब भारत को ये एहसास हो गया था कि अगर विदेश में जीतना है तो शानदार तेज़ गेंदबाज़ होने चाहिए और इसलिए 1980 के दशक में चेन्नई में MRF PACE FOUNDATION आगे आया और डेनिस लिली ने जवागल श्रीनाथ और वेंकेटेश प्रसाद जैसे खिलाड़ियों को निखारा. इसके बाद ज़हीर ख़ान से लेकर नटराजन तक यहीं से कई गुर सीख कर निकले भले ही गुरु अब लिली की बजाए ग्लेन मैक्ग्रा हो गए हों.

यह भी पढ़ें: ऑस्ट्रेलिया ने आईसीसी से कहा, भारतीय क्रिकेटरों पर नस्लीय टिप्पणी करने वालों की पहचान नहीं हो सकी

भारत ने नई सदी में जॉन राइट के तौर पर एक विदेशी को पहली बार भारतीय टीम की ज़िम्मेदारी दी और इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के चैपल से लेकर ज़िम्बाब्वे के डंकन फ्लैचर तक को कमान देने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई. कंगारुओं ने क्या किया? अगर तमिलनाडू के पूर्व खिलाड़ी श्रीधरन श्रीराम के अपवाद को छोड़ दिया जाए(स्पिन सलाहकार के तौर पर कुछ सालों से ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ) तो ऑस्ट्रेलिया भारतीय कोच या पूर्व भारतीय खिलाड़ियों की मदद लेने के लिए आगे नहीं आया जबकि आईपीएल में भारत चाहे पोटिंग हो या फिर टॉम मूडी, हर किसी को खुले दिल से अपनाने के लिए तैयार रहता है.

यह भी पढ़ें: मोहम्‍मद सिराज के 5 विकेट के लिए दुआ कर रहे थे शार्दुल ठाकुर, कही दिल छूने वाली बात

अच्छी बात है कि ऑस्ट्रेलिया में भारत के बेहतरीन क्रिकेट सिस्टम को लेकर तारीफ हो रही है जिस सिस्टम को शायद खुद भारत में स्थानीय आलोचक बहुत अहमियत नहीं देते हैं. लेकिन, सबसे सुखद बात तो तब होगी कि जब कोई तेंदुलकर या हरभजन सिंह या कोई और खिलाड़ी को ऑस्ट्रेलिया अपने सिस्टम को दुरुस्त करन के लिए आमंत्रित करे जैसा कि भारत ने लिली , मैक्ग्रा और चैपल के साथ किया. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)





Source link