Panna राजघराने के लोकेन्द्र सिंह के जाने का मतलब : शिकारी से लेकर बाघ संरक्षक बनने की दिलचस्प कहानी

Panna राजघराने के लोकेन्द्र सिंह के जाने का मतलब : शिकारी से लेकर बाघ संरक्षक बनने की दिलचस्प कहानी


पन्ना.पन्ना राजघराने के वरिष्ठ सदस्य पूर्व सांसद और विधायक लोकेंद्र सिंह (Lokendra singh) अब हमारे बीच नहीं हैं. उनकी ज़िंदगी किसी रोचक किस्से से कम नहीं. राज परिवार के होने के बाद भी बेहद सहज और सरल स्वभाव. आम जनता से सहज मुलाकात. नौ साल की उम्र में बाघ (Tiger) का शिकार और फिर शिकार से तौबा करके प्रदेश को टाइगर स्टेट का तमगा दिलवाने तक का सफर.

जिनका बचपन राजाशाही वैभव में गुज़रा. जिनकी ज़िंदादिली, मिलनसारिता और ईमानदारी के किस्से सुनाए जाते रहे हैं, वे ठीक गणतंत्र दिवस के दिन चिर निद्रा में लीन हो गए.पन्ना राजघराने के वरिष्ठ सदस्य पूर्व सांसद और विधायक लोकेंद्र सिंह का 26 जनवरी के दिन निधन हो गया था. उन्होंने 75 वर्ष की आयु पूरी कर अंतिम सांस ली. उनका अंतिम संस्कार पन्ना शहर में स्थित राज परिवार के मुक्तिधाम छत्रसाल पार्क में किया गया. उनकी बेटी कामाक्षा कुमारी (लकी राजा) ने अपने पिता को नम आंखों से मुखाग्नि दी. पूर्व सांसद की अंतिम विदाई में राज परिवार के सदस्यों सहित गणमान्य नागरिक, जनप्रतिनिधि और आमजन शामिल हुए.

नौ वर्ष की उम्र में बाघ का शिकार
पन्ना राजघराने के सदस्य पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह जब महज नौ वर्ष के थे, तब उन्होंने एक बाघ को मार गिराया था. पांच साल बाद जब लोकेन्द्र सिंह 15 वर्ष के हुए तो उन्होंने सन् 1960 में पटोरी नामक स्थान पर तीन बाघों का एक साथ शिकार किया. इस बाघ परिवार का सफाया करने के बाद इस राजकुमार ने बड़े ही गर्व के साथ शिकार किये गये बाघों के पास बैठकर हाथ में बन्दूक लिए फोटो भी खिंचाई. लेकिन शिकार की इस घटना ने बालक लोकेन्द्र सिंह को विचलित कर दिया और यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया.शिकार न करने की कसम

शिकार के शौकीन रहे लोकेन्द्र सिंह का ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि उन्होंने यह कसम खा ली कि अब कभी बाघ का शिकार नहीं करेंगे. उन्होंने वन और पर्यावरण की सुरक्षा और बाघों के संरक्षण को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया. इसी सोच के कारण लोकेन्द्र सिंह की पहल से पन्ना में सबसे पहले गंगऊ सेंचुरी बनी. बाद में 1981 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण हुआ. वर्ष 1994 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व बनाया गया.

बाघों का पुनर्वास
लेकिन टाइगर रिजर्व बनने के बाद भी यहां बाघों की दुनिया आबाद होने के बजाय सिमटती चली गई. हालत यहां तक जा पहुंची कि वर्ष 2009 में बाघों की यह धरती बाघ विहीन हो गई. पूरे देश और दुनिया में किरकिरी होने पर यहां बाघ पुर्नस्थापना योजना शुरू हुई, जिसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले. अब पन्ना का यह जंगल बाघों से आबाद है, यहां के कोर और बफर क्षेत्र में 60 से भी अधिक नर और मादा बाघ हैं जो अब पर्यटकों को विचरण करते आसानी से दिख रहे हैं.

सहज-सरल थे लोकेन्द्र सिंह

जीवन पर्यंत प्रकृति, पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए समर्पित रहे पूर्व सांसद लोकेंद्र सिंह ने पन्ना टाइगर रिजर्व की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पन्ना के लिए उनकी यह सौगात इतनी अविस्मरणीय है कि वे इसके लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे. राज परिवार से होते हुए भी आम लोगों के बीच जाकर उनसे मेल मुलाकात करना उनके स्वभाव में था. यही वजह है कि लोगों ने इन्हें अपना सांसद और विधायक भी चुना. वो दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे. लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षा उनके भीतर कभी नहीं रही.।प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा. लेकिन लोकेन्द्र सिंह ने सच्चाई और ईमानदारी का साथ कभी नहीं छोड़ा.

हवा के विपरीत
अपनी इन खूबियों के कारण उन्हें राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ा. हवा के विपरीत चलने के कारण क्षमता और काबिलियत के बावजूद उन्हें मंत्री पद हासिल नहीं हो सका, जबकि राजनीति के जानकार आज भी यह कहते हैं कि राजा यदि समय के हिसाब से अपने में बदलाव लाते तो प्रदेश ही नहीं बल्कि केंद्र में मंत्री बनने तक का सफर तय कर लेते.

लोकेन्द्र सिंह के जाने का मतलब
पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह के विदा हो जाने का मतलब पन्ना राज परिवार के एक महत्वपूर्ण अध्याय का भी खत्म हो जाना है. उनकी गैरमौजूदगी से जो रिक्तता पैदा होगी, उसकी भरपाई शायद संभव नहीं है. क्योंकि राजपरिवार के मौजूदा समय में वे इकलौते ऐसे सदस्य थे, जिन्हें प्रकृति, पर्यावरण, समाज, राजनीति और पन्ना के गौरवपूर्ण इतिहास की गहरी समझ थी. जिंदगी जीने का भी उनका अपना निराला अंदाज था. उनके जैसी बेबाकी और निर्भीकता अब शायद ही देखने को मिले.





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